नहीं किसी को लाज-शरम,नहीं किसी को भय ,
सारे टी. व्ही . चैनल लगते आज मदिरालय !
खुल कर नंगा नाचने की आज़ादी तेरी जय ,
तेरी कृपा से छोटा परदा बन गया वेश्यालय !
सीरियलों के नाम लगती देह-व्यापार की मंडी,
बिग बॉस के घर से बहती गाली गंदी-गंदी !
मजाक उड़ाए गरीबों का , विज्ञापन की भाषा
सुबह- शाम ,दिन-रात देखो जोकर का तमाशा !
भू-माफिया ,कोल-माफिया सबने खोले चैनल ,
लूट रहे धन सरकारी , खुला खजाने का नल !
यही हाल है रंग-बिरंगे पोस्टर जैसे अखबारों का ,
सुनते हैं कि इनमें लगता पैसा ठेकेदारों का !
दो नम्बर के धंधे वाले भी हैं इनकी शरण में ,
नेता-अफसर सभी बैठते केवल इनके चरण में !
नहीं किसी को चिन्ता कोई बेरोजगार जवानों की ,
नहीं किसी को फिकर यहाँ गरीबों के अरमानों की !
देश बेचने को तत्पर जब अपने देश की संसद ,
विदेशी धन से कहाँ बचेगी कहो देश की सरहद !
-- स्वराज्य करुण
देश बेचने को तत्पर है जब अपने देश की संसद ,
ReplyDeleteविदेशी धन से कहाँ बचेगी कहो देश की सरहद !
नइ बांचय, जम्मो ला बेच डारही।
हम, हमसे समाज और समाज की थोड़ी सच्ची-झूठी सी अभिव्यक्तियां.
ReplyDeleteदुनिया का कोई भी मीडिया समूह हो कारपोरेट जगत ने सभी को निगल लिया है। कुछ मामलो मे क्षद्म देश भक्ती के नाम पर किसी मे धर्मनिरपेक्षता की आड़ मे के नाम पर कही कुछ और। इससे अच्छा तो चीन की मीडिया है कम से कम जनता को पता तो है कि यह किस की भाषा बोल रही है।
ReplyDeleteवाह!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना!
सुंदर अभिव्यक्ति..
ReplyDeleteवाह जी वाह, सब कुछ कह डाला
ReplyDeleteबहुत खूब ..
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