(स्वराज करुण )
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ज़रा सोचो !
क्या सोचते होंगे हमारे बच्चे ,
जब देखते हैं अपने से बड़ों को
आपस में लड़ते ,झगड़ते
कहीं ज़मीन -जायदाद के नाम पर ,
कहीं जाति और धर्म के नाम पर ,
कहीं देशों की सरहदों के नाम पर ,
एक -दूसरे के ख़ून के प्यासे
लोगों को देख कर ,
कहीं बुलडोजरों से उजड़ते
और जलते हुए घरों को देखकर ,
कहीं कातिल गोलियाँ उगलती बंदूकों
और कहीं ख़ून की प्यासी
तलवारों को देखकर ,
कहीं विमानों से बरसते बमों
से उजड़ते शहरों में
रोते-बिलखते लोगों और
अपने ही जैसे नन्हे बच्चों को देखकर ,
कहीं अस्पतालों
के दरवाजों से दुत्कारे गए
बेसहारा मरीजों को देखकर ,
कहीं फैक्ट्रियों के लिए उजाड़ी गयी
बस्तियों से मेहनतकशों की
उजड़ती ज़िन्दगी को देखकर ,
कहीं अमीरों की ऊँची -ऊँची
आलीशान इमारतों और
कहीं उनके नीचे झुग्गियों में
दिन गुजारते अपने ही जैसे
बच्चों को देखकर ,
कहीं रेल्वे स्टेशनों और बस -अड्डों
में भीख मांगते नन्हें मासूमों को
देखकर आख़िर क्या सोचते होंगे बच्चे ?
शायद यह सवाल उनके
मन में जरूर उठता होगा -
क्या वाकई यही है इंसानों की दुनिया ?
इसलिए इंसानों !
अगर तुम वाकई इंसान हो ,अगर तुममें
बची है थोड़ी -सी भी इंसानियत
तो मत दिखाओ अपने बच्चों को
ऐसे खौफ़नाक और दर्दनाक नज़ारे ,
वरना वो सोचेंगे कि
हम व्यर्थ ही आए इस दुनिया में ,
हम जहाँ थे ,वहीं अच्छे थे ।
इसलिए सोचो ,
तुम क्या दिखाना चाहते हो
अपने बच्चों को ?
रंग -बिरंगे परिन्दे
या खूंखार दरिंदे ?
ख़ूनी मंज़र या ख़ूबसूरत धरती ?
- स्वराज करुण
नमस्ते.....
ReplyDeleteआप को बताते हुए हर्ष हो रहा है......
आप की ये रचना लिंक की गयी है......
दिनांक 17/04/2022 को.......
पांच लिंकों का आनंद पर....
आप भी अवश्य पधारें....
हार्दिक आभार कुलदीप जी ।
Deleteपत्थरों के शहर बसते गए दिल पत्थर होते गए
ReplyDeleteपत्थर सोचे कैसे
प्रलय के बाद नए विचार उगेंगे
मार्मिक रचना
हार्दिक आभार विभा जी ।
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