(आलेख ; स्वराज्य करुण )
गर्मियों की तेज ,चिलचिलाती धूप में राह चलते इंसान को कुछ पलों के सुकून के लिए शीतल छाँव की ज़रूरत होती है। सड़कों के किनारे लगे नीम ,बरगद ,पीपल और कई अन्य छायादार पेड़ इंसान को निःशुल्क शीतलता प्रदान करते हैं। आम जैसे कई फलदार वृक्ष स्वादिष्ट फलों के साथ ठंडी छाँव भी देते हैं। पीपल का तो कहना ही क्या ?
भारतीय संस्कृति का पूजनीय वृक्ष है पीपल । वैसे तो हमारी संस्कृति में बरगद ,आम ,आंवला और बेल सहित सभी वृक्ष पूजनीय हैं ,क्योंकि ये हमारी धरती पर हर प्रकार से प्राणी जगत की सेवा करते हैं ,हमें जीवित रहने के लिए बिना किसी भेदभाव के ,हर दिन भरपूर ऑक्सीजन देते हैं। अन्य प्रजातियों के वृक्षों की तरह यह भी पर्यावरण -हितैषी पेड़ है। पीपल के बारे में कहा जाता है कि यह चौबीसों घंटे ऑक्सीजन देने वाला वृक्ष है। यह कहीं भी और कठोर भूमि पर भी उग सकता है। इसलिए आज के समय में उजड़ते पहाड़ों पर भी इसे उगाने की संभावनाओं पर हमें विचार करना चाहिए। परन्तु अपने आस -पास देखें तो पता चलेगा कि यह तेजी से विलुप्त हो रहा है । पहले तो पीपल के पेड़ तालाबों के किनारे भी दिख जाते थे। नदी -नालों के दोनों किनारे भी तरह -तरह के सघन वृक्षों से सजे होते थे । लेकिन अब वो बात कहाँ ? ऐसे में बचपन के दिनों में अपनी स्कूली किताब 'बालभारती' में पढ़ी कविता की याद आती है --
यह कदम्ब का पेड़ अगर माँ होता यमुना तीरे
मैं भी उस पर बैठ कन्हैया बनता धीरे -धीरे।
पीपल सहित सभी प्रजातियों के पेड़ --पौधों को बचाना और उनकी संख्या बढ़ाना हमारी ज़िम्मेदारी है। लेकिन आज आधुनिकता की सुनामी में तूफ़ानी रफ़्तार से हो रहे शहरीकरण की वजह से वृक्षों के अस्तित्व पर संकट के घने बादल मंडरा रहे हैं। मनुष्यों की आबादी बढ़ रही है और वृक्षों की घट रही है। फिर भी मनुष्य अगर चाहे तो अपने जीवन में पेड़ -पौधों के लिए भी पर्याप्त जगह छोड़ सकता है। -- स्वराज्य करुण
No comments:
Post a Comment