Sunday, December 21, 2014

रविवार का दिन

  कुछ लोगों के लिए
  छुट्टी मनाने का
  और बहुतों के लिए हमेशा की तरह ...
  काम करने का दिन .
  रविवार कुछ लोग सुबह उठते हैं
  देर से आराम के साथ ,
  वहीं अलसुबह मोहल्ले की चाय
  दुकान में चूल्हा सुलगाने
  पहुँच जाते हैं मंगलू और उसका दस साल का बेटा ,
  सुबह चार बजे से नुक्कड़ पर  रिक्शा लेकर
  खड़ा रहता है दरसराम सवारियों के इंतज़ार में .
  रविवार की सुबह चाहे
  बर्फीली सर्द हवाएं हों या झमाझम बारिश,
  अखबार बाँटने वाले लड़के साइकिल पर सरपट
  दौड़ते पहुंचते हैं हमारे दरवाजे
  दुनिया भर की खबरें देने .
  अस्पतालों में मरीजों की
  सेवा में दिन -रात लगे डाक्टरों और कर्मचारियों के लिए ,
  रेडियो. टेलीविजन और अखबार में काम करते पत्रकारों .
  और प्रेस कर्मचारियों के लिए ,
  खेतों में पसीना बहाते किसानों के लिए
  सरहद पर वतन की रक्षा करते
  सैनिकों के लिए ,
  रेलगाड़ियों और बसों में लाखों मुसाफिरों को
  मंजिल तक पहुंचाते ड्रायवरो के लिए ,
  ज़िन्दगी की डायरी में नहीं होता
  रविवार का दिन 
  जैसे सूरज की रौशनी के लिए ,
 जैसे मौसम और हवाओं के लिए
 नहीं होता कोई रविवार ! 
 सोचो अगर उनकी ज़िन्दगी में भी  
 हर हफ्ते आने लगे रविवार तो
 कैसी होगी हमारी ज़िन्दगी ?
                                         - स्वराज्य करुण

Monday, December 1, 2014

टेक्नोलॉजी हमारी या हम टेक्नोलॉजी के गुलाम ?

  नए जमाने की नयी तकनीकों  से जहां इंसान की ज़िन्दगी काफी सहज-सरल और सुविधाजनक होती जा रही है, वहीं   प्रौद्योगिकी के नए -नए औजार   हमारे जीवन और हमारी संस्कृति की बहुत -सी चीजों को हमसे दूर करते जा रहे हैं .लगता है -टेक्नोलॉजी हमारी गुलाम नहीं ,बल्कि हम टेक्नोलॉजी के गुलाम बनते जा रहे हैं .हैरानी इस बात पर होती है कि  टेक्नोलॉजी का जन्मदाता इंसान स्वयं है और वह खुद ही उसकी गुलामी सहज भाव से स्वीकार करता जा रहा है .  समय बड़ा बलवान और परिवर्तनशील होता है . बदलते समय की बदलती टेक्नोलॉजी इस परिवर्तनशीलता के लिए उत्प्रेरक का काम करती है. धान के महासागर के रूप में प्रसिद्ध छत्तीसगढ़ भी इससे अछूता नहीं रह गया है .अब खेतों में धान कटाई के लिए मजदूरों की जरूरत लगभग खत्म होती जा रही है . मजदूरों की भूमिका मशीन निभा रही है . किसानों के लिए यह बहुत सुविधाजनक है.  हार्वेस्टर  खड़ी फसल को काटकर और मिजाई कर आपको सौंप देता है . एक घंटे में एक एकड़ में फसल कटाई आसानी से हो जाती है .जबकि दस मजदूर इसी काम को आठ घंटे में करते थे .  आज के रेट के हिसाब से जितनी मजदूरी उन्हें देंगे , उसकी तुलना में हार्वेस्टर  किराए पर लेना सस्ता पड़ता है . पहले फसल खेतों से खलिहानों में लायी जाती थी . मशीनीकरण के इस दौर में अब खलिहानों की जरूरत भी नहीँ रह गयी है . हार्वेस्टर  से फसल काटकर और खेत में ही बोरे में भरकर सीधे मंडी ले जा सकते हैं . इस प्रकार अब खेतों में श्रमिकों की भूमिका लगातार कम होने लगी है . खेतों की जोताई अब हल से नहीं ,ट्रेक्टरों से होने लगी है  .रोपाई के लिए भी मशीन आ गयी है . खेतिहर मजदूरों का अब क्या होगा ? क्या उनके हाथ खाली रहेंगे ?  जब मशीनों से फसल कटाई और मिंजाई होगी ,तो खेत-खलिहानों में  इन श्रमिकों की क्या जरूरत और जब वहां श्रमिक नहीं होंगे ,तो श्रम के लोक-गीत भला कौन गाएगा  ?  यानी अब तो लोक-गीतों की अनुगूंज भी हमारे खेत-खलिहानों से गायब होने लगी है . फसल उगाने के लिए खेत  किसी  तरह कायम हैं ,लेकिन मशीनीकरण के इस  आधुनिक समय में खलिहान लुप्त हो रहे हैं. खेतों की जोताई ट्रेक्टरों से होने लगी है ,गौर-तलब है कि खलिहान हमारी कृषि -संस्कृति का अभिन्न अंग माने जाते हैं .उनका विलुप्त होना एक आत्मीय परम्परा के खत्म होने जैसा कष्टदायक है . लेकिन समय बड़ा बलवान होता है . उसके सामने किसी की नहीं चलती .फिर भी क्या किसी नयी टेक्नोलॉजी के आने पर हमें अपनी जड़ों से कट जाना चाहिए ? (आलेख और फोटो-स्वराज्य करुण)

Friday, November 28, 2014

बहुत खुश है शिक्षा -माफिया !

  डोनेशनखोर शिक्षा माफिया गिरोह के सदस्य  बहुत खुश होंगे .क्यों न हों ? दिल्ली में उनके पक्ष में फैसला जो आया है ! इस फैसले के अनुसार प्रायवेट नर्सरी स्कूलों में मासूम बच्चों के दाखिले के लिए फार्मूला वह खुद बनाएंगे ,सरकार इसमें कोई दखल नहीं दे पाएगी . जनता की निर्वाचित सरकार का कोई हुक्म उन पर नहीं चलेगा . !यानी अब प्रायवेट स्कूलों में बच्चों के एडमिशन के लिए जमकर होगी रिश्वतखोरी की तर्ज पर डोनेशनखोरी !. दो-तीन साल की नाजुक उम्र के बच्चों को भी देना होगा इंटरव्यू ,जैसे किसी नौकरी के लिए बेरोजगार आवेदकों का लिया जाता है साक्षात्कार ! इतना ही नहीं ,बल्कि इन बच्चों के माता-पिता को भी शिक्षा-माफिया के सामने खड़े होकर बेरोजगारों की तरह इंटरव्यू देना होगा !    यह शिक्षा के निजीकरण के लिए देश में विगत कई वर्षों से चल रही साजिशों का  'साइड इफेक्ट' है . धन्य है फैसला देने वाला इन्साफ का नेत्रहीन देवता ! (स्वराज्य करुण )

Thursday, November 27, 2014

काले-धन का मंत्र-जाप !


                         अगर चाहते हो जानें सब धन है कितना काला ,
                         सबसे पहले खोलो   बैंक में हर लॉकर का ताला !
                         समझदार को इशारा काफी ,अगर ध्यान से देखे ,
                         आँखों में वरना पड़ा रहेगा नासमझी का जाला !
                         चोर-लुटेरे - डाकू सबके सब हैं मौज-मजे में ,
                         काले-धन का मंत्र-जाप कर रहे फेर कर माला !
                         कोई किसी का भाई-भतीजा ,कोई किसी का बेटा ,
                         कोई किसी का जीजा है तो कोई किसी का साला !
                         बाहर-बाहर इक-दूजे को जमकर हैं गरियाते ,
                         भीतर -भीतर हँसी -ठहाके ,महफ़िल और मधुशाला !
                         बिन इलाज के मरते हैं जो अस्पताल के आंगन ,
                          कोई नहीं होता है उनको कफन ओढ़ाने वाला !
                         फिर भी खूब तरक्की पर है देश तुम्हारा -मेरा ,
                         समृद्धि के दावों से देखो घर-घर में उजियाला !
                                                                           -- स्वराज्य करुण

Friday, November 21, 2014

(ग़ज़ल ) कभी गाँव था अपनों का ...!

                                    मुझे समय  की बुरी नज़र से  डर लगता है ,
                                     भीड़ भरे इस शहर से बेहद डर लगता है !
                                     हर  तरफ  यहाँ  अजनबी चेहरों के मेले   ,
                                     रूपयों का  ही बाज़ार चारों प्रहर लगता है !
                                     बाहर -बाहर  जितना आलीशान दिख रहा,
                                     भीतर जाओ तो भुतहा  खंडहर लगता है !
                                     कभी गाँव था अपनों का  इसी जगह पर ,
                                    जहाँ आज यह बेगानों का घर लगता है !
                                     हरी घास के नर्म  बिछौने कौन ले गया ,
                                     धरती  का प्यारा आंचल पत्थर लगता है !
                                   .जिसने  छीनी महतारी की ममता हमसे ,
                                     उसके हाथों छुपा हुआ खंज़र लगता है !
                                     इन्साफ और क़ानून तो सिर्फ़ कहने की बातें ,
                                     बेहिसाब ,बेदर्द यहाँ का मंज़र लगता है !
                                                                        --  स्वराज्य करुण

Thursday, November 20, 2014

फैशनेबल पशु-प्रेमियों ने बढ़ाया आदमखोर कुत्तों का हौसला !

      .
    हमारे शहर में पिछले एक साल से आवारा कुत्तों का भयानक आतंक है  कुछ फैशनेबल पशु-प्रेमियों के चलते उनके  हौसले बुलंद होते जा रहे हैं .  होटलों और मांस-मछली विक्रेताओं के ठेलों के आस -पास  जूठन की लालच में इनके झुण्ड के झुण्ड घूमते रहते हैं  . शहर के आऊटर में जगह-जगह बेतरतीब और अवैध रूप से संचालित ब्रायलर मुर्गों और अण्डों की दुकानों के इर्द -गिर्द इन आवारा कुत्तों को सुस्ताते देखा जा सकता है .ये वहाँ मुर्गों के पंखों और मांस के लोथड़ों की लालच में ध्यान लगाए बैठे रहते हैं और जैसे ही कोई दुकानदार इस प्रकार के अवशेषों को लापरवाही से फेंकता है ,ये उस दिशा में दौड पड़ते हैं .रात में सडकें सुनसान होने पर भी ये आवारा हिंसक पशु वहीं पर अपना डेरा जमाए रहते हैं .
      विगत एक वर्ष में दर्जनों लोगों पर इन लावारिस कुत्तों ने हमले किए , कई लोगों को बुरी तरह घायल कर दिया और कई मासूम बच्चों को भी अपना शिकार बनाया . ऐसा नहीं है कि शासन-प्रशासन हाथ पर हाथ धरे बैठा है. नगर-निगम के अधिकारियों ने इन कुत्तों को जहर देकर मारना चाहा ,उनकी नसबंदी के प्रयास किये ,लेकिन जब -जब ऐसी कोशिशें हुई , स्वयं  को पशु-प्रेमी कहलाने वालों के कुछ  स्वयं -भू संगठन के लोग अखबार बाजी करने लगे कि निरीह जानवरों पर अत्याचार हो रहा है .  कोई उपाय न देखकर नगर-निगम वालों ने इन आवारा कुत्तों को शहर की सरहद से काफी दूर जंगल में छोड़ना शुरू किया ,तो एक नई समस्या तन कर खड़ी हो गई . ये कुत्ते अब गाँवों में आतंक फैलाने लगे .शहर से लगभग तीस किलोमीटर परस्थित  एक गाँव से खबर आयी है कि वहाँ इन आवारा कुत्तों ने खुले में खेल रहे एक दर्जन नन्हें बच्चों को काटकर बुरी तरह जख्मी कर दिया .शहर के आऊटर पर एक कॉलोनी में ऐसे ही कुछ आवारा कुत्तों ने एक भिखारन को नोच-खसोट  कर मार डाला . इतना होने के बाद भी शहर के स्वनाम धन्य पशु-प्रेमियों का दिल नहीं पसीज रहा है .
        आदमखोर होते जा रहे इन आवारा कुत्तों को  खत्म करने के लिए जब-जब शासन -प्रशासन ने नगर -निगम के साथ मिलाकर कोई कदम उठाना चाहा , इन लोगों ने उसका विरोध शुरू कर दिया . कोई उनसे यह क्यों नहीं पूछता कि मानव -जीवन ज्यादा कीमती है या आदमखोर कुत्ते ? गौर तलब है कि ये लावारिस कुत्ते  राहगीरों,स्कूली बच्चों  और  आम नागरिकों पर हमले कर रहे हैं .  कामकाजी लोग रात में दोपहिया गाड़ियों में घर लौटे हैं तो ये उन पर झपट्टा मारते की कोशिश करते है .ऐसे में कई जानलेवा दुर्घटनाएं भी हो चुकी हैं .पशु-प्रेमी संगठन के स्व-घोषित नेताओं को वह सब नज़र नहीं आता .लगता है अब एक ही उपाय रह गया है-लोग अपने घरों के आस-पास आवारा और हिंसक कुत्तों को देखते ही  चुपचाप उन्हें खाने में जहर मिलाकर खिला दें . इसके बाद भी अगर स्वघोषित पशु-प्रेमी इसका विरोध करें तो इन लावारिस कुत्तों को उनके घरों के भीतर ले जाकर छोड़ देना चाहिए और उनसे कहना चाहिए कि अब आप ही इनकी परवरिश कीजिए !
(स्वराज्य करुण )

Tuesday, November 18, 2014

काली कमाई का सबसे सुरक्षित ठिकाना बैंक लॉकर !

         भ्रष्टाचार और काला धन दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं . दोनों एक-दूजे के लिए ही बने हैं और एक-दूजे के फलने-फूलने के लिए ज़मीन तैयार करते रहते हैं . यह कहना भी गलत नहीं होगा कि दोनों एकदम सगे मौसेरे भाई हैं. भ्रष्टाचार से अर्जित करोड़ों-अरबों -खरबों की दौलत को छुपाकर रखने के लिए तरह -तरह की जुगत लगाई जाती है . भ्रष्टाचारियों द्वारा इसके लिए अपने नाते-रिश्तेदारों ,नौकर-चाकरों और यहाँ तक कि कुत्ते-बिल्लियों के नाम से भी बेनामी सम्पत्ति खरीदी जाती है . बेईमानी की कालिख लगी दौलत अगर छलकने लगे तो सफेदपोश चोर-डाकू उसे अपने बिस्तर और यहाँ तक कि टायलेट में भी छुपाकर रख देते हैं . .हालांकि देश के सभी राज्यों में हर साल और हर महीने कालिख लगी कमाई करने वाले सरकारी अधिकारियों और कर्मचारियों के घरों पर छापेमारी चलती रहती है ,करोड़ों -अरबों की अनुपातहीन सम्पत्ति होने के खुलासे भी मीडिया में आते रहते हैं .
                      आपको यह जानकर शायद हैरानी होगी कि हमारे देश के राष्ट्रीयकृत और निजी क्षेत्र के बैंक भी भ्रष्टाचारियों  की   बेहिसाब दौलत को छुपाने का सबसे सुरक्षित ठिकाना बन गए हैं .जी हाँ !  ये बैंक  जाने-अनजाने इन भ्रष्ट लोगों की मदद कर रहे हैं और उनकी काली कमाई के अघोषित संरक्षक बने हुए हैं  ! वह कैसे ? तो जरा विचार कीजिये ! प्रत्येक बैंक में  ग्राहकों को लॉकर रखने की भी सुविधा मिलती है .हालांकि सभी खातेदार इसका लाभ नहीं लेते ,लेकिन कई इच्छुक खातेदारों को बैंक शाखाएं  निर्धारित शुल्क पर लॉकर आवंटित करती हैं  .उस लॉकर में आप क्या रखने जा रहे हैं , उसकी कोई सूची बैंक वाले नहीं बनाते . उन्हें केवल अपने लॉकर के किराए से ही मतलब रहता है . लॉकर-धारक से उसमे रखे जाने वाले सामानों की जानकारी के लिए कोई फ़ार्म नहीं भरवाया जाता .  .आप सोने-चांदी ,हीरे-जवाहरात से लेकर  बेहिसाब नोटों के बंडल तक उसमे रख सकते हैं . एक मित्र ने मजाक में कहा - अगर आप चाहें तो अपने बैंक लॉकर में दारू की बोतल और अफीम-गांजा -भांग जैसे नशीले पदार्थ भी जमा करवा सकते हैं .
          कहने का मतलब यह  कि बैंक वाले अपनी शाखा में लॉकर की मांग करने वाले किसी भी ग्राहक  को निर्धारित किराए पर लॉकर उपलब्ध करवा कर अपनी ड्यूटी पूरी मान  लेते हैं  .हाल ही में कुछ अखबारों में यह समाचार पढ़ने को मिला कि   एक भ्रष्ट अधिकारी के बैंक लॉकर होने की जानकारी मिलने पर जांच दल ने जब उस बैंक में उसे साथ ले जाकर लॉकर खुलवाया तो उसमे पांच लाख रूपए नगद मिले ,जबकि उसमे विभिन्न देशों के बासठ नोटों के अलावा कई विदेशी सिक्के भी उसी लॉकर से बरामद किये गए ..उसके ही एक अन्य बैंक के लॉकर में करोड़ों रूपयों की जमीन खरीदी से संबंधित रजिस्ट्री के अनेक दस्तावेज भी पाए गए .जरा सोचिये ! इस व्यक्ति ने  पांच लाख रूपये की नगद राशि को अपने बैंक खाते में जमा क्यों नहीं किया ? उसने इतनी बड़ी रकम को लॉकर में क्यों रखा ? फिर उस लॉकर में विदेशी नोटों और विदेशी सिक्कों को रखने के पीछे  उसका इरादा क्या था ? हमारे जैसे लोगों के लिए तो  पांच लाख रूपये भी बहुत बड़ी रकम होती है .इसलिए मैंने इसे 'इतनी बड़ी रकम' कहा .
          बहरहाल हमारे  देश में बैंकों के लॉकरों में पांच लाख तो क्या , पांच-पांच करोड रूपए रखने वाले भ्रष्टाचारी भी होंगे .आम धारणा है कि भारत के काले धन का जितना बड़ा जखीरा विदेशी बैंकों में है ,उससे कहीं ज्यादा काला धन देश में ही छुपा हुआ है और तरह-तरह के काले कारोबार में उसका धडल्ले से इस्तेमाल हो रहा है . ऐसा लगता है कि बैंक लॉकर भी काले-धन को सुरक्षित रखने का एक सहज-सरल माध्यम   बन गए हैं .ऐसे में अगर देश के भीतर छुपाकर रखे गए काले धन को उजागर करना हो तो सबसे पहले तमाम बैंक-लॉकर धारकों के लिए यह कानूनन अनिवार्य कर दिया जाना चाहिए कि वे अपने लॉकर में रखे गए सामानों की पूरी जानकारी बैंक-प्रबंधन को दें .ताकि उसका रिकार्ड सरकार को भी मिल सके .अगर लॉकर धारक ऐसा नहीं करते हैं तो उनके लॉकर जब्त कर लिए जाएँ . मुझे लगता है कि ऐसा होने पर  अरबों-खरबों रूपयों का काला धन अपने आप बाहर आने लगेगा और उसका उपयोग देश-हित में किया जा सकेगा .(स्वराज्य करुण )