Friday, September 2, 2016
Tuesday, February 23, 2016
असली देशभक्त कौन ?
शब्दों के तीर एक-दूसरे पर खूब चल रहे हैं . आरोप-प्रत्यारोप का दौर जारी है . टेलीविजन चैनलों और अखबारों के पन्नों पर शब्दों की बाजीगरी और लांछन -प्रतिलांछनों का शोर इतना है कि सही-गलत की पहचान करना बहुत कठिन होता जा रहा है ,लेकिन थोड़ी कोशिश करें तो 'देशभक्तों ' और देशद्रोहियों की पहचान आसानी से की जा सकती है. असली देशभक्त कौन ? पहचानने के लिए मैंने २२ बिंदु तय किए हैं, जो इस प्रकार हैं --
(१ ) जिन्होंने देश की आज़ादी के लिए अपने प्राणों की बाजी लगा दी !
(२ ) वह सैनिक जो देश की सरहदों पर कठिन से कठिन परिस्थतियों में भी मातृभूमि की रक्षा के लिए सदैव तत्पर रहते हैं ,जिनकी सजगता और सतर्कता की वजह से हम देशवासी चैन की नींद सोते हैं ,लोकतंत्र की खुली हवा में सांस लेते है .
(३ ) वह किसान जो खेतों को अपने पसीने से सींच कर देशवासियों के लिए अनाज उपजाता है .
(४ ) वह मजदूर जिस के पसीने की बुनियाद पर सडक, पुल-पुलिया और बड़ी-बड़ी इमारतें बनती हैं ,जो खेतों के साथ-साथ कारखानों में भी पसीना बहाता है !
(५ ) ऐसे लोग जो किसानों और मजदूरों की जमीन हड़पने का घटिया काम नहीं करते !
(६ ) ऐसे अधिकारी और कर्मचारी ,जो कभी रिश्वत नहीं लेते और भ्रष्टाचार नहीं करते और पूरी ईमानदारी से अपने सरकारी कर्त्तव्यों का निर्वहन करते हैं .
(७ ) ऐसे वकील जो पेशे और पेशी के नाम पर अपने गरीब मुवक्किलों को अपनी चालबाजी का शिकार नहीं बनाते और उनसे मनमाना रुपया नहीं ऐंठते !
(८ ) ऐसे लोग जो आरक्षण या किसी और मुद्दे पर अपने आन्दोलनों मेंहिंसा का सहारा नहीं लेते और ट्रेनों ,बसों और दूसरी सार्वजनिक सम्पत्तियों को नुकसान नहीं पहुंचाते .
(९ ) ऐसे साहित्यकार और पत्रकार जो हर हालत में सिर्फ और सिर्फ सच्चाई लिखते हैं ! हालांकि साहित्य और पत्रकारिता में अब ऐसी प्रजाति विलुप्त होती जा रही है .
(१० ) ऐसे प्राध्यापक ,जो अपने कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में विद्यार्थियों को सिर्फ और सिर्फ शिक्षा देने का कार्य करते हैं और उन्हें घटिया राजनीति नहीं सिखाते !
(१ ) जिन्होंने देश की आज़ादी के लिए अपने प्राणों की बाजी लगा दी !
(२ ) वह सैनिक जो देश की सरहदों पर कठिन से कठिन परिस्थतियों में भी मातृभूमि की रक्षा के लिए सदैव तत्पर रहते हैं ,जिनकी सजगता और सतर्कता की वजह से हम देशवासी चैन की नींद सोते हैं ,लोकतंत्र की खुली हवा में सांस लेते है .
(३ ) वह किसान जो खेतों को अपने पसीने से सींच कर देशवासियों के लिए अनाज उपजाता है .
(४ ) वह मजदूर जिस के पसीने की बुनियाद पर सडक, पुल-पुलिया और बड़ी-बड़ी इमारतें बनती हैं ,जो खेतों के साथ-साथ कारखानों में भी पसीना बहाता है !
(५ ) ऐसे लोग जो किसानों और मजदूरों की जमीन हड़पने का घटिया काम नहीं करते !
(६ ) ऐसे अधिकारी और कर्मचारी ,जो कभी रिश्वत नहीं लेते और भ्रष्टाचार नहीं करते और पूरी ईमानदारी से अपने सरकारी कर्त्तव्यों का निर्वहन करते हैं .
(७ ) ऐसे वकील जो पेशे और पेशी के नाम पर अपने गरीब मुवक्किलों को अपनी चालबाजी का शिकार नहीं बनाते और उनसे मनमाना रुपया नहीं ऐंठते !
(८ ) ऐसे लोग जो आरक्षण या किसी और मुद्दे पर अपने आन्दोलनों मेंहिंसा का सहारा नहीं लेते और ट्रेनों ,बसों और दूसरी सार्वजनिक सम्पत्तियों को नुकसान नहीं पहुंचाते .
(९ ) ऐसे साहित्यकार और पत्रकार जो हर हालत में सिर्फ और सिर्फ सच्चाई लिखते हैं ! हालांकि साहित्य और पत्रकारिता में अब ऐसी प्रजाति विलुप्त होती जा रही है .
(१० ) ऐसे प्राध्यापक ,जो अपने कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में विद्यार्थियों को सिर्फ और सिर्फ शिक्षा देने का कार्य करते हैं और उन्हें घटिया राजनीति नहीं सिखाते !
(११ ) ) ऐसे डॉक्टर जो मरीजों की गरीबी का बेजा फायदा नहीं उठाते और सेवा भावना से उनका इलाज करते हैं !
(१२ ) ऐसे मेडिकल उद्योग और उनके संचालक ,जो नकली दवाई नहीं बनाते और नहीं बिकवाते और असली दवाइयों की मनमानी कीमत नहीं वसूलते !
(१३ ) ऐसे नागरिक जो सार्वजनिक स्थानों पर गंदगी नहीं फैलाते ,जो नालियों में कचरा नहीं फेंकते !
(१४ ) ऐसे फैक्ट्री मालिक जो पर्यावरण से खिलवाड़ नहीं करते !
(१५ ) ऐसे लोग जो पर्यावरण और हरियाली की रक्षा के लिए हमेशा चिंतित रहते हैं और इसके लिए तत्पर रहते हैं !
(१६ ) ऐसे मालिक ,जो अपने नौकरों को उनकी उचित रोजी-मजदूरी देने में कंजूसी नहीं करते !
( १७ ) ऐसे व्यापारी जो शराब का कारोबार नहीं करते !
(१८ ) ऐसे दुकानदार जो अपने ग्राहकों से कभी बेईमानी नहीं करते !
(१९ ) ऐसे नेता जो जनता से झूठे वादे नहीं करते और उसे झूठे सपने नहीं दिखाते !
(२० ) ऐसे माता-पिता और ऐसे परिवार जो अपने बच्चों को अंग्रेजी नहीं ,बल्कि अपनी राष्ट्रभाषा हिन्दी और अपनी प्रादेशिक भाषाओं की पढाई के लिए प्रेरित करते हैं और जो उन्हें ऐसे विद्यालयों में भर्ती करते हैं ,जहां हिन्दी और अन्य भारतीय भाषाओं में पढाई होती है !
(२१ ) ऐसे फ़िल्मी कलाकार जो कला-संस्कृति के नाम पर समाज में अश्लीलता नहीं फैलाते !
(२२ ) ऐसे लोग जो कृषि-प्रधान इस देश में गोवंश की रक्षा को अपना कर्त्तव्य मानते हैं !
यह सूची और भी लम्बी हो सकती है .जितना मुझे ख्याल आया , मैंने लिख दिया .अगर आप चाहें तो इसमें अपनी ओर से भी कुछ बिंदु जोड़कर सूची की लम्बाई बढ़ा सकते हैं . इससे देशभक्तों की पहचान तय करना और भी ज्यादा आसान हो जाएगा !
--स्वराज करुण
(१२ ) ऐसे मेडिकल उद्योग और उनके संचालक ,जो नकली दवाई नहीं बनाते और नहीं बिकवाते और असली दवाइयों की मनमानी कीमत नहीं वसूलते !
(१३ ) ऐसे नागरिक जो सार्वजनिक स्थानों पर गंदगी नहीं फैलाते ,जो नालियों में कचरा नहीं फेंकते !
(१४ ) ऐसे फैक्ट्री मालिक जो पर्यावरण से खिलवाड़ नहीं करते !
(१५ ) ऐसे लोग जो पर्यावरण और हरियाली की रक्षा के लिए हमेशा चिंतित रहते हैं और इसके लिए तत्पर रहते हैं !
(१६ ) ऐसे मालिक ,जो अपने नौकरों को उनकी उचित रोजी-मजदूरी देने में कंजूसी नहीं करते !
( १७ ) ऐसे व्यापारी जो शराब का कारोबार नहीं करते !
(१८ ) ऐसे दुकानदार जो अपने ग्राहकों से कभी बेईमानी नहीं करते !
(१९ ) ऐसे नेता जो जनता से झूठे वादे नहीं करते और उसे झूठे सपने नहीं दिखाते !
(२० ) ऐसे माता-पिता और ऐसे परिवार जो अपने बच्चों को अंग्रेजी नहीं ,बल्कि अपनी राष्ट्रभाषा हिन्दी और अपनी प्रादेशिक भाषाओं की पढाई के लिए प्रेरित करते हैं और जो उन्हें ऐसे विद्यालयों में भर्ती करते हैं ,जहां हिन्दी और अन्य भारतीय भाषाओं में पढाई होती है !
(२१ ) ऐसे फ़िल्मी कलाकार जो कला-संस्कृति के नाम पर समाज में अश्लीलता नहीं फैलाते !
(२२ ) ऐसे लोग जो कृषि-प्रधान इस देश में गोवंश की रक्षा को अपना कर्त्तव्य मानते हैं !
यह सूची और भी लम्बी हो सकती है .जितना मुझे ख्याल आया , मैंने लिख दिया .अगर आप चाहें तो इसमें अपनी ओर से भी कुछ बिंदु जोड़कर सूची की लम्बाई बढ़ा सकते हैं . इससे देशभक्तों की पहचान तय करना और भी ज्यादा आसान हो जाएगा !
--स्वराज करुण
Thursday, January 21, 2016
क्या झूठ और सच के भी होते हैं कई रंग ?
हे राजन ! क्या झूठ और सच के भी कई रंग होते हैं ? किसी बात को झूठलाने के लिए ऐसा क्यों बोला जाता है कि यह सरासर 'सफेद झूठ' है ? झूठ के लिए सिर्फ सफेद रंग का इस्तेमाल क्यों होता है ? क्या 'सफेद झूठ' के अलावा लाल,पीला ,नीला ,हरा या गुलाबी झूठ भी होता है ? अगर झूठ रंग-बिरंगा होता है तो 'सच' के भी कई रंग होते होंगे ? जैसे सफेद झूठ की तर्ज पर सफेद सच ?
-स्वराज्य करुण
Sunday, January 17, 2016
थर-थर काँपे भारत माई ..!
समरथ को नहीं दोष गोसाईं ,
देश की दौलत मिलकर खाई !
सबका हिस्सा आधा -आधा
सबके सब मौसेरे भाई !
उनका हर आयोजन रंगीला,
शादी हो या कोई सगाई ।
शान-शौकत देख के उनकी
थर -थर काँपे भारत माई ।
लूट रहे जो देश की धरती ,
उनके घर में दूध -मलाई ।
गाँव -शहर सब दूर मची है ,
मारा-मारी और नंगाई ।
निर्धन -निर्बल हुए निराश
अब देख -देख उनकी परछाई !
-- स्वराज्य करुण
देश की दौलत मिलकर खाई !
सबका हिस्सा आधा -आधा
सबके सब मौसेरे भाई !
उनका हर आयोजन रंगीला,
शादी हो या कोई सगाई ।
शान-शौकत देख के उनकी
थर -थर काँपे भारत माई ।
लूट रहे जो देश की धरती ,
उनके घर में दूध -मलाई ।
गाँव -शहर सब दूर मची है ,
मारा-मारी और नंगाई ।
निर्धन -निर्बल हुए निराश
अब देख -देख उनकी परछाई !
-- स्वराज्य करुण
Tuesday, January 12, 2016
प्रश्न-गीत !
एक अनबूझी पहेली,
कैसे बनती है हवेली!
झोपड़ी की आँखों में
प्रश्न ही प्रश्न हैं
महलों में उनके बस
जश्न ही जश्न है !
लूट की दौलत ही
उनकी है सहेली !
तरक्की में उनकी तो
रिश्वत की ताकत है !
कहता है कौन कहो
किसकी हिमाकत है !
सवालों की अनुगूंज
रह गयी अकेली !
-स्वराज्य करुण
Thursday, January 7, 2016
(ग़ज़ल ) तुमने क्या कर डाला है !
हाय मेरे वतन के लोगों , तुमने क्या कर डाला है ,
कदम-कदम पर आज हर तरफ उनका बोलबाला है !
चालें उनकी समझ न आयी हमको भी और तुमको भी
इसीलिए तो गले में उनके फूलों की हर दिन माला है !
पहले तो समझा था हमने प्यार का वो महासागर हैं ,
हमें क्या पता दिल में उनके नफरत का परनाला है !
हर आफिस के हर कमरे में महफ़िल सौदेबाजों की ,
हर सौदागर सिंहासनों का रिश्ते में लगता साला है !
नीलाम वतन को कर देंगे ,ये ठान के आकर बैठे हैं ,
फिर भी क्यों आँखों में हमारे भ्रम का छाया जाला है !
मिठलबरों की भीड़ है उनके आगे-पीछे ,आजू-बाजू ,
इस मायावी दुनिया में उनका हर कोई हमप्याला है !
उनकी बातों से लगता था जैसे कोई फरिश्ता हो,
अब लगता है जैसे उनके दिल में भी धन काला है !
कारगुजारी उनकी फिर भी खुल्लमखुल्ला जारी है ,
कुछ कहने वालों के मुंह पर सोने का लटका ताला है !
--- स्वराज्य करुण
कदम-कदम पर आज हर तरफ उनका बोलबाला है !
चालें उनकी समझ न आयी हमको भी और तुमको भी
इसीलिए तो गले में उनके फूलों की हर दिन माला है !
पहले तो समझा था हमने प्यार का वो महासागर हैं ,
हमें क्या पता दिल में उनके नफरत का परनाला है !
हर आफिस के हर कमरे में महफ़िल सौदेबाजों की ,
हर सौदागर सिंहासनों का रिश्ते में लगता साला है !
नीलाम वतन को कर देंगे ,ये ठान के आकर बैठे हैं ,
फिर भी क्यों आँखों में हमारे भ्रम का छाया जाला है !
मिठलबरों की भीड़ है उनके आगे-पीछे ,आजू-बाजू ,
इस मायावी दुनिया में उनका हर कोई हमप्याला है !
उनकी बातों से लगता था जैसे कोई फरिश्ता हो,
अब लगता है जैसे उनके दिल में भी धन काला है !
कारगुजारी उनकी फिर भी खुल्लमखुल्ला जारी है ,
कुछ कहने वालों के मुंह पर सोने का लटका ताला है !
--- स्वराज्य करुण
Wednesday, January 6, 2016
(गीत) उत्तर है लापता !
कहाँ है क्या पता , उत्तर है लापता !
प्रश्नों के जंगल में
खामोशी फैली है ,
गंगा की तरह
हर नदी आज मैली है !
कौन है जो लूट रहा नदी को बता !
सपनों की आँखों में
टूटन ही टूटन है ,
कसमों की थाली में
वादों की जूठन है !
झुलस गयी आंगन में प्यार की लता !
सीने पर कितने ही
जख्मों के हुए निशान,
माटी का आंचल भी
हो गया लहुलुहान !
आँखों से आकाश की , बरस रही घटा !
-स्वराज्य करुण
प्रश्नों के जंगल में
खामोशी फैली है ,
गंगा की तरह
हर नदी आज मैली है !
कौन है जो लूट रहा नदी को बता !
सपनों की आँखों में
टूटन ही टूटन है ,
कसमों की थाली में
वादों की जूठन है !
झुलस गयी आंगन में प्यार की लता !
सीने पर कितने ही
जख्मों के हुए निशान,
माटी का आंचल भी
हो गया लहुलुहान !
आँखों से आकाश की , बरस रही घटा !
-स्वराज्य करुण
मायावी शिकारी फेंक रहे जाल !
कभी नज़र आता था
नीला आकाश ,
अब नज़र आते है खूंखार चेहरे !
न जाने किसकी लगी नज़र
झील के शांत स्वच्छ पानी को ,
गुनगुनाती लहरों को ,
हरे-भरे किनारों को ,
वसंत की बहारों को !
अब न पंछियों के गीत हैं ,
न भौरों का संगीत ,
बागों की तितलियाँ
झील की मछलियाँ
काँप रही भयभीत !
मायावी शिकारी फेंक रहे जाल
तितलियों और मछलियों को
को पता नहीं उनकी चाल
इंसानियत की झीलों को
भला कौन बचाएगा ,
जो भी यहाँ आएगा ,
बटोरकर सब कुछ ले जाएगा !
-- स्वराज्य करुण
नीला आकाश ,
अब नज़र आते है खूंखार चेहरे !
न जाने किसकी लगी नज़र
झील के शांत स्वच्छ पानी को ,
गुनगुनाती लहरों को ,
हरे-भरे किनारों को ,
वसंत की बहारों को !
अब न पंछियों के गीत हैं ,
न भौरों का संगीत ,
बागों की तितलियाँ
झील की मछलियाँ
काँप रही भयभीत !
मायावी शिकारी फेंक रहे जाल
तितलियों और मछलियों को
को पता नहीं उनकी चाल
इंसानियत की झीलों को
भला कौन बचाएगा ,
जो भी यहाँ आएगा ,
बटोरकर सब कुछ ले जाएगा !
-- स्वराज्य करुण
Tuesday, January 5, 2016
क्या फर्क पड़ता है ?
समय की स्याही से लिखे
इतिहास के पन्ने
सूखकर पीले पड़ जाते हैं
और पतझर के पत्तों -सा झर जाते हैं !
टेप काण्ड हो या रेप काण्ड .
उनका भी हमेशा यही हश्र हुआ है
और आगे भी होना है
जनता की किस्मत में रोना ही रोना है .
बयानवीरों के शोर में
डूबकर खो जाती है
दरिंदों के पंजों में दबे कुचले
परिंदों की आवाज ,
बेजुबान तितलियाँ किसे सुनाएं अपना दर्द ,
दुनिया तो देखती है
सिर्फ उनके पंखों के रंग !
उसे पसंद नहीं देखना उनके
ज़िंदा रहने की जद्दोज़हद का जंग !
टेप हो या रेप ,क्या फर्क पड़ता है ,
गुनहगारों की आँखों में मुस्कुराहट है,
सिर्फ और सिर्फ जनता के चेहरे पर
बेचैनी और घबराहट है !
-स्वराज्य करुण
इतिहास के पन्ने
सूखकर पीले पड़ जाते हैं
और पतझर के पत्तों -सा झर जाते हैं !
टेप काण्ड हो या रेप काण्ड .
उनका भी हमेशा यही हश्र हुआ है
और आगे भी होना है
जनता की किस्मत में रोना ही रोना है .
बयानवीरों के शोर में
डूबकर खो जाती है
दरिंदों के पंजों में दबे कुचले
परिंदों की आवाज ,
बेजुबान तितलियाँ किसे सुनाएं अपना दर्द ,
दुनिया तो देखती है
सिर्फ उनके पंखों के रंग !
उसे पसंद नहीं देखना उनके
ज़िंदा रहने की जद्दोज़हद का जंग !
टेप हो या रेप ,क्या फर्क पड़ता है ,
गुनहगारों की आँखों में मुस्कुराहट है,
सिर्फ और सिर्फ जनता के चेहरे पर
बेचैनी और घबराहट है !
-स्वराज्य करुण
Sunday, January 3, 2016
चोर-चोर मौसेरे भाई !
चोर-चोर सब मौसेरे भाई
भ्रष्टाचार की खूब कमाई .!
गज़ब एकता उनमे होती ,
मिलकर खाते खीर मलाई !
खिलाफ उनके जो कोई बोले,
सब मिल उस पर करें चढाई !
कमाऊ पूत -सा भ्रष्टाचारी
अफसर, नेता घर जंवाई !
चोरों के इस चक्रव्यूह में
अभिमन्यु ने जान गंवाई !
-- स्वराज्य करुण
भ्रष्टाचार की खूब कमाई .!
गज़ब एकता उनमे होती ,
मिलकर खाते खीर मलाई !
खिलाफ उनके जो कोई बोले,
सब मिल उस पर करें चढाई !
कमाऊ पूत -सा भ्रष्टाचारी
अफसर, नेता घर जंवाई !
चोरों के इस चक्रव्यूह में
अभिमन्यु ने जान गंवाई !
-- स्वराज्य करुण
Friday, January 1, 2016
उल्टा चोर कोतवाल को डांटे !
उल्टा चोर कोतवाल को डांटे
चीन्ह -चीन्ह के रेवड़ी बांटे !
इस युग का दस्तूर है देखो ,
हम कितने मजबूर हैं देखो !
फूलों को घेरे कांटे ही कांटे,
ऐसे में पुष्प हम कैसे छांटे !
चीन्ह -चीन्ह के रेवड़ी बांटे !
इस युग का दस्तूर है देखो ,
हम कितने मजबूर हैं देखो !
फूलों को घेरे कांटे ही कांटे,
ऐसे में पुष्प हम कैसे छांटे !
एक से एक है उनकी करनी
फिर भी शान से आते-जाते !
जितना हमारा मासिक वेतन
हर रोज वो उतना पीते-खाते
उल्टा चोर कोतवाल को डांटे
चीन्ह - चीन्ह के रेवड़ी बांटे !
उल्टा चोर कोतवाल को डांटे
चीन्ह - चीन्ह के रेवड़ी बांटे !
-स्वराज्य करुण