(आलेख : स्वराज्य करुण )
आधुनिक इतिहास के एक ऐसे दौर में ,जब देश के अधिकांश वनांचलों में मुद्रण और प्रकाशन सुविधाओं का नितांत अभाव था , छत्तीसगढ़ के आदिवासी बहुल बस्तर अंचल में एक साहित्यकार इन सुविधाओं की फिक्र छोड़कर बड़ी तल्लीनता से साहित्य साधना में लगे हुए थे। मैं याद कर रहा हूँ साहित्य महर्षि लाला जगदलपुरी को , जिन्होंने 93 साल की अपनी जीवन यात्रा के दस ,बीस या तीस नहीं ,बल्कि पूरे 77 साल एक तपस्वी के रूप में साहित्य की देवी माँ सरस्वती की साधना में लगा दिए। सचमुच वह एक तपस्वी साहित्यकार थे ,जिन्होंने देश और दुनिया के साहित्य भण्डार को अपनी रचनाओं के अनमोल रत्नों से समृद्ध बनाया।
लाला जी हिन्दी और छत्तीसगढ़ी भाषाओं के साथ -साथ बस्तर अंचल में प्रचलित हल्बी और भतरी भाषाओं के भी साहित्यकार थे। आज अगर वे हमारे बीच होते तो अपनी ज़िन्दगी के सफ़र के 102 साल पूरे करके 103 वें वर्ष में प्रवेश कर चुके होते। लेकिन उनकी तकरीबन पौन सदी से भी अधिक लम्बी साहित्य साधना विगत 14 अगस्त 2013 को अचानक हमेशा के लिए थम गयी ,जब अपने गृहनगर जगदलपुर में उनका देहावसान हो गया। तत्कालीन बस्तर रियासत की राजधानी रहे इसी जगदलपुर में उनका जन्म 17 दिसम्बर 1920 को हुआ था। उनका साहित्य सृजन 16 वर्ष की उम्र में किशोरावस्था से ही प्रारंभ हो चुका था। हिन्दी और हल्बी पत्रकारिता में भी उनका सक्रिय योगदान रहा। उन्होंने वर्ष 1948 से 1950 तक दुर्ग के साप्ताहिक 'ज़िन्दगी' और वर्ष 1950 में रायपुर के ठाकुर प्यारेलाल सिंह के अर्ध साप्ताहिक 'राष्ट्रबन्धु' सहित देश के अनेक दैनिक समाचार पत्रों को बस्तर -संवाददाता के रूप में अपनी सेवाएँ दी। लालाजी तुषारकान्ति बोस द्वारा प्रकाशित बस्तर के प्रथम हल्बी साप्ताहिक 'बस्तरिया' के भी सम्पादक रहे। इसका प्रकाशन वर्ष 1984 में प्रारंभ हुआ था।
लाला जगदलपुरी की प्रमुख हिन्दी पुस्तकों में वर्ष 1983 में प्रकाशित ग़ज़ल संग्रह 'मिमियाती ज़िन्दगी दहाड़ते परिवेश ', वर्ष 1992 में प्रकाशित काव्य संग्रह 'पड़ाव ',वर्ष 2005 में प्रकाशित आंचलिक कविताएं और वर्ष 2011 में प्रकाशित 'ज़िन्दगी के लिए जूझती गज़लें ' तथा 'गीत धन्वा 'शामिल हैं। उनके द्वारा सम्पादित चार कवियों के सहयोगी काव्य संग्रह 'हमसफ़र ' का प्रकाशन वर्ष 1986 में हुआ। इसमें बहादुर लाल तिवारी , लक्ष्मीनारायण पयोधि , गनी आमीपुरी और स्वराज्य करुण की हिन्दी कविताएं शामिल हैं। मध्यप्रदेश हिन्दी ग्रंथ अकादमी भोपाल द्वारा वर्ष 1994 में प्रकाशित लाला जगदलपुरी की पुस्तक 'बस्तर : इतिहास एवं संस्कृति ' ने छत्तीसगढ़ के इस आदिवासी अंचल पर केन्द्रित एक प्रामाणिक संदर्भ ग्रंथ के रूप में काफी प्रशंसा अर्जित की। वर्ष 2007 में इस ग्रंथ का तीसरा संस्करण प्रकाशित किया गया। उनके व्यक्तित्व और कृतित्व पर हरिहर वैष्णव द्वारा सम्पादित एक महत्वपूर्ण पुस्तक " लाला जगदलपुरी समग्र ' का भी प्रकाशन हो चुका है। छत्तीसगढ़ राज्य हिन्दी ग्रंथ अकादमी रायपुर द्वारा लाला जी की पुस्तक 'बस्तर की लोकोक्तियाँ ' वर्ष 2008 में प्रकाशित की गयी। उनकी हल्बी लोक कथाओं का संकलन लोक चेतना प्रकाशन जबलपुर द्वारा वर्ष 1972 में प्रकाशित किया गया। लाला जी ने प्रेमचंद की प्रमुख कहानियों का भी हल्बी में अनुवाद किया था । यह अनुवाद संकलन 'प्रेमचंद चो बारा कहनी ' शीर्षक से वर्ष 1984 में वन्या प्रकाशन भोपाल ने प्रकाशित किया था। । लालाजी की अधिकांश हिन्दी कविताओं में इस युग की निर्मम सामाजिक -आर्थिक विसंगतियों को लेकर गहरी वेदना की झलक मिलती है। इस दौर की यह क्रूरतम विडम्बना है कि आज सज्जन कहलाने वाले लोग दुर्जनों की पीठ ठोंकते नज़र आते हैं। यह इस दौर की बेरहम त्रासदी है ,जिसकी मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति वर्ष 1984 में प्रकाशित लालाजी के ग़ज़ल संग्रह 'मिमियाती ज़िन्दगी -दहाड़ते परिवेश' में शामिल इस रचना में मिलती है --
दुर्जनता की पीठ ठोंकता
सज्जन कितना बदल गया है !
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दहकन का अहसास कराता,चंदन कितना बदल गया है ,
मेरा चेहरा मुझे डराता, दरपन कितना बदल गया है !
आँखों ही आँखों में सूख गई हरियाली अंतर्मन की ,
कौन करे विश्वास कि मेरा सावन कितना बदल गया है !
पाँवों के नीचे से खिसक-खिसक जाता सा बात-बात में ,
मेरे तुलसी के बिरवे का आँगन कितना बदल गया है !
भाग रहे हैं लोग मृत्यु के पीछे-पीछे बिना बुलाए
जिजीविषा से अलग-थलग यह जीवन कितना बदल गया है
प्रोत्साहन की नई दिशा में देख रहा हूँ, सोच रहा हूँ ,
दुर्जनता की पीठ ठोंकता सज्जन कितना बदल गया है !
लाला जी ने बहुत सादगीपूर्ण जीवन जिया । उनके सौवें जन्म वर्ष के उपलक्ष्य में वर्ष 2020 में बस्तर जिला प्रशासन द्वारा जगदलपुर स्थित शासकीय जिला ग्रंथालय का नामकरण उनके नाम पर किया गया। यह निश्चित रूप से स्वागत योग्य निर्णय है। यह ग्रंथालय जगदलपुर के शासकीय बहुउद्देश्यीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय परिसर में स्थित है। इस ग्रंथालय के एक हिस्से में लाला जी की रचनाओं ,उनकी पुस्तकों और उनसे यशस्वी जीवन से जुड़ी महत्वपूर्ण वस्तुओं का संकलन भी प्रदर्शित किया गया है। लाला जी को छत्तीसगढ़ राज्य स्थापना दिवस के अवसर पर रायपुर में आयोजित राज्योत्सव 2004 में प्रदेश सरकार की ओर से पंडित सुन्दरलाल शर्मा साहित्य सम्मान से नवाजा गया था । तपस्वी साहित्यकार लाला जगदलपुरी के सम्मान में छत्तीसगढ़ सरकार ने वर्ष 2022 से राज्य सम्मान की भी शुरुआत की है। पहला 'लाला जगदलपुरी सम्मान ' छत्तीसगढ़ राज्य स्थापना दिवस के अवसर पर एक नवम्बर 2022 को छत्तीसगढ़ के सुप्रसिद्ध कवि ,खैरागढ़ निवासी जीवन यदु 'राही' को दिया गया । साहित्य महर्षि लाला जगदलपुरी को आज उनकी 102 वीं जयंती पर विनम्र श्रद्धांजलि। (आलेख -स्वराज्य करुण )
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