-- स्वराज्य करुण
बी.एस.एन.एल दफ्तर के बाहर लंच टाइम में चाय की दुकान पर इस सार्वजनिक कम्पनी के कुछ कर्मचारी चर्चा कर रहे थे . उनमे से एक कह रहा था -
हमारे देश में सार्वजनिक कम्पनियों को जिन्दा चबाकर खा जाने के लिए निजी कम्पनियां तरह-तरह के घटिया हथकंडे अपना रही हैं .साजिश का ताजा निशाना केन्द्र सरकार की कम्पनी भारत संचार निगम लिमिटेड ( बी.एस. एन .एल) को बनाया जा रहा है . देश के बड़े-बड़े धन-पशुओं की निजी संचार कम्पनियों ने इस सार्वजनिक प्रतिष्ठान को आर्थिक प्रतिस्पर्धा में पीछे धकेलने की ऐसी साजिश रची है कि अब बी.एस.एन .एल के संचार नेटवर्क में हमेशा कई तरह की तकनीकी रुकावटें आने लगी हैं ..अगर आपके मोबाइल फोन में बी.एस .एन .एल का सिम लगा है और आप कमरे के भीतर हैं,तो कई बार उसमे बातचीत के दौरान बीच-बीच में नेट-वर्क का ऐसा व्यवधान होता है कि आप और जिसका फोन आया है वह दोनों परेशान हो जाते हैं , सरकारी संचार कम्पनी (बी.एस.एन.एल ) की छवि धूमिल करने के लिए निजी संचार कम्पनियों के अफसरों ने उच्च स्तर पर उसके कुछ अफसरों को मोटी रकम देकर अघोषित रूप से खरीद लिया है .
चाय की चुस्कियां लेते हुए एक कर्मचारी ने कहा --बी.एस.एन .एल के माइक्रोवेब मोबाइल टावर पहले अधिकाँश शहरों में लगे हुए थे,आज भी हैं, गाँवों में भी इस सरकारी संचार कम्पनी के टावर हुआ करते थे ,आज भी हैं,लेकिन अब निजी संचार कंपनियों के अफसर इस सरकारी संचार कम्पनी के टावरों में तकनीकी खराबी लाने की जुगत में रहते हैं और इसके लिए बी.एस एन.एल के कुछ छोटे-बड़े अफसरों को अप्रत्यक्ष रूप से खरीद लिया जाता है साजिश के तहत बी.एस.एन.एल के नेटवर्क में सर्वर डाउन करवा दिया जाता है .या सर्वर में कुछ खराबी पैदा कर दी जाती है इस वजह से बी.एस.एन.एल के सिम धारक मोबाईल फोन उपभोक्ता को नेटवर्क नहीं मिलता और किसी से बात करते वक्त कट-कट कर बातें होती हैं .झुंझलाहट में वह बी.एस.एन एल को गालियाँ देता है और किसी निजी कम्पनी के सिम लेने की सोचने लगता है और ले भी लेता है .सरकारी संचार कम्पनी के फोन-केबल्स को सडक खोदकर निजी कम्पनियों के लोग खुले आम काट देते है और उस वजह से सरकारी फोन और इंटरनेट सेवाएं ठप्प हो जाती हैं शिकायत दर्ज करवाने पर केबल्स जोड़ने के लिए बी.एस.एन.एल के कई लापरवाह अधिकारी और कर्मचारी धीमी गति से काम करते हैं या कई दिनों तक ध्यान भी नहीं देते .मजबूर होकर सामान्य ग्राहक अथवा सरकारी ग्राहक भी निजी कम्पनियों की तरफ जाने लगता है . इस प्रकार निजी संचार कम्पनियों का मुनाफे का कारोबार तेजी से चलने ही नहीं ,बल्कि दौड़ने लगता है और बी.एस.एन.एल जैसी सार्वजनिक कम्पनी को साल-दर -साल घाटा उठाना पड़ता है .
बगल में बैठे एक अन्य कर्मचारी का कहना था - यह साजिश इस सार्वजनिक कम्पनी के निजीकरण की राह को आसान बनाने के लिए रची गयी है,ताकि करोड़ों -अरबों रूपयों का घाटा दिखाकर सरकारी कम्पनी को किसी निजी कम्पनी के हाथों बेच दिया जाए . सरकारी कम्पनियाँ जनता की धरोहर होती हैं.उन्हें निजी हाथों में सौंपने का अधिकार किसी को भी नहीं होना चाहिए . भारत संचार निगम के कर्मचारी संगठन इस साजिश को और भी ठीक ढंग से बेनकाब करने की तैयारी में हैं .चाय की दुकान पर सुनी गयी इस चर्चा में कितनी सच्चाई है इसका अंदाजा तो बी.एस.एन.एल. की टेलीफोन और मोबाईल फोन सेवाओं की क्वालिटी देखकर आसानी से लगाया जा सकता है. हाथ कंगन को आरसी क्या ? लंच टाइम खत्म हुआ और सभी कर्मचारी अपपने दफ्तर की ओर जाने लगे .
बी.एस.एन.एल दफ्तर के बाहर लंच टाइम में चाय की दुकान पर इस सार्वजनिक कम्पनी के कुछ कर्मचारी चर्चा कर रहे थे . उनमे से एक कह रहा था -
हमारे देश में सार्वजनिक कम्पनियों को जिन्दा चबाकर खा जाने के लिए निजी कम्पनियां तरह-तरह के घटिया हथकंडे अपना रही हैं .साजिश का ताजा निशाना केन्द्र सरकार की कम्पनी भारत संचार निगम लिमिटेड ( बी.एस. एन .एल) को बनाया जा रहा है . देश के बड़े-बड़े धन-पशुओं की निजी संचार कम्पनियों ने इस सार्वजनिक प्रतिष्ठान को आर्थिक प्रतिस्पर्धा में पीछे धकेलने की ऐसी साजिश रची है कि अब बी.एस.एन .एल के संचार नेटवर्क में हमेशा कई तरह की तकनीकी रुकावटें आने लगी हैं ..अगर आपके मोबाइल फोन में बी.एस .एन .एल का सिम लगा है और आप कमरे के भीतर हैं,तो कई बार उसमे बातचीत के दौरान बीच-बीच में नेट-वर्क का ऐसा व्यवधान होता है कि आप और जिसका फोन आया है वह दोनों परेशान हो जाते हैं , सरकारी संचार कम्पनी (बी.एस.एन.एल ) की छवि धूमिल करने के लिए निजी संचार कम्पनियों के अफसरों ने उच्च स्तर पर उसके कुछ अफसरों को मोटी रकम देकर अघोषित रूप से खरीद लिया है .
चाय की चुस्कियां लेते हुए एक कर्मचारी ने कहा --बी.एस.एन .एल के माइक्रोवेब मोबाइल टावर पहले अधिकाँश शहरों में लगे हुए थे,आज भी हैं, गाँवों में भी इस सरकारी संचार कम्पनी के टावर हुआ करते थे ,आज भी हैं,लेकिन अब निजी संचार कंपनियों के अफसर इस सरकारी संचार कम्पनी के टावरों में तकनीकी खराबी लाने की जुगत में रहते हैं और इसके लिए बी.एस एन.एल के कुछ छोटे-बड़े अफसरों को अप्रत्यक्ष रूप से खरीद लिया जाता है साजिश के तहत बी.एस.एन.एल के नेटवर्क में सर्वर डाउन करवा दिया जाता है .या सर्वर में कुछ खराबी पैदा कर दी जाती है इस वजह से बी.एस.एन.एल के सिम धारक मोबाईल फोन उपभोक्ता को नेटवर्क नहीं मिलता और किसी से बात करते वक्त कट-कट कर बातें होती हैं .झुंझलाहट में वह बी.एस.एन एल को गालियाँ देता है और किसी निजी कम्पनी के सिम लेने की सोचने लगता है और ले भी लेता है .सरकारी संचार कम्पनी के फोन-केबल्स को सडक खोदकर निजी कम्पनियों के लोग खुले आम काट देते है और उस वजह से सरकारी फोन और इंटरनेट सेवाएं ठप्प हो जाती हैं शिकायत दर्ज करवाने पर केबल्स जोड़ने के लिए बी.एस.एन.एल के कई लापरवाह अधिकारी और कर्मचारी धीमी गति से काम करते हैं या कई दिनों तक ध्यान भी नहीं देते .मजबूर होकर सामान्य ग्राहक अथवा सरकारी ग्राहक भी निजी कम्पनियों की तरफ जाने लगता है . इस प्रकार निजी संचार कम्पनियों का मुनाफे का कारोबार तेजी से चलने ही नहीं ,बल्कि दौड़ने लगता है और बी.एस.एन.एल जैसी सार्वजनिक कम्पनी को साल-दर -साल घाटा उठाना पड़ता है .
बगल में बैठे एक अन्य कर्मचारी का कहना था - यह साजिश इस सार्वजनिक कम्पनी के निजीकरण की राह को आसान बनाने के लिए रची गयी है,ताकि करोड़ों -अरबों रूपयों का घाटा दिखाकर सरकारी कम्पनी को किसी निजी कम्पनी के हाथों बेच दिया जाए . सरकारी कम्पनियाँ जनता की धरोहर होती हैं.उन्हें निजी हाथों में सौंपने का अधिकार किसी को भी नहीं होना चाहिए . भारत संचार निगम के कर्मचारी संगठन इस साजिश को और भी ठीक ढंग से बेनकाब करने की तैयारी में हैं .चाय की दुकान पर सुनी गयी इस चर्चा में कितनी सच्चाई है इसका अंदाजा तो बी.एस.एन.एल. की टेलीफोन और मोबाईल फोन सेवाओं की क्वालिटी देखकर आसानी से लगाया जा सकता है. हाथ कंगन को आरसी क्या ? लंच टाइम खत्म हुआ और सभी कर्मचारी अपपने दफ्तर की ओर जाने लगे .
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