विज्ञापनों की विश्वसनीयता
का भी कोई क़ानून सम्मत वैज्ञानिक प्रमाण होना चाहिए. मेरे विचार से केन्द्र सरकार को
फिल्म सेंसर बोर्ड की तरह विज्ञापन सेंसर बोर्ड भी बनाना चाहिए .उपभोक्ता
वस्तुओं के प्र्काशित और प्रसारित होने वाले विज्ञापनों में सेंसर बोर्ड का
प्रमाणपत्र भी जनता को दिखाया जाना चाहिए ताकि फूहड़ और अश्लील विज्ञापनों
को समाज में प्रदूषण फैलाने से रोका जा सके .
आजकल टेलीविजन चैनलों में और अखबारों में तरह -तरह की दवाइयों, कई प्रकार के तेल और साबुनों ,विभिन्न प्रकार के सौंदर्य प्रसाधनों ,बिस्किट आदि पैकेट बन्द खाद्य वस्तुओं के विज्ञापनों की भरमार है. होर्डिंग्स में भी बड़े-बड़े दावों के साथ विज्ञापन प्रदर्शित किए जाते हैं . तन्त्र-मंत्र के विज्ञापन भी छपते और प्रसारित होते हैं .बाजारवाद के इस बेरहम और बेशर्म दौर में अधिकाँश विज्ञापनों की भाषा भी सामाजिक-सांस्कृतिक और पारिवारिक मर्यादाओं के खिलाफ नज़र आती है . कई बार टेलीविजन चैनलों में खबरों और कार्यक्रमों के बीच अचानक ऐसे फूहड़ विज्ञापन आने लगते हैं,जिनके शब्दों को किसी भी संस्कारवान भारतीय घर में अशोभनीय माना जाता है .
औषधियों और उपभोक्ता वस्तुओं के विज्ञापनों में किए जाने वाले दावों की विश्वसनीयता जांचने के लिये दर्शकों और पाठकों के पास तत्काल कोई उपाय नहीं होता .ऐसे में प्रत्येक विज्ञापनदाता के लिए यह कानूनी रूप से अनिवार्य किया जाना चाहिए कि वह अपने विज्ञापन में किए जा रहे दावों का एक विधि सम्मत सरकारी प्रमाण पत्र भी विज्ञापित वस्तु के साथ सार्वजनिक रूप से प्रदर्शित करे ,टेलीविजन के परदे पर भी ऐसे प्रमाणपत्र को प्रसारित किया जाए करे और अगर अखबार में विज्ञापन छपे तो उसके साथ भी ऐसा एक कानूनी प्रमाणपत्र अनिवार्य रूप से छापा जाए..मिसाल के तौर पर अगर किसी टूथ-पेस्ट ,केश-तेल ,दवाई आदि सेहत से जुडी वस्तुओं का विज्ञापन है तो उसके साथ सरकारी मेडिकल बोर्ड का भी प्रमाण-पत्र लगाना अनिवार्य हो.
इसी तरह अन्य वस्तुओं के विज्ञापनों में भी उनसे संबंधित विषयों के तकनीकी जानकारों की एक सरकारी कमेटी उन्हें प्रमाणित करे और उनका प्रमाणपत्र विज्ञापन के साथ प्रसारित-प्रदर्शित और प्रकाशित हो. वस्तुओं के पैकेटों और डिब्बों में भी यह प्रमाणपत्र लगाया जाना चाहिए .संक्षेप में यह कि चाहे प्रिंट मीडिया में छपने वाले विज्ञापन हों ,या इलेक्ट्रानिक मीडिया में प्रदर्शित या प्रसारित होने वाले विज्ञापन , उनके दावों की सच्चाई और उनकी भाषा की मर्यादा को जांचने और उसे अनुमोदित करने के लिए सेंसर बोर्ड जैसी एक सरकारी संस्था बननी चाहिए .यदि विज्ञापनों के लिए कोई सुस्पष्ट नियम-क़ानून बन सके और उन पर निगाह रखने वाली कोई संस्था बन जाए , तो देश की जनता को भ्रामक विज्ञापनों के मायाजाल से काफी हद तक बचाया जा सकेगा .- स्वराज्य करुण
आजकल टेलीविजन चैनलों में और अखबारों में तरह -तरह की दवाइयों, कई प्रकार के तेल और साबुनों ,विभिन्न प्रकार के सौंदर्य प्रसाधनों ,बिस्किट आदि पैकेट बन्द खाद्य वस्तुओं के विज्ञापनों की भरमार है. होर्डिंग्स में भी बड़े-बड़े दावों के साथ विज्ञापन प्रदर्शित किए जाते हैं . तन्त्र-मंत्र के विज्ञापन भी छपते और प्रसारित होते हैं .बाजारवाद के इस बेरहम और बेशर्म दौर में अधिकाँश विज्ञापनों की भाषा भी सामाजिक-सांस्कृतिक और पारिवारिक मर्यादाओं के खिलाफ नज़र आती है . कई बार टेलीविजन चैनलों में खबरों और कार्यक्रमों के बीच अचानक ऐसे फूहड़ विज्ञापन आने लगते हैं,जिनके शब्दों को किसी भी संस्कारवान भारतीय घर में अशोभनीय माना जाता है .
औषधियों और उपभोक्ता वस्तुओं के विज्ञापनों में किए जाने वाले दावों की विश्वसनीयता जांचने के लिये दर्शकों और पाठकों के पास तत्काल कोई उपाय नहीं होता .ऐसे में प्रत्येक विज्ञापनदाता के लिए यह कानूनी रूप से अनिवार्य किया जाना चाहिए कि वह अपने विज्ञापन में किए जा रहे दावों का एक विधि सम्मत सरकारी प्रमाण पत्र भी विज्ञापित वस्तु के साथ सार्वजनिक रूप से प्रदर्शित करे ,टेलीविजन के परदे पर भी ऐसे प्रमाणपत्र को प्रसारित किया जाए करे और अगर अखबार में विज्ञापन छपे तो उसके साथ भी ऐसा एक कानूनी प्रमाणपत्र अनिवार्य रूप से छापा जाए..मिसाल के तौर पर अगर किसी टूथ-पेस्ट ,केश-तेल ,दवाई आदि सेहत से जुडी वस्तुओं का विज्ञापन है तो उसके साथ सरकारी मेडिकल बोर्ड का भी प्रमाण-पत्र लगाना अनिवार्य हो.
इसी तरह अन्य वस्तुओं के विज्ञापनों में भी उनसे संबंधित विषयों के तकनीकी जानकारों की एक सरकारी कमेटी उन्हें प्रमाणित करे और उनका प्रमाणपत्र विज्ञापन के साथ प्रसारित-प्रदर्शित और प्रकाशित हो. वस्तुओं के पैकेटों और डिब्बों में भी यह प्रमाणपत्र लगाया जाना चाहिए .संक्षेप में यह कि चाहे प्रिंट मीडिया में छपने वाले विज्ञापन हों ,या इलेक्ट्रानिक मीडिया में प्रदर्शित या प्रसारित होने वाले विज्ञापन , उनके दावों की सच्चाई और उनकी भाषा की मर्यादा को जांचने और उसे अनुमोदित करने के लिए सेंसर बोर्ड जैसी एक सरकारी संस्था बननी चाहिए .यदि विज्ञापनों के लिए कोई सुस्पष्ट नियम-क़ानून बन सके और उन पर निगाह रखने वाली कोई संस्था बन जाए , तो देश की जनता को भ्रामक विज्ञापनों के मायाजाल से काफी हद तक बचाया जा सकेगा .- स्वराज्य करुण
सही बात है, विज्ञापन भी रेगुलेटेड/नियमित किए जाने चाहिए।
ReplyDeletebhramak vigyapano par rok jaroori hai ..sath hi unki vishvsneeyata badhna bhi ..badiya aalekh ...
ReplyDeleteबिल्कुल सही कहा आपने।
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