चिल्हर
संकट के कारण पैसा तो बाज़ार से कब का गायब हो चुका है . अब तो रूपए का
जमाना है .इसलिए सरदार जी को कहना ही था तो कहते कि रूपए पेड़ पर नहीं लगते
,लेकिन वो ठहरे बेचारे भोले- भंडारी! पुरानी कहावत कह गए -पैसे पेड़ पर नहीं लगते
!दरअसल वह बोलना चाह रहे थे कि रूपए पेड़ पर नहीं लगते .लेकिन मै तो कहूँगा
-रूपए पेड़ पर ही उगते (लगते) है .अगर मुझ पर भरोसा न हो तो जंगल महकमे के
अफसरों से पूछ लीजिए . गड्ढे खोदने का रूपया .फिर उनमें पेड़
लगाने का रूपया ,फिर पेड़ काटने और कटवाने का रूपया! यानी जंगल में लगे हर
पेड़ पर फूलता और फलता है रूपया !जिस पेड़ की डालियों में जितने पत्ते होंगे
,उस पर उतने ही रूपए उगेंगे !.पत्तों के आकार के हिसाब से आप रूपए का मोल
भी निकाल सकते हैं .जैसे सागौन और साल वृक्ष के चौड़े पत्तों के हिसाब से आप
उन्हें एक-एक हजार का नोट मान सकते हैं .रूपये तो पेड़ों पर ही उगते (लगते )
हैं .तभी तो छोटा हो या बड़ा , देश के जंगल महकमे का लगभग हर मुलाजिम मालदार
होता है .रूपयों के पेड़ देखना चाहते हैं तो जंगल नहीं ,जंगल महकमे को देखिये !कितनी तेजी से रूपयों की फसल कट रही है वहाँ ! यह तत्परता ज़रूरी भी है उनके लिए . कारण यह कि उनकी मेहरबानी से रूपयों के सारे पेड़ जितनी जल्दी-जल्दी कटते जा रहे हैं , उतनी जल्दी लग नहीं रहे हैं .एक दिन ऐसा आएगा ,जब पेड़ों के सारे पत्ते झर जाएंगे , रूपयों की लालच में लोग पेड़ों को भी उखाड कर ले जाएंगे और यह जंगल ही खत्म हो जाएगा .जब जंगल ही नहीं रहेगा ,तो जंगल महकमे की भी ज़रूरत नहीं रह जाएगी . यही वजह है कि वो जंगल के पेड़ों पर उगते रूपयों की फसल तेजी से नोच -खसोट कर अपना बैंक बैलेंस बढ़ाते जा रहे हैं .आखिर भविष्य के लिए कुछ तो बचाना होगा . वैसे अकेले जंगल महकमें में ही क्यों ? रूपयों के पेड़ तो आज देश के हर महकमे में लगे हुए हैं . कोई उन्हें हिलाकर रूपये बटोर रहा है .तो कोई उनकी हर डाली को नोच-खसोट कर ! बाकी तो सब राजी-खुशी हैं जी ! -स्वराज्य करुण
लगभग सभी जगह एक सा ही हाल है .आज इसने किया तो कल वो भी कर लेगा . बिना संकोच , बिना शर्म , बिना दुखः . सोचने और भविष्य के लिए चिंता का कारन उत्पन्न करता पोस्ट
ReplyDeleteआपने सही कहा की रूपये पेड़ पर लगते हैं, रुपये खदानों में भी दबे पड़े हैं. उन्होंने तो इसलिए कहा ताकि आम आदमी जंगल की तरफ या खदान की तरफ नज़र न डालें.
ReplyDeletelage gr juba pr n ho tale,bn aadmi kirkiri khud apni aankho ko hi dukhata hai,sundar prastuti
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