आधुनिकता की दौड़ में
सब लगे हुए हैं
एक अंतहीन ,दिशाहीन होड़ में !
धकिया कर एक-दूजे को ,
सब चाहते हैं एक-दूजे से आगे
निकल जाना ,
ईमानदारी को सूखी रोटी के बजाय
बेईमानी की मलाई खाना !
दो नम्बर की कमाई को ही
मानते हैं सब कामयाबी का पैमाना !
पनघट भी सिमट गए
सबके सब नलों में
घाट का पत्थर भी
गायब हुआ पलों में !
नदियों के नसीब में
अब रेत का ही समंदर है ,
सारा का सारा पानी
उसकी आँखों के अन्दर है
क्योंकि ,झरनों का
जंगलों का और नदियों का
हत्यारा सम्मानित सिकन्दर है !
--- स्वराज करुण
सब लगे हुए हैं
एक अंतहीन ,दिशाहीन होड़ में !
धकिया कर एक-दूजे को ,
सब चाहते हैं एक-दूजे से आगे
निकल जाना ,
ईमानदारी को सूखी रोटी के बजाय
बेईमानी की मलाई खाना !
दो नम्बर की कमाई को ही
मानते हैं सब कामयाबी का पैमाना !
पनघट भी सिमट गए
सबके सब नलों में
घाट का पत्थर भी
गायब हुआ पलों में !
नदियों के नसीब में
अब रेत का ही समंदर है ,
सारा का सारा पानी
उसकी आँखों के अन्दर है
क्योंकि ,झरनों का
जंगलों का और नदियों का
हत्यारा सम्मानित सिकन्दर है !
--- स्वराज करुण
बहुत सुन्दर
ReplyDeleteआपकी रचना बहुत सुन्दर है। हम चाहते हैं की आपकी इस पोस्ट को ओर भी लोग पढे । इसलिए आपकी पोस्ट को "पाँच लिंको का आनंद पर लिंक कर रहे है आप भी कल रविवार 12 फरवरी 2017 को ब्लाग पर जरूर पधारे ।
ReplyDeleteसुन्दर।
ReplyDelete