Tuesday, January 4, 2011
(गीत) अभी नहीं आएँगे !
ऐसा भी नहीं है कि कभी नहीं आएँगे ,
लेकिन यह सच है कि अभी नहीं आएँगे !
अच्छे दिन अभी नहीं आएँगे !
अभी तो है आग में झुलसने के दिन ,
अभी तो हैं अभावों में तरसने के दिन !
सुबह-शाम व्यथाओं में जलने के दिन ,
ज़मींदोज़ सपनों में पलने के दिन !
एक-एक कर आएँगे , सभी नहीं आएँगे ,
लेकिन यह सच है कि अभी नहीं आएँगे !
अच्छे दिन अभी नहीं आएँगे !
रोटी का महा-समर अभी और चलेगा ,
दर्द का यह धूमकेतु अभी नहीं ढलेगा !
माटी की उष्मा से जब तक न तपेगा ,
पेड़ कोई तब तक न फूलेगा -फलेगा !
शाखों पर बादलों की तरह नहीं छाएंगे ,
लेकिन यह सच है कि अभी नहीं आएँगे !
अच्छे दिन अभी नहीं आएँगे !
- स्वराज्य करुण
आग में तप कर सोना कुंदन होगा।
ReplyDeleteमाथे की शोभा बनकर चन्दन होगा ।
पुरुषार्थी पाषाण पर पुष्प खिलाएगें
वो दिन भी कभी तो आएगें।
क्या बात है इतनी मायूसी क्यों?
ReplyDeleteअगल-बगल की मस्ती और उल्लास देख कर तो यही लगता है कि अच्छे दिन आ गए हैं.
ReplyDeleteआपके पिछले कुछ आलेखों से , तो अच्छे दिन आ चुके जैसा लगा था :)
ReplyDeleteओह्ह इतनी मायूसी क्यू जनाब , उम्मीद है जल्दी ही छट जाएगी , सुन्दर अभिव्यक्ति .
ReplyDeleteआशावादी चिंतन।
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर रचना.. मायूसी का भी एक अपना स्थान होता है... आपने अपनी इस कविता में बाखूबी दर्शाया है...
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