Sunday, September 29, 2019

(कविता ) ढूंढो अब कोई राह अनजानी !

                 -स्वराज करुण  
तरह -तरह के ज्ञानियों
की भीड़ जहाँ
एक अकेला
मैं अज्ञानी !
किसम -किसम के
ज्ञान की बातें सुन -सुन कर
होती हैरानी !
किसकी बातों में सच्चाई ,
कौन यहाँ पर  झूठा ?
 पहन मुखौटा ज्ञान  का
उन सबने जमकर  लूटा !
जिनको हमने समझा अब तक
दानवीर महादानी !
वो बेच रहे जंगल की हरियाली,
और नदियों का पानी !
जिनके जयकारे लगाकर
भक्तों का महारैला ,
लूट की दौलत घर ले जाए
भर -भर अपना थैला !
माल -ए -मुफ़्त
दिल -ए-बेरहम वालों
की ये  कहानी !
दिल कहता है - ढूंढो
अब कोई  राह अनजानी !

         -स्वराज करुण

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