(स्वराज करुण )
मित्रों ! आइए ,आज दीवाली के दिन मैं आपको आधुनिक महाभारत के आधुनिक दानवीर और उसके मातहत ,परम भक्त सुदामा की कथा सुनाता हूँ। वैसे यह कथा ज़्यादा लम्बी नहीं है। इसलिए कृपया धैर्यपूर्वक सुनिए ।
हस्तिनापुर में दानवीर नामक एक राजकीय पदाधिकारी हुआ करता था। नाम उसका दानवीर जरूर था ,लेकिन काम उसके नाम के बिल्कुल विपरीत था। वह खुद कभी दान -दक्षिणा नहीं देता था ,बल्कि अपना काम करवाने के लिए आने वाले ही उसे दान -दक्षिणा चढ़ाया करते थे ,तब कहीं उनका काम हो पाता था। यहाँ तक कि उसके मातहत भी अपने काम के लिए उसे दक्षिणा चढ़ाया करते थे। तो
एक दिन दानवीर का एक मातहत परम भक्त सुदामा अपने किसी अटके हुए काम के सिलसिले में उसे निर्धारित दक्षिणा चढ़ाने पहुँचा । उस दिन दीपावली थी। दानवीर के आलीशान बंगले में भी दीपोत्सव की रंग -बिरंगी तैयारियां चल रही थी। मातहत को देखते ही दानवीर की बाँछे खिल गयीं। उसने प्रेमपूर्वक उससे कहा --"आओ सुदामा ,आओ ! मैं आज तुम्हें ही याद कर रहा था। " इतना कहकर उसने सुदामा के हाथों में रखे प्लास्टिक के थैले को कनखियों से देखा। फिर उससे पूछा -"कहो सुदामा ! कैसे आना हुआ। " इस पर सुदामा ने सकुचाते हुए अपने महीनों से अटके काम के बारे में बताया और कहा - "महाराज! ज्यादा तो नहीं सिर्फ़ 10 हजार रुपये दक्षिणा के लिए किसी से उधार लेकर लाया हूँ।" इतना कहकर सुदामा ने दानवीर के श्रीचरणों में दक्षिणा की राशि अर्पित कर दी। तब दानवीर ने उसे गले लगाते हुए कहा - " सुदामा ! तुम्हारा काम अब हो गया समझो। बेफिक्र होकर घर चले जाओ। " सुदामा वहाँ से निकल गया। जैसे ही वह दानवीर के बंगले के बाहर पहुँचा ,संतरी ने दौड़कर उससे कहा --" सर जी ! आपको महाराज याद कर रहे हैं। "
सुदामा मुड़कर फिर दानवीर के 'हुज़ूर ' में पहुँचा ,जहाँ वह उसके दिए हुए 10 हजार रुपयों को गिनकर रहा था। पूरा गिन चुकने के बाद उसने नोटों के उस बंडल से एक हजार रुपए निकाले और सुदामा को प्यार से डाँटते हुए कहा -- "अरे भाई , क्या तुम अपने बीवी ,बच्चों के साथ दीवाली नहीं मनाओगे ?अगर पूरे 10 हजार मुझे दे दोगे तो उनके लिए आज त्यौहार के दिन मिठाईयां और पटाखे कैसे खरीदोगे ? इसलिए रखो ये एक हजार रुपए और जाओ ,अपने परिवार के साथ दीवाली मनाओ। " इतना कहकर दानवीर ने सुदामा के हाथों में एक हजार रुपए रख दिए और उसके कंधों पर हाथ रखकर स्नेह जताया। दानवीर की इस सदाशयता से गदगद होकर सुदामा अपने गाँव लौट गया। इधर दानवीर अपनी बीवी से कह रहा था --चलो , आज दीवाली के दिन 9000 हजार रुपए की आवक तो हुई। उधर सुदामा गाँव पहुँचकर अपने बीवी -बच्चों के सामने साहब की इस 'उदारता 'का बखान किए जा रहा था ।
(डिस्क्लेमर : दोस्तों ! इस लघु कथा से डीजल ,पेट्रोल की कीमतों में आज की गयी मामूली कटौती का कोई संबंध नहीं है ,वैसे आप अपने हिसाब से संबंध जोड़ भी सकते हैं ।)--स्वराज करुण
सुन्दर
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