हर तरफ बह रहा
सिर्फ बेगुनाहों का रक्त ,
देशभक्ति और देशद्रोह की
परिभाषा नये सिरे से
तय करने का आ गया है वक्त !
लगता है इस गरीब के काँधे पर
उसकी पत्नी नहीं ,
भारत माता की लाश है ,
हर तरफ आज मरी हुई
मानवता की तलाश है ! -- स्वराज करुण
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (03-09-2016) को "बचपन की गलियाँ" (चर्चा अंक-2454) पर भी होगी। -- सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है। -- चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है। जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये। -- हार्दिक शुभकामनाओं के साथ सादर...! डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
शक्ति के कंध अपनी लाश को सहर्ष स्वीकारते भारतमाता भी है सबसे मजबूत स्कन्ध ब्रह्माण्डीय वसुधा नट ये मेरी है ताकत मैं छतीसगढ़ी हूँ मुझे नहीं चाहिए और कोई स्कन्ध...
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (03-09-2016) को "बचपन की गलियाँ" (चर्चा अंक-2454) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
शक्ति के कंध
ReplyDeleteअपनी लाश को
सहर्ष स्वीकारते
भारतमाता भी है
सबसे मजबूत स्कन्ध
ब्रह्माण्डीय वसुधा नट
ये मेरी है ताकत मैं छतीसगढ़ी हूँ
मुझे नहीं चाहिए और कोई स्कन्ध...