Saturday, April 30, 2011

बेगानी शादी में अब्दुला दीवाना !

                                                                                                  -  स्वराज्य करुण
    इसे कहते हैं- बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना !  शादी तो ब्रिटेन के राजकुमार विलियम की हुई , लेकिन बिन बुलाए मेहमान की तरह बारात में सबसे आगे -आगे  बढ़ चढ़ कर नाचते-उछलते -कूदते नज़र आए दुनिया भर के मीडिया वाले ! टेलीविजन वालों ने  सीधा प्रसारण किया और प्रिंट मीडिया ने भी लीबिया में हो रहे कत्ले -आम  की ख़बरों को पीछे छोड़ते हुए साढ़े  चार हजार करोड़ रूपए की इस शाही शादी का  समाचार वर-वधु के चुम्बन दृश्यों के साथ पहले पन्ने पर छाप कर अपनी प्राथमिकता गिना दी. धन-पशुओं के वैभव-विलास के प्रतीक इस राजसी विवाह समारोह को दुनिया भर में प्रचारित करने में स्वयं ब्रिटेन के शाही परिवार ने भी गहरी दिलचस्पी दिखाई ,ताकि लोकतंत्र की राह पर तेजी से आगे बढ़ रहे सभी देशों को यह सन्देश दिया जा सके कि इंग्लैंड का साम्राज्यवादी सूर्य अभी डूबा नहीं है ,बल्कि उसका राजशाही अंदाज़ कम से कम उसके अपने देश इंग्लैण्ड में तो आज भी कायम है !
         किसी के घर शादी-ब्याह का होना उसका पारिवारिक मामला होता है. किसी सामान्य परिवार के यहाँ होने वाली शादी का  तो इतना प्रचार  नहीं होता .  फिर इंग्लैंड के राजकुमार विलियम की शादी का इतना ज्यादा ढिंढोरा पीटने और ढोल-नंगाड़ा बजाने में ये मीडिया वाले आगे -आगे क्यों उछल रहे थे ?क्या उनकी अपनी शादी भी इतने राजसी  वैभव में हुई   थी  ?  क्या उन्हें नहीं मालूम कि आज की दुनिया लोकतंत्र के युग में आ चुकी है और अब राजशाही का टापू   सिर्फ इंग्लैंड और जापान जैसे कुछ ही देशों में सीमित रह गया है  ? दो दिनों में ऐसा लगा कि भारतीय मीडिया को भी ब्रिटेन के राज-परिवार की इस शाही शादी के बुखार ने जकड़ लिया है.    भारत के  अधिकतर  टेलीविजन चैनलों ने सात समंदर पार हुई इस शादी का सजीव प्रसारण किया और वर-वधु के चुम्बन की तस्वीरें बारम्बार दिखाकर अपनी असल मानसिकता भी उजागर कर दी . हमारे यहाँ के प्रिंट मीडिया वाले भला कैसे पीछे रहते !
              आज के ज्यादातर अखबारों ने सबसे ज्यादा कवरेज इस राजशाही विवाह को दिया .मानों यह खबर कॉमन-वेल्थ और टू-जी स्पेक्ट्रम घोटालों और स्विस बैंक में भारतीयों के काले धन के गुप्त खातों के बारे में हो रहे सनसनीखेज खुलासों से भी ज्यादा महत्वपूर्ण थी ! इन ख़बरों को देख और पढ़ कर कुछ समय पहले एक फ़िल्मी औरत के स्वयम्बर और फिर उसकी शादी और बारात के नाटक की याद आ रही है , जिसे इलेक्ट्रानिक और प्रिंट मीडिया ने ऐसा कवरेज दिया मानो यह इक्कीसवीं सदी की सबसे बड़ी घटना है . इंग्लैण्ड में राजतन्त्र है और महारानी आज भी वहाँ की राष्ट्राध्यक्ष होती है. हुआ करे ,अपनी बला से ! लेकिन हमारी पृथ्वी के उन तमाम देशों में जहां लोकतंत्र है, वहाँ के मीडिया को  क्या हो गया ,जिसके अंग-प्रत्यंग किसी राजतन्त्र में हुई राज परिवार के राजकुमार की शादी को इस फूहड़ तरीके से महिमा मंडित कर रहे हैं ? लगता है -अंग्रेजों के जाने के छह दशक से ज्यादा अरसा गुजर जाने के बाद भी देश की हवा में अंग्रेजियत का ज़हर  न सिर्फ कायम है ,बल्कि वह और भी ज्यादा गहराता जा रहा है !  यह सब देख कर सोचता हूँ कि अगर स्वामी विवेकान्द , महात्मा  गांधी , सुभाष चन्द्र बोस चंद्रशेखर आज़ाद और भगत सिंह जैसे आज़ादी के योद्धा हमारे बीच होते , तो उनके दिल पर क्या गुजरती ? आखिर हम कब तक बेगानी शादियों में अब्दुल्ला की तरह नाचते रहेंगे ?
                                                                                                             - स्वराज्य करुण

4 comments:

  1. अभी तक हम राजाशाही की मानसिकता से उभरे नहीं है। फिर शादी के प्रसारण अधिकार बिकते हों तो यह सब तो होने ही वाला है।

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  2. अबदुल्लों का क्या है वो तो है ही इसी के मारे

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  3. भारतीय मीडिया बेहोश है सारा भारत रुका हुआ है ओर लंदन के झुका हुआ है बलत्कारी भी शांत है हत्यारे भी क्लांत है राजनीतिक दल खामोश हैं क्योंकी सब जानते हैं आज कुछ किया तो टी वी कैमरा यहां की ओर नही मुड़ेगा उसका तार आज केवल लंदन से जुड़ेगा

    वाह रे भारत के चैनल समाचार बेशर्मी का खुल्लम खुल्ला व्यापार

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  4. सही दिशा में चिंतन !

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