Monday, January 3, 2011
(गज़ल) ज़हर घोलने सब निकले हैं !
वतन के हालात पे चर्चा होती है हम-प्यालों में
आलीशान होटल में ,या फिर शॉपिंग-मॉलों में .!
कौन करेगा फिकर यहाँ गाँव,खेत -खलिहान की ,
ज़हर घोलने सब निकले हैं झीलों, नदियों- नालों में !
दिल्ली में तो हर दिन लगती ऊंची-ऊंची बोलियां ,
लोकतंत्र की नीलामी है अब उसके ही रखवालों में !
सच्चाई का दावा करने वालों से यह पूछे कौन ,
कैद उन्होंने क्यों रखा है सच को सौ-सौ तालों में !
कभी सुनहरे दिन आएँगे क्या यह सपना सच होगा , जीवन को अब और कब तक गुजारें हम सवालों में !
अंधियारे का बंधक सूरज जाने कब तक तरसेगा ,
अभी तो यह आकाश बहुत खुश चुराए गए उजियालों में !
-- स्वराज्य करुण
गंधक घुला हवाओं में,नफ़रत की खेती होती है
ReplyDeleteकोई तो मसीहा आएगा,जो बचाएगा इन सालों से
तराने में दम है,क्योंकि युपी में..........।
सुंदर तराने के लिए आभार
... behatreen ... badhaai !!
ReplyDeleteआंख खुलने की देर है फिर सवेरा होने में वक्त नहीं लगता.
ReplyDeleteहर एक शेर लाजवाब । मतला दिल को छू गया। वतन के हालात पे चर्चा होती है हम-प्यालों में
ReplyDeleteआलीशान होटल में ,या फिर शॉपिंग-मॉलों में .!
और ये शेर भी आज हम परयावरण को ,प्रकृति को अपने हाथों ही नष्ट करने पर तुले हुये हैं
कौन करेगा फिकर यहाँ गाँव,खेत -खलिहानों की ,
ज़हर घोलने सब निकले हैं झीलों, नदियों- नालों में !
बहुत अच्छी लगी गज़ल बधाई।
क्या कहूँ सारा कडवा सच बयाँ कर दिया……………शानदार प्रस्तुति।
ReplyDeleteसच्चाई का दावा करने वालों से यह पूछे कौन ,
ReplyDeleteकैद उन्होंने क्यों रखा है सच को सौ-सौ तालों में !
सटीक प्रश्न!!!
सुन्दर प्रस्तुति!
सच्चाई का दावा करने वालों से यह पूछे कौन ,
ReplyDeleteकैद उन्होंने क्यों रखा है सच को सौ.सौ तालों में !
बिल्कुल सही बात,
सच को सैकड़ों तालों में बंद करके रक्खा है, सच्चाई के ठेकेदारों ने।
बहुत अच्छी रचना।
।।नूतन वर्षाभिनंदन।।
दिल्ली में तो हर दिन लगती ऊंची-ऊंची बोलियां ,
ReplyDeleteलोकतंत्र की नीलामी है उसके ही रखवालों में !
भई वाह बहुत अच्छा लगा पढ़कर, बधाई...
कौन करेगा फिकर यहाँ गाँव,खेत -खलिहानों की , ज़हर घोलने सब निकले हैं झीलों, नदियों- नालों में ! badiya pratuti hai
ReplyDeleteआपके " दिल की बात " इस गजल में पढ़ने को मिली .यह 'स्वराज्य 'की 'करुण ' गाथा है .
ReplyDeleteअंतिम दो पंक्तिया दिल को छू गयीं.. बहुत अच्छी गज़ल..
ReplyDeleteआलोक अन्जान
http://aapkejaanib.blogspot.com/