Monday, July 24, 2023
(आलेख)क्या नदियों को आपस में नहीं जोड़ा जा सकता ?
(आलेख -स्वराज करुण)
नदियाँ अगर धीरे बहें तो सुहावनी और उफनती हुई बहें तो डरावनी लगती हैं। लेकिन प्रकृति की व्यवस्था ही ऐसी है कि बारिश के मौसम में बादलों को बरसने से और नदियों को उफनने से नहीं रोका जा सकता। बरसात में जल से लबालब नदियाँ किसानों और उनके खेतों के लिए वरदान साबित होती हैं ,लेकिन अगर छलकते हुए वह सैलाब में तब्दील हो जाऍं तो ? इस वर्ष भी देश के कई राज्यों के कुछ इलाकों में इन दिनों भारी वर्षा से नदियों में आया सैलाब कहर बनकर जन जीवन को अस्त-व्यस्त कर रहा है।
अगर देश की नदियों को एक -दूसरे से जोड़ दिया जाए तो किसी नदी में बाढ़ की स्थिति बनने पर उसका अतिरिक्त पानी दूसरी नदी में भेजकर खतरे को कम किया जा सकता है। कुछ दशक पहले इसकी संभावनाओं पर विशेषज्ञों के बीच विचार -विमर्श भी हुआ करता था।नदी जोड़ो अभियान की भी चर्चा होती थी। लेकिन अब खामोशी है। क्या नहरों का जाल बिछाकर नदियों को आपस में नहीं जोड़ा जा सकता ? इसकी संभावनाओं पर सबको मिलकर विचार करना और रास्ता निकालना चाहिए।
छत्तीसगढ़ के सीमावर्ती ओंग सेतु पर मोबाइल कैमरे से मेरी आँखन देखी ये तीन तस्वीरें पिछले साल के आज ही के दिन की हैं । यह पश्चिम ओड़िशा में इठलाती,बलखाती ओंग नदी और उस पर बने पुल का नज़ारा है। ओंग सेतु छत्तीसगढ़ के तहसील मुख्यालय बसना से बलांगीर मार्ग पर लगभग 22 वें किलोमीटर पर है। ओंग नदी गर्मियों में एकदम सूख जाती है।यह छत्तीसगढ़ और ओड़िशा की जीवन -रेखा महानदी की सहायक है। - स्वराज करुण
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