जिस तरह से
चल रहा है देश ,
लगता है कुछ दिनों में
लोकतंत्र के सिर्फ़
रह जाएंगे अवशेष !
जीतेगा और जिएगा वही
जिसके हाथों में होगा
नोटों से भरा सूटकेस !
जब चारों दिशाओं में छा जाएंगे कार्पोरेट,
उन्हीं के हाथों में होंगे
तुम्हारे खलिहान और खेत !
ये नये ज़माने के राजे -महाराजे
बजवाएंगे तुमसे अपनी तारीफ़ों के बाजे !
धर्म ,जाति और सम्प्रदाय के नाम पर
वो जनता को आपस में लड़वाएँगे ,
देशभक्ति की नकली परिभाषाओं से
बेगुनाहों को सूली पर चढ़वाएंगे।
मांगोगे रोजगार तो तुम्हें
नकली राष्ट्रवाद का बेसुरा गाना सुनवाएँगे ,
मांगोगे न्याय तो तुम्हें
फ़र्ज़ी देशभक्तों से धुनवाएंगे !
सुनो बटोही ! उठाओगे आवाज़
अगर अन्याय के ख़िलाफ़ ,
तुम ठहरा दिए जाओगे देशद्रोही !
जहाँ रात के अंधेरे में
चोरी छिपे जला दी जाएगी
भारत माता की ,
बलात्कार पीड़ित बेटियों की लाश ,
उस देश में आख़िर कब तक करोगे
इंसानियत और इंसाफ़ की तलाश ?
-स्वराज करुण
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (07-10-2020) को "जीवन है बस पाना-खोना " (चर्चा अंक - 3847) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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