जनता के पैसों से खाते आठ हजार की थाली !
अखबारों में पढकर यह सब जनता देती गाली !!
बेशरम हँसते हैं लेकिन जाम से जाम टकराकर !
जनता के हर आंसू पर वो खूब बजाएं ताली !!
राजनीति व्यापार है उनका भरते रोज तिजोरी !
अखबारों में पढकर यह सब जनता देती गाली !!
बेशरम हँसते हैं लेकिन जाम से जाम टकराकर !
जनता के हर आंसू पर वो खूब बजाएं ताली !!
राजनीति व्यापार है उनका भरते रोज तिजोरी !
कुर्सी उनके लिए सुरक्षित ,साला हो या साली !!
आज़ादी और लोकतंत्र भी उनके चरण पखारें !
जिनके आगे माथ नवाए क़ानून वृक्ष की डाली !!
पढ़ लिख कर बेकार घूमती बेकारों की पलटन !
फिर भी कहते नहीं रहेगा कोई हाथ अब खाली !!
सदा-सदा के लिए सलामत उनके छत्र-सिंहासन !
भले चमन को खा जाए उसका ही कोई माली !!
प्लेटफार्म से सड़कों तक दूध को तरसे बचपन !
लेकिन उनके गालों में हर दिन खिलती लाली !!
राज इसका रह जाएगा राज बन कर हरदम !
राजनीति में आते ही कैसे दूर हुई कंगाली !!
हर चुनाव में साड़ी- कम्बल -दारू का बोलबाला !
असल नोट नेता की जेब में ,जनता को दे जाली !!
हुक्कामों के जश्न से जगमग पांच सितारा होटल !
ड्रिंक-डिनर -डिप्लोमेसी छलकाएं खूब प्याली !!
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteआज देश की यही त्रासदी है ... आम जनता ही पिसती है ।
ReplyDeleteसच्ची बात कहने के लिए बधाई
ReplyDelete