(आलेख : स्वराज करुण )
जल और वन मिलकर ही न सिर्फ़ जीवन का निर्माण करते हैं ,बल्कि उसकी रक्षा भी करते हैं। थोड़ा समय निकाल कर हमें अपने आस पास के तमाम जल स्रोतों के संरक्षण और उनकी शुद्धता के बारे में सोचना चाहिए। स्थानीय तालाबों और नदी --नालों की हालत पर विचार करना चाहिए।
अच्छी सेहत के लिए अच्छी हवा के साथ अच्छा यानी साफ पानी भी जरूरी है। आज की दुनिया में कई बीमारियाँ वायु प्रदूषण और जल -प्रदूषण के कारण भी हो रही हैं। जब हमारे नदी -नाले प्रदूषित होंगे तो समुद्रों को प्रदूषित होने से भला कौन बचा पाएगा ? उनका पानी तो आखिर इन्हीं समुद्रों में ही जाता है। आधुनिक जीवन शैली का अभिन्न अंग बन चुके प्लास्टिक और पॉलीथिन से भी जल प्रदूषण का कारण बन रहे है। अब समुद्रों के भीतर भी प्लास्टिक और पॉलीथिन के पहाड़ खड़े होने लगे हैं। देर सबेर इसका भी खमियाजा हमें भुगतना ही पड़ेगा ।
कई नदियाँ ,कई बरसाती नाले और कई तालाब प्रदूषण के कारण मरणासन्न होते जा रहे हैं। भूमिगत जल स्तर के लगातार घटते चले जाने का भी यह एक मुख्य कारण है। नलकूपों और हैंडपम्पों के इस आधुनिक युग में कुओं को तो हम लगभग भूल ही चुके हैं ,जबकि भू -जल स्तर को बनाए और बचाए रखने में कुओं का भी बड़ा योगदान रहता था।
विलुप्त हो रही सामूहिक श्रमदान की संस्कृति
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जल स्रोतों की साफ -सफाई के लिए पहले सामूहिक श्रमदान भी होता था। लेकिन जन -सहयोग पर आधारित श्रमदान की वह शानदार संस्कृति भी अब लगभग विलुप्त -सी हो गयी है और लगता है कि सब कुछ सरकारों के भरोसे छोड़ दिया गया है । सरकारी मदद एक सीमा तक हो सकती है ,लेकिन क्या नागरिक होने के नाते हमारी कोई ज़िम्मेदारी नहीं बनती ? हमें अपनी न सही ,लेकिन आने वाली पीढ़ियों के लिए भी तो सोचना चाहिए। हम उनके जीवन के लिए कैसा जल स्रोत छोड़कर जाएंगे ? बारिश के पानी को सहेजने के लिए भी जल स्रोतों को स्वच्छ बनाए रखना जरूरी है। नदी -नाले और तालाब हमारी संस्कृति का अभिन्न अंग रहे हैं । कई तरह के महत्वपूर्ण धार्मिक अनुष्ठान इन्हीं के किनारे पर आयोजित होते हैं। कई देवी देवताओं के मंदिर भी इन्हीं के तट पर स्थित होते हैं।
भक्त लोग धार्मिक मामलों में जितने संवेदनशील बनते हैं , तथाकथित धर्म रक्षा के लिए मरने -मारने पर उतारू हो जाते हैं ,उतनी संवेदनशीलता अपने इन पवित्र स्थलों के आस -पास के जल स्रोतों की साफ -सफाई के लिए क्यों नहीं दिखाते ? कई तालाबों के आस पास रहने वाले लोग ही उनके किनारे अपने घरों का कचरा डालते रहते हैं।
तालाबों की छाती पर
सीमेंट -कांक्रीट के पहाड़
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पिछले कुछ वर्षों में देश के कई शहरों में कुछ अदृश्य ताकतों ने बड़ी चालाकी से पुराने और ऐतिहासिक
तालाबों की भूमि पर कचरा डाल डाल कर उन्हें पटवा दिया और मौका देखकर उनमें शॉपिंग कॉम्प्लेक्स या आवासीय कॉलोनियाँ भी खड़ी कर दी ! जब तालाबों की छाती पर मानव निर्मित सीमेंट -कांक्रीट के पहाड़ खड़े हो जाएंगे ,तब ऐसे में शहरों का भू -जल स्तर भला कैसे बढ पाएगा ?
क्या से क्या हो गए हमारे नदी -तालाब ?
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जरा सोचिए , पहले हमारे गाँवों और शहरों में कितने तालाब थे और आज कितने हैं ? क्या से क्या हो गए हमारे नदी -तालाब ?कई कस्बों और शहरों में तो बसाहटों की नालियों का अंतिम छोर तालाबों से जोड़कर पूरा गंदा पानी उनमें डाल दिया जाता है । कई शहरों की नालियाँ भी नदियों से जोड़कर शहर भर का गंदा पानी उनमें बहा दिया जाता है। गंगा यमुना जैसी पवित्र नदियों के किनारे संचालित कई उद्योगों का गंदा पानी उनमें मिलने की वजह से ये नदियाँ भी जल प्रदूषण की बीमारी से पीड़ित हैं। हालांकि उन्हें प्रदूषण से बचाने के प्रयास भी हो रहे हैं। लेकिन कुछ एक शहरों को छोड़कर अधिकांश इलाकों में ठोस पहल नज़र नहीं आ रही है।
इंदौर में हुई अनुकरणीय पहल :
दो नदियों को नया जीवन
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कुछ शहरों में इसके लिए जरूर सराहनीय और अनुकरणीय पहल भी हो रही है।जैसे मध्यप्रदेश की आर्थिक राजधानी इंदौर में कान्ह और सरस्वती नामक दो छोटी नदियों को प्रदूषण से मुक्त कर उन्हें नया जीवन दिया गया है। इस बड़ी कामयाबी की कहानी मुझे दैनिक नईदुनिया में 15 मार्च 2022 में पढ़ने को मिली।
कान्ह की लम्बाई 21 किलोमीटर और सरस्वती की 15 किलोमीटर है। इंदौर शहर के 5500 बड़े और 1800 छोटे तथा घरेलू नालों का गंदा पानी इन दोनों नदियों में बहाया जाता था। इसके फलस्वरूप दोनों मरणासन्न हो चुकी थीं। इनसे जुड़े शहरी गंदे पानी के नालों को बंद कर दिया गया ताकि नदियों को स्वच्छ बनाया जा सके।
गंदे पानी के उपचार के लिए उसे 7 सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांटों में भेजकर उसकी सफाई की जाती है और इस स्वच्छ जल को दोनों नदियों में प्रवाहित किया जाता है। सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांटों में उपचारित 312 एमएलडी पानी हर रोज दोनों नदियों में पहुँचता है। सरस्वती नदी वर्ष 1970 तक एकदम स्वच्छ रहती थी । अब वह अपने उसी पुराने निर्मल स्वरूप में लौट आयी है। इसी तरह 21 किलोमीटर लम्बी कान्ह नदी का अधिकांश हिस्सा भी स्वच्छ हो चुका है । इसके लिए इंदौर नगर निगम की सराहना की जानी चाहिए। वैसे भी स्वच्छ भारत अभियान के तहत इंदौर लगातार देश का सर्वाधिक साफ -सुथरा शहर बना हुआ है । इसके लिए उसे कई बार राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिल चुके हैं। इस बार केन्द्र ने उसे इन नदियों को प्रदूषण मुक्त करने शहरी आबादी को स्वच्छ जल आपूर्ति के लिए भी वाटर -प्लस नगर निगम के रूप में सम्मानित किया है।
उल्लेखनीय है कि भारत सरकार ने देश के प्रमुख शहरों को जल प्रदूषण से बचाने के लिए अमृत योजना की शुरुआत की है।इस योजना के तहत नगर निगमों को केन्द्र से आर्थिक सहायता भी मिलती है। इंदौर नगर निगम ने अपनी दोनों नदियों के पुनर्जीवन के लिए इस योजना से भी राशि प्राप्त की। महानगर के गंदे पानी की निकासी व्यवस्था के बेहतर बनाने के लिए अमृत मिशन के तहत 220 करोड़ रुपए खर्च कर सीवरेज नेटवर्क का विस्तार किया गया और 7 सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट बनाए गए। जल स्रोतों को बचाने और स्वच्छ बनाने की दिशा में इंदौर वालों का यह निश्चित रूप से प्रेरणादायक है।बशर्ते आज विश्व जल दिवस के मौके पर हम सब उनसे प्रेरणा ल सकें।
-- स्वराज करुण
आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (23-03-2022) को चर्चा मंच "कवि कुछ ऐसा करिये गान" (चर्चा-अंक 4378) पर भी होगी!
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सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयं
जल के महत्व को दर्शाती सार्थक पोस्ट
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