Tuesday, July 19, 2022

उन्होंने बताया था - किसे कहेंगे छत्तीसगढ़िया ?


   आज डॉ. खूबचंद बघेल की जयंती 

       (आलेख : स्वराज करुण)

महान स्वतंत्रता सेनानी , किसान नेता और साहित्यकार डॉ. खूबचंद बघेल के क्रांतिकारी विचार पृथक छत्तीसगढ़ राज्य और' छत्तीसगढ़िया' को लेकर बहुत स्पष्ट थे। उन्होंने कहा था --" सीधा अउ सरल ढंग से अर्थ कहूँ करे जाय तव इही कहना परही कि जउन छत्तीसगढ़ में रहिथे तउन छत्तीसगढ़ी ।मोर समझ के मुताबिक जउन व्यक्ति खुद ल अंतस से छत्तीसगढ़ी समझथे, छत्तीसगढ़ी कहवाय में हीनता अउ संकोच के अनुभव नइ करय, छत्तीसगढ़ के भलई अउ बुराई में अपन भलई अउ बुराई समझय , छत्तीसगढ़ी मन ला दिये गए गारी हा ओला गोली बरोबर लागय ,तउन हा छत्तीसगढ़ी आय ।"

  हिन्दी में उनके इन विचारों का आशय इस प्रकार है -- "सीधे और सरल ढंग से अर्थ कहूँ तो इतना कहना पड़ेगा कि जो छत्तीसगढ़ में रहता है वह छत्तीसगढ़ी ।मेरी समझ के मुताबिक जो व्यक्ति खुद को अपने अंतस से छत्तीसगढ़ी समझे ,छत्तीसगढ़ी कहलाने में हीनता और संकोच अनुभव न करे ,छत्तीसगढ़ की भलाई और बुराई में अपनी भलाई और बुराई समझे ,छत्तीसगढ़ियों को दी गई गाली उसे (बन्दूक की) गोली की तरह लगे ,वही व्यक्ति छत्तीसगढ़ी है।"

    डॉ. बघेल ने छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण के सपने को साकार करने के लिए वैचारिक और राजनीतिक धरातल पर लम्बा संघर्ष किया  था ,लेकिन अफ़सोस कि वह अपने इस स्वप्न को साकार होता हुआ नहीं देख पाए। उनकी  आज 122 वीं जयंती है। उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि।                            

                                                              


                                                   राज्य आंदोलन के प्रमुख आधार स्तंभ 

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    छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण आंदोलन के प्रमुख आधार स्तंभ  डॉ .खूबचन्द बघेल का जन्म 19 जुलाई 1900 को रायपुर जिले के ग्राम पथरी में और निधन 22 फरवरी 1969 को नई दिल्ली में हुआ। निधन के समय वह राज्य सभा के सांसद थे । इसके पहले वर्ष 1951 ,वर्ष 1957 और वर्ष 1967 के आम चुनावों में  वह धरसीवां क्षेत्र से विधायक रहे।  अंग्रेजी हुकूमत के ख़िलाफ़ रायपुर में वर्ष 1942 के  भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान  उन्होंने अपने सहयोगियों के साथ भूमिगत गतिविधियों का संचालन किया । उसी दौरान 21 अगस्त को उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया।डॉ. बघेल ढाई साल तक कारावास में रहे। 

                                                   कर्मठ किसान नेता डॉ. बघेल 

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      आज़ादी के बाद एक कर्मठ किसान नेता और लोकप्रिय जन प्रतिनिधि के रूप में उन्होंने छत्तीसगढ़ के हितों और छत्तीसगढ़ियों के अधिकारों के लिए मृत्यु पर्यन्त संघर्ष किया।  मेरे विचार से अगर उन्हें भारत की आज़ादी के महान संघर्षों और छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण के लिए हुए आंदोलनों का महायोद्धा कहा जाए तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। अगर उन्हें साहित्यिक किसान नेता कहें तो भी गलत नहीं होगा । राजनेता तो वह थे ,लेकिन उनके हॄदय में एक संवेदनशील साहित्यकार भी रहता था ,जो समय -समय पर उनकी लेखनी से अवतरित होता रहता था।राजनांदगांव में 28 जनवरी 1956 को छत्तीसगढ़ी महासभा और 25 सितम्बर 1967 को रायपुर में छत्तीसगढ़ भातृसंघ के गठन में उनकी ऐतिहासिक भूमिका को लोग आज भी याद करते हैं। स्वतन्त्रता संग्राम के दिनों में  उन्होंने छुआछूत की सामाजिक बुराई के ख़िलाफ़ जनजागरण के लिए ' ऊँच -नीच ' शीर्षक से एक नाटक लिखा। इसके अलावा 'करम छड़हा' और 'लेड़गा सुजान ' भी उनके लिखे यादगार नाटक हैं।  वह बहुत अच्छे निबन्ध लेखक भी थे।

                                              

                              ऐतिहासिक भाषण  और लेख : उनके चिन्तन का प्रतिबिम्ब

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 विभिन्न अवसरों पर  दिये गए डॉ. बघेल के क्रांतिकारी भाषणों और समय -समय पर प्रकाशित उनके लेखों को उनके क्रांतिकारी चिन्तन का प्रतिबिम्ब कहा जा सकता है।स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी और पूर्व सांसद स्वर्गीय केयूर भूषण द्वारा सम्पादित डॉ .बघेल के भाषणों और लेखों का संकलन उनकी जयंती पर  'छत्तीसगढ़ का स्वाभिमान 'शीर्षक से 19 जुलाई 2000 को प्रकाशित किया गया था। इस पुस्तक के प्रकाशन के लगभग साढ़े तीन माह बाद एक नवम्बर 2000 को छत्तीसगढ़ राज्य का अभ्युदय हुआ। पुस्तक में छत्तीसगढ़ी महासभा के गठन और प्रथम अधिवेशन के समय  डॉ.बघेल के ऐतिहासिक भाषण को भी शामिल किया गया है।संकलन के  आलेखों से पता चलता है कि छत्तीसगढ़ और छत्तीसगढ़िया को लेकर डॉक्टर साहब का नज़रिया बहुत स्पष्ट था। उनके विचारों के कुछ चयनित अंश 'छत्तीसगढ़ का स्वाभिमान' पुस्तक से साभार  उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि सहित प्रस्तुत है--

   *नवप्रभात की जीवन-दायिनी हवा ने छत्तीसगढ़ को कहीं -कहीं धीरे -धीरे स्पर्श करना शुरू कर दिया है। लोग 'पेट पाल ' और 'कुटुम्ब पाल ' के दायरे को लांघकर 'समाज सेवी ' होने की चेष्टा कर रहे हैं।कहीं -कहीं जातिगत घातक रूढ़ियाँ तोड़ी जा रही हैं।सहकारी सभाओं में लोग दिलचस्पी लेने लगे हैं छात्रालय और शालाओं की जरूरत कुछ क्षेत्रों में महसूस की जा रही है।हम छत्तीसगढ़ के लोग भाई -भाई हैं ,ऐसा भाव यहां के इतिहास में प्रथम बार जाग रहा है।आचार -भ्रष्टता और दुराचार को लोग घृणा की वस्तु कहने लग गए हैं।"

   *छत्तीसगढ़ के हित में जो अपना हित समझते हैं ,वे हमारे भाई हैं।जो छत्तीसगढ़ का राजनैतिक ,आर्थिक और अन्य तरीके से शोषण करना चाहते हैं ,वे हमारे प्रेम के भाजन नहीं हो सकते ।

   *जउन छत्तीसगढ़ के अन्न -जल से तो पलय ,तभो ले इहें के छत्तीसगढ़ी भाई मन ला नफरत से देखय तो भला वो अपन ला खुद छत्तीसगढ़ी कहिके छत्तीसगढ़ी आत्मा से कइसे समरस हो सकथे ? पर जउन मन छत्तीसगढ़ में बाहिर से आके निस्वार्थ भाव से छत्तीसगढ़ के सेवा करत हें ,तेकर प्रति हम कइसे कृतघ्नी बन सकथन ?वो तो हमार छत्तीसगढ़ के उद्धारकर्ता माने जाकर पूजे जाहीं  परन्तु जउन लोगन के मन में रात -दिन येहि भाव काम करत हे  कि छत्तीसगढ़ी संगठित अउ शक्तिशाली न हो सकें , ताकि हमर पांचों अंगरी घी में रहे ,उनला  अब तो पहिचान सकना चाही । जेकर छत्तीसगढ़ हा महतारी बरोबर प्रिय होंगे ,तउन कइसे अछत्तीसगढ़ी हो सकथे ?"

   *सीधा अउ सरल ढंग से अर्थ कहूँ करे जाय तव इही कहना परही कि जउन छत्तीसगढ़ में रहिथे तउन छत्तीसगढ़ी ।मोर समझ के मुताबिक जउन व्यक्ति खुद ल अंतस से छत्तीसगढ़ी समझथे, छत्तीसगढ़ी कहवाय में हीनता अउ संकोच के अनुभव नइ करय, छत्तीसगढ़ के भलई अउ बुराई में अपन भलई अउ बुराई समझय , छत्तीसगढ़ी मन ला दिये गए गारी हा ओला गोली बरोबर लागय ,तउन हा छत्तीसगढ़ी आय ।

      डॉ. बघेल आज भले ही हमारे बीच नहीं हैं ,भले ही  वह अपने जीवन काल में अपने सपनों के छत्तीसगढ़ को राज्य बनता नहीं  देख पाए   लेकिन उनके सपनों के साकार हो चुके  राज्य में उनके विचार समाज को हमेशा  आलोकित करते रहेंगे ।

     आलेख  --स्वराज करुण 

 

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2 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (20-07-2022) को
    चर्चा मंच      "गरमी ने भी रंग जमाया"  (चर्चा अंक-4496)     पर भी होगी!
    --
    सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार करचर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
    -- 
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'   

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    1. बहुत -बहुत धन्यवाद।

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