जीवन के इस बेजान
जंगल में खोज रहा हूँ -
जाने-अनजाने जड़-विहीन
दरख्तों के
चेहरों पर बचपन का वह
प्यारा सा नाम ,
माता -पिता की आँखों का
तारा -सा नाम ,
दोस्तों की दुनिया में
सितारा -सा नाम !
है वही ज़मीन ,
जिस पर गड़ी है दरख्तों की नाल ,
है वही आकाश ,जिसकी छाया में
गुज़रे हैं कई साल-दर -साल !
फिर भी न जाने क्यों
भूल गए सारे दरख्त
अपने -अपने बचपन का नाम !
पथरीले रास्ते पर
मंजिल की
तलाश में इस भागते-दौड़ते
संसार में जो हो गया गुमनाम !
आँखों से ओझल है -हर तरफ
यहाँ फूलों की बस्तियां ,
दूर तक गायब है चिड़ियों की और
तितलियों की मस्तियाँ !
भीड़ तो है , कोई भाव नहीं है
साथ-साथ हैं पर संवेदना नहीं है !
पुकारते हैं लोग एक-दूसरे को
बस यूं ही औपचारिक हो कर
कुछ इस तरह जैसे
कोई नाम था ही नहीं
उनके बचपन का यहाँ -वहाँ कभी !
मतलब-परस्तों की महफ़िल में
फिर भी तुम देखना गौर से -
बचपन आज भी छुपा है
हर इंसान के चेहरे की सलवटों में,
जैसे उड़ती है पतंग कभी-कभार
सीमेंट-कांक्रीट की छतों में,
जैसे छुपी होती हैं यादें
पुरानी किताब के पन्नों में
सहेज कर रखे गए पुराने खतों में !
स्वराज्य करुण
जंगल में खोज रहा हूँ -
जाने-अनजाने जड़-विहीन
दरख्तों के
चेहरों पर बचपन का वह
प्यारा सा नाम ,
माता -पिता की आँखों का
तारा -सा नाम ,
दोस्तों की दुनिया में
सितारा -सा नाम !
है वही ज़मीन ,
जिस पर गड़ी है दरख्तों की नाल ,
है वही आकाश ,जिसकी छाया में
गुज़रे हैं कई साल-दर -साल !
फिर भी न जाने क्यों
भूल गए सारे दरख्त
अपने -अपने बचपन का नाम !
पथरीले रास्ते पर
मंजिल की
तलाश में इस भागते-दौड़ते
संसार में जो हो गया गुमनाम !
आँखों से ओझल है -हर तरफ
यहाँ फूलों की बस्तियां ,
दूर तक गायब है चिड़ियों की और
तितलियों की मस्तियाँ !
भीड़ तो है , कोई भाव नहीं है
साथ-साथ हैं पर संवेदना नहीं है !
पुकारते हैं लोग एक-दूसरे को
बस यूं ही औपचारिक हो कर
कुछ इस तरह जैसे
कोई नाम था ही नहीं
उनके बचपन का यहाँ -वहाँ कभी !
मतलब-परस्तों की महफ़िल में
फिर भी तुम देखना गौर से -
बचपन आज भी छुपा है
हर इंसान के चेहरे की सलवटों में,
जैसे उड़ती है पतंग कभी-कभार
सीमेंट-कांक्रीट की छतों में,
जैसे छुपी होती हैं यादें
पुरानी किताब के पन्नों में
सहेज कर रखे गए पुराने खतों में !
स्वराज्य करुण
bahut sundar bhavabhivyakti .
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