Sunday, July 15, 2012

राजनीति को कैरियर समझना लोकतंत्र के लिए खतरनाक !

               
                       आश्चर्य और चिन्ता का  विषय है कि अब राजनीति को जन सेवा अथवा समाज सेवा के पवित्र माध्यम के रूप में नहीं,बल्कि किसी व्यावसायिक कैरियर के रूप में लिया जा रहा है ,मानो यह कोई सरकारी नौकरी है, जिसमें  चाहे काम करें या न भी करें , तो भी  लोगों को हमेशा अपनी बेहतर पोस्टिंग और अपने भावी प्रमोशन के लिए  बेचैनी बनी रहती है .  राजनीति को कैरियर की तरह लेने की व्यक्तिवादी  मानसिकता  एक दिन हमारे लोकतंत्र के लिए खतरनाक साबित हो सकती  है . यह घातक मनोवृत्ति देश में किसी दिन तानाशाही को भी जन्म दे सकती है .  राजनीति में सक्रिय कोई व्यक्ति दिखावे के लिए भले ही  कुछ भी कहता और करता रहे , लेकिन उसके दिल में तो कुछ और ही भाव छुपे हुए हैं . जब कोई व्यक्ति राजनीति को निजी जिंदगी के लिए तरक्की के पायदान के रूप में इस्तेमाल करेगा ,तो  उसे  देश और समाज की भलाई की चिन्ता कहाँ होगी ? दुर्भाग्य से अब देश में लोगों को राजनीति में  'कैरियर' बनाने का प्रशिक्षण देने की  एक नई परिपाटी शुरू हो रही है .
        वैसे तो  देश और दुनिया के  विश्वविद्यालयों में राजनीति शास्त्र की पढ़ाई कोई नई बात नहीं है. यह विगत कई दशकों से होती चली आ  रही है,जिसके पाठ्यक्रमों में महान विचारकों के सिद्धांतों की जानकारी विस्तार से दी जाती है अधिकाँश विद्यार्थी  इसमें यह सोच कर प्रवेश नहीं लेते कि उन्हें नेता बनना है या राजनीति में कैरियर बनना है . लेकिन अब बेंगलुरु का भारतीय प्रबंध संस्थान (आई.आई. एम.) सेंटर फॉर सोशियल रिसर्च के साथ मिलकर लोगों को नेता बनाने के लिए दस हफ्ते का एक पाठ्यक्रम शुरू करने जा रहा है , जिसकी फीस चार लाख ७५ हजार रूपए तय की गयी है . इस पाठ्यक्रम में विद्यार्थियों को चुनाव लड़ने ,चुनावी प्रचार और जनमत संग्रह करने और प्रभावी सांसद बनने की भी शिक्षा मिलेगी ! वहाँ राजनीतिक प्रबंधन की ट्रेनिग मिलेगी ! लेकिन क्या उन्हें सच बोलना भी सिखाया जाएगा ?
             क्या ज़माना आ गया है ? कहते हैं -राजनीति वास्तव में समाज सेवा का दूसरा नाम है . क्या समाज सेवा के लिए भी किसी प्रशिक्षण और प्रमाण पत्र की ज़रूरत होती है ? अगर हाँ ,तो मेरे ख्याल से गौतम बुद्ध ,महावीर स्वामी , संत कबीर . नानक , महात्मा गांधी , स्वामी विवेकानंद , भगत सिंहचन्द्र शेखर आज़ाद , मदर टेरेसा ,  बाबा आमटे,  नेहरू, और नेता जी सुभाष जैसे लोगों को समाज-सेवक और नेता नहीं माना जा सकता , ,क्योंकि इन्होनें  ऐसे किसी प्रबंध संस्थान से राजनीतिक और सामाजिक  प्रबंधन का कोई [प्रशिक्षण नहीं लिया था ! उनके पास ऐसी किसी ट्रेनिग का प्रमाण पत्र भी नहीं था !फिर भी जनता ने उन्हें सर -आँखों पर बैठाया ! अगर आप में मानवीय संवेदना है , गरीबों और असहायों के लिए आपके दिल में सच्चा दर्द है और आप उनके लिए कुछ करना चाहते हैं ,  तो आप अपने अच्छे कार्यों के ज़रिये जनता का दिल जीत कर  अच्छे नेता बन सकते हैं ,इसके लिए किसी मैनेजमेंट प्रशिक्षण की क्या ज़रूरत है ?                                                                                ---  स्वराज्य करुण
                         





4 comments:

  1. ल्यो जी, अब नेता बनाने की भी टिरेनिंग दी जा रही है। बिना टिनेरिंग के ही इतने खतरनाक और भयावह नेता हैं तो टिरेनिंग लेने के बाद तो मत पूछिए।

    राजनेता तो बिना टिरेनिंग के जादूगरी दिखा देते हैं। पलक झपकते ही इधर का माल उधर। इनकी हाथ की सफ़ाई काबिलेतारीफ़ है। ये बहुत अच्छे टिरांसपोटर साबित हो सकते हैं। :))

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  2. आज अच्छे और बुरे काम का मापदंड साथ ही परिभाषा बदल गई है . वैसे ही किसे बुरा या किसे भला कहा जाये ,या भी कठिन हो गया है ,जा लोग कल थे बदले परिवेश में
    उन्हें भी आज शायद स्थान न मिले बहुत कठिन है डगर राह पनघट की फिर भी चलो

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  3. बिल्‍कुल सही कहा है आपने ... आभार

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