Wednesday, October 4, 2023
(आलेख) मेरी समझ से ये हैं घुटनों में दर्द के कुछ असली कारण
(आलेख -स्वराज करुण )
दोस्तों , मैं कोई डॉक्टर या फिजियोथेरेपी का विशेषज्ञ तो नहीं,लेकिन इस युग में घुटनो के दर्द की आम हो चली समस्या को देखकर और सुनकर कह रहा हूँ । मैं स्वयं इस दर्द से गुज़र रहा हूँ। आप कहेंगे कि पर उपदेश ,कुशल बहुतेरे ,लेकिन जैसा कि मैंने महसूस किया है और शायद आप लोग भी मुझसे सहमत होंगे । घुटनों के दर्द की बढ़ती समस्या के कई कारण हो सकते हैं। मेरी समझ से इसके कुछ असली कारण ये हो सकते हैं ।
ज़्यादातर शहरी लोगों में ज़मीन पर पालथी मोड़कर बैठने और पीढ़े में भोजन करने की आदत छूट गयी है। पहले महिलाएँ रसोई घरों में ज़मीन पर बने मिट्टी के गोबर लिपे चूल्हे में लकड़ी से खाना बनाती थीं ,या कोयले की सिगड़ी में । लेकिन अब मिट्टी के चूल्हे लगभग विलुप्त हो चुके हैं तो उनमें उपयोग के लिए लकड़ियों का तो सवाल ही नहीं उठता। पहले हर मोहल्ले में लकड़ी टाल होते थे ,लेकिन वे भी अब कहाँ दिखाई देते हैं?
अब तो लगभग हर किचन में गैस चूल्हा और प्लेटफार्म होता है । महिलाएँ खड़े होकर खाना बनाती हैं। डाइनिंग टेबल सस्ता हो या महँगा ,कई घरों में खाना डाइनिंग टेबल पर ही परोसा जाता है। बच्चे ,बड़े सभी उम्र के लोग उसमें डाइनिंग कुर्सियों पर बैठकर भोजन करते हैं। पालथी मोड़ने की आदत कहाँ रहेगी ? शादी -ब्याह के आयोजनों में पहले मेहमानों को पंगत में बैठाकर बड़े मान-मनुहार के साथ ,प्राकृतिक दोना पत्तलों में बड़े प्रेम से भोजन परोसा जाता था, मेहमान भी पालथी मोड़कर आराम से खाना खाते थे।लेकिन अब तो हर तरफ़ बफे सिस्टम का प्रचलन है । लोग खड़े-खड़े भोजन करते हैं। पालथी मोड़कर बैठने की आदत भी उनमें नहीं रह गयी है।
छोटे-छोटे कामों के लिए पैदल चलने की आदत भी छूटती जा रही है। आजकल कहीं आना -जाना हो तो आजकल बच्चे और बड़े सभी लोग बाइक चलाकर आते - जाते हैं। साइकिल चलाने से पैरों की कसरत हो जाती थी ,लेकिन साइकिल की आदत छूट रही है। आपके शरीर को लाने ले जाने काम तो मशीन कर रही है। पैरों की कसरत भला कैसे हो पाएगी ? यह ज़रूर है कि कहीं बहुत दूर जाना हो तो भले ही बाइक का इस्तेमाल करें ,लेकिन आसपास बाज़ार-दुकान जाना हो,बच्चों को दो चार किलोमीटर की दूरी पर स्कूल भेजना हो तो साइकिल बेहतर है।
हम लोग अपने बचपन के दिनों में पहली से पाँचवी तक फर्श पर टाट पट्टियों में बैठ कर पढ़ाई करते थे ,बेंच और डेस्क पर बैठने का सिलसिला छठवीं से शुरू होता था और कई जगहों पर तो उन कक्षाओं में भी टाट पट्टियों में बैठकर ही बच्चे बड़े आराम से पढ़ाई कर लेते थे। पालथी मोड़कर बैठने की आदत बन जाती थी । लेकिन अब तो ज़्यादातर स्कूलों में डेस्क और बेंच पर बैठकर ही पढ़ाई होती है। घुटनों का मूवमेंट नहीं होता।
लेकिन एक बात ज़रूर अच्छी हुई है कि कई राज्यों में सरकारी योजनाओं के तहत हाई स्कूल और हायर सेकेंडरी कक्षाओं की बालिकाओं को निःशुल्क साइकल दी जा रही है ,जिनका उपयोग भी उनके द्वारा किया जा रहा है ,जो उनकी सेहत के लिए भी अच्छा है।लेकिन कई शहरी घरों में अभिभावक अपने बेटे-बेटियों की जिद के आगे झुककर उनके हाथों में एक्टिवा या स्कूटी जैसे बाइक थमा देते हैं, जिनमें ये बच्चे फर्राटे से आते जाते हैं और कई बार दुर्घटनाग्रस्त भी हो जाते हैं। साइकिल से दुर्घटनाओं की आशंका काफी कम होती है।यह पैरों के व्यायाम का भी एक अच्छा साधन है।
- स्वराज करुण
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