Thursday, July 30, 2020

(कविता) दाल में कुछ काला तो नहीं ?

                    - स्वराज करुण 
देश और  दुनिया में
जिसको देखो ,उसको कोरोना ,
जहाँ देखो ,वहाँ कोरोना !
कहीं कोई  गड़बड़ झाला तो नहीं ?
दाल में कुछ काला तो नहीं ?
राजा हो या रंक ,
सब पर छाया है
कोरोना का आतंक !
गाँव -गाँव ,पाँव -पाँव ,
नगर -नगर ,डगर -डगर
सिर्फ़ कोरोना का रोना ?
सुबह से रात तक 
टी .व्ही. चैनलों के पर्दे पर
देखते रहो कोरोना का ओढ़ना ,
कोरोना का बिछौना !
ऐसा कैसे हो रहा है कि
हर गली ,हर मोहल्ले में
आनन -फानन में निकल रहे हैं
कोरोना के मरीज  ?
कहीं टेस्ट में तो कोई गड़बड़ी तो नहीं ?
पूछ रहा है यह नाचीज़ !
जिसको  न सर्दी ,न खाँसी ,न बुखार ,
उसे भी पकड़ कर कह रहे -
टेस्ट करवा लो मेरे यार !
कहीं ऐसा तो नहीं कि
कोरोना है अरबों ,ख़रबों डॉलर का
कोई अंतर्राष्ट्रीय व्यापार ?
          -स्वराज करुण

9 comments:

  1. और एक बहुत बड़ा महा घोटाला देखने को मिलेगा निकट भविष्य में
    पैसा आज भी बोलता है
    बहुत सही

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  2. त्वरित टिप्पणी के लिए हार्दिक आभार कविता जी ।

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  3. काली दाल है :) सुन्दर।

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    1. This comment has been removed by the author.

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    2. त्वरित टिप्पणी के लिए बहुत -बहुत धन्यवाद सुशील जी ।

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  4. बहुत सुंदर

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    1. हार्दिक आभार ओंकार जी ।

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  5. वाह! बेहतरीन सर ।
    सादर

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    1. हार्दिक आभार अनीता जी ।

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