Friday, May 12, 2023

(आलेख)दुनिया की तमाम नर्सों की प्रेरणा स्रोत फ्लोरेंस नाइटिंगेल ; 203वीं जयंती ; विश्व नर्सिंग दिवस

आलेख :  स्वराज करुण 

     कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी हमें अपना हर कार्य बहुत धैर्य से करना चाहिए। दुनिया भर के सभी अस्पतालों की नर्सों की कठिन ड्यूटी को देखकर हमें यही सीख मिलती है। अस्पतालों में डॉक्टरों की भूमिका तो अपनी जगह सबसे महत्वपूर्ण होती है ,लेकिन उनके साथ कदम से कदम मिलाकर ओपीडी और ऑपरेशन थियेटरों तक मरीजों की सेवा करने वाली नर्सों का योगदान भी बहुत महत्वपूर्ण होता है। अस्पताल के गहन चिकित्सा कक्ष में अपने मस्तिष्क के एक जटिल ऑपरेशन के लगभग  एक सप्ताह बाद बाद कल शाम को ही घर लौटा हूँ। जब तक वहां भर्ती रहा , मेरे साथ -साथ अन्य गंभीर मरीजों की सेवा में तमन्यता से लगी नर्सो के धीरज को  देखकर मुझे फ्लोरेंस नाइटिंगेल की याद आती रही , जो दुनिया की तमाम नर्सों की प्रेरणास्रोत हैं ।संयोगवश आज 12 मई 2023 को उनकी 203 वीं जयंती है ,जो विश्व नर्सिंग दिवस के रूप में मनायी जा रही है। दर्द से कराहते मरीजों को दिलासा देना ,अचानक किसी मरीज की तबियत बहुत ख़राब हो जाए तो डॉक्टरों को सूचित करना , चाहे रात के दो बजे जाएं मरीजों  समय पर दवाइयाँ खिलाना , थर्मामीटर से उनके शरीर का तापमान लेना , मरीज को दी जा रही दवाइयों का और तापमान का हर घण्टे का रिकार्ड दर्ज करना , ये कोई साधारण काम नहीं हैं।मुझ जैसा साधारण व्यक्ति नर्सो की सेवा भावना और उनके सेवा कार्यो  का भला क्या प्रतिदान दे सकता है ? 

कोई कह सकता है कि उन्हें तो ड्यूटी के लिए तनख़्वाह मिलती है , लेकिन मैं कहना चाहता हूँ कि  पीड़ित मानवता की सेवा के किसी भी कार्य का मूल्यांकन रुपए -पैसों से नहीं किया जा सकता। आज विश्व नर्सिंग दिवस के के उपलक्ष्य में  फ्लोरेंस नाइटेंगल पर केन्द्रित मेरा यह आलेख दुनिया भर की तमाम नर्सो को समर्पित है ।

                            




           कोई भी धर्म मानवता से बड़ा नहीं 

अस्पताल एक ऐसी जगह है ,जहाँ इंसानों की जान बचाने के लिए न तो उनका धर्म देखा जाता है और न ही देखी जाती है उनकी जात ! अस्पतालों में मरीज मनुष्य के रूप में आते हैं ,हिन्दू मुसलमान ,सिक्ख या ईसाई के रूप में नहीं। मंदिर ,मस्ज़िद और मीनार के फ़िजूल धार्मिक विवादों में जनता को उलझाने वाले लोगों को देश और दुनिया भर के अस्पतालों से , ,वहाँ के डॉक्टरों और वहाँ की नर्सों से  सीखना चाहिए कि कोई भी धर्म मानवता से बड़ा नहीं होता। मानवता की सेवा के लिए  वहाँ की नर्सें भी  सदैव मुस्तैद रहती हैं।वे  अपनी सेवा भावना से सबको यह संदेश देती हैं कि  उनके लिए मानवता की सेवा ही सच्चा धर्म है।

   चाहे बाढ़ , तूफ़ान और  भूकम्प  जैसी प्राकृतिक आपदाएँ हों या युद्ध ,  महायुद्ध या महामारी  जैसे  मानवीय संकट , कहीं  अग्नि दुर्घटना हो गई हो ,या सड़क दुर्घटना  , वे हर हाल में इन हादसों से  पीड़ित इंसानों  की मदद के लिए ततपर रहती हैं। घायल और बीमार मरीजों की सेवा करती हैं। उन्हें अस्पतालों में रात दिन भाग दौड़ करते देखा जा सकता है।  डॉक्टरों के साथ मिलकर वो सामान्य दिनों में भी अस्पतालों में मरीजों के इलाज में मददगार की भूमिका में रहती हैं। 

    विगत दो वर्षों में कोरोना के दौरान भी उन्होंने अस्पतालों में मरीजों का जीवन बचाने के लिए पीपीई किट पहनकर , पसीने से लथपथ होकर भी चौबीसों घंटे ड्यूटी पर तैनात रहीं। आज 12 मई को उन्हीं सेवाभावी नर्सों की प्रेरणास्रोत फ्लोरेंसनाइटिंगेल की 202 वीं जयंती है। उन्हें विनम्र नमन।उनकी याद में आज पूरी दुनिया में नर्सिंग दिवस मनाया जाता है। उन्हें याद करते हुए  आज देश और दुनिया की करोड़ों नर्सों के प्रति सम्मान और कृतज्ञता व्यक्त करने का दिन है। 

     वैसे तो अस्पतालों में  मरीजों के इलाज़ में डॉक्टरों की भूमिका सबसे महत्वपूर्ण होती है ,लेकिन  उनके  सहयोगी के रूप में नर्सों का भी बड़ा अहम रोल होता है ।  अगर डॉक्टर अपनी टीम का कप्तान होता है तो आज के युग में  नर्सें  उसकी टीम की सबसे  महत्वपूर्ण सदस्य होती हैं ,जल मरीजों की देखभाल सेवा भावना से और पूरी तन्मयता के साथ करती हैं ।  नर्सों के बिना किसी अस्पताल की कल्पना भी नहीं की जा सकती । 

     

         कौन थीं फ्लोरेंस नाइटिंगेल ?

        *********************

    पीड़ित मानवता की सेवा के लिए कर्म क्षेत्र में अपनी भावनाओं की ज्योति सदैव प्रज्ज्वलित रखने वाली महिला थीं फ्लोरेंस नाइटेंग । उनके  संघर्षपूर्ण और गरिमामय जीवन यात्रा के बारे में इंटरनेट पर  उपलब्ध अलग -अलग  जानकारियों के अनुसार वह एक  लेखिका भी थीं । उनकी पुस्तकों में 'लेटर्स फ्रॉम इजिप्ट ' 'नर्सिंग होम केयर ' 'नोट्स ऑफ़ नर्सिंग ' और 'नोट्स ऑन हॉस्पिटल्स '  उल्लेखनीय हैं  । उन्होंने वर्ष 1849 -1850 में अपने मित्रों के साथ इजिप्ट का दौरा किया था ।  इजिप्ट प्रवास पर आधारित उनकी यह किताब 1854 में छपी थी ।

      उनका जन्म- 12 मई, 1820 को फ्लोरेन्स (इटली ) में  एक सम्पन्न ब्रिटिश परिवार में हुआ था ।  निधन -13 अगस्त, 1910 को लन्दन में हुआ था  । वे  आधुनिक नर्सिग आन्दोलन की जननि ' मानी जाती हैं। आर्थिक दृष्टि से सम्पन्न पारिवारिक पृष्ठभूमि के बावज़ूद उन्होंने नर्स बनकर  मानवता के कल्याण का मार्ग चुना । यह वर्ष 1840  के उन दिनों की बात है ,जब इंग्लैंड में भयानक अकाल पड़ा था । फ्लोरेन्स नाइटेंगल ने इस कठिन समय में अकाल पीड़ित बीमारों की  मदद के लिए अपने एक  पारिवारिक डॉक्टर  के साथ नर्स बनने की इच्छा जताई ।हालांकि इसके लिए उन्हें पारिवारिक विरोध भी सहना पड़ा ,लेकिन उनके दृढ़ संकल्प की वज़ह से माता पिता ने उन्हें सहमति दे दी । क्रीमिया के युद्ध के दौरान वह  तुर्की में घायलों के उपचार के लिए 38 महिलाओं की टीम बनाकर युद्ध क्षेत्र में पहुँची । उन्हें ब्रिटिश सरकार द्वारावहाँ के सैन्य असपताल में भेजा गया था ।

      

     लेडी विथ द लैम्प की मिली उपाधि 

                ***************

       रात के समय जब डॉक्टर अपनी ड्यूटी के बाद चले जाते थे ,तब फ्लोरेन्स नाइटेंगल अँधेरे में मोमबत्तियां और लालटेन  जलाकर घायलों की देखभाल करती ।  इस पुण्य कार्य की वज़ह से उन्हें 'लेडी विथ द लैम्प ' की उपाधि से नवाज़ा गया था । वह सदैव सेवा की ज्योति जलाए रखने वाली एक ज्योतिर्मयी महिला थीं ।उन्होंने वर्ष 1859 के आसपास ' नोट्स ऑफ नर्सिंग ' नामक पुस्तक भी लिखी ।  उनकी प्रेरणा से ही महिलाएं नर्सिंग के क्षेत्र में आने लगीं । फ्लोरेन्स नाइटेंगल ने  अपने समय के शासकों को युद्ध ग्रस्त इलाकों में घायलों और बीमारों के इलाज की उचित व्यवस्था के लिए प्रेरित किया । पहले ऐसी कोई व्यवस्था नहीं होती थी । उन्होंने अपने अनुकरणीय सेवा कार्यों से अस्पतालों में नर्सिंग के प्रोफेशन को एक नयी पहचान दिलाई । लन्दन में उन्होंने वर्ष 1860 में सेंट थॉमस अस्पताल में  विश्व के प्रथम  नर्सिंग प्रशिक्षण स्कूल की स्थापना की ।

        -- स्वराज करुण 

(फोटो : इंटरनेट से साभार )

No comments:

Post a Comment