- स्वराज करुण
छत्तीसगढ़ की तत्कालीन रायगढ़ रियासत के महान संगीतज्ञ राजा चक्रधर सिंह की स्मृति में इस वर्ष 2 सितम्बर को रायगढ़ में 35 वें अखिल भारतीय चक्रधर नृत्य एवम संगीत समारोह का शुभारंभ होने जा रहा है । दरअसल 2 सितम्बर को गणेश चतुर्थी है और इसी दिन 19 अगस्त 1905 को रायगढ़ में चक्रधर सिंह का जन्म हुआ था । उनका निधन रायगढ़ में ही 7 अक्टूबर 1947 को हुआ।
उनके सानिध्य में प्रशिक्षित कई कथक नर्तकों ने आगे चलकर राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्धि प्राप्त की ,जिनमें नृत्याचार्य बर्मन लाल , कार्तिक राम ,कल्याणदास फिरतूदास वैष्णव और रामलाल आदि उल्लेखनीय हैं । राजा चक्रधर सिंह ने नृत्य और संगीत पर कई ग्रन्थ लिखे ,जिनमें ' नर्तम -सर्वस्वम ' और 'तलतोय निधि' भी शामिल हैं । उनका लिखा 'बैरागढ़िया राजकुमार' नाटक भी काफी चर्चित और लोकप्रिय रहा है ।
रायगढ़ घराने के शास्त्रीय नृत्य कथक के विकास में राजा चक्रधर सिंह के योगदान पर वर्ष 1993 में एक घण्टे के एक वृत्तचित्र 'अनुकम्पन ' का निर्माण कोलकाता की सुश्री वलाका घोष द्वारा श्री नीलोत्पल मजूमदार के निर्देशन में किया गया था । रायगढ़ घराने के कथक नृत्य पर यह पहली डॉक्यूमेंट्री फ़िल्म थी । सेल्यूलाइड पर 16 एमएम की इस डॉक्यूमेंट्री को भारत सरकार ने वर्ष 1993 के सर्वश्रेष्ठ सांस्कृतिक वृत्त चित्र की श्रेणी में राष्ट्रपति के रजत कमल एवार्ड से सम्मानित किया था । इस फ़िल्म में नृत्याचार्य बर्मन लाल , राजा साहब के ग्रन्थों को विशेष प्रकार के कीमती कागजों पर अपने हाथों से सुडौल अक्षरों में लिपिबद्ध करने वाले चिंतामणि कश्यप और राजा चक्रधर सिंह के सुपुत्र भानुप्रताप सिंह के दिलचस्प साक्षात्कार हैं ,वहीं छत्तीसगढ़ी नाचा के वरिष्ठ कलाकारों के गायन वादन सहित रायगढ़ कथक की नृत्यांगना सुश्री वासन्ती वैष्णव , बाल कलाकार शरद वैष्णव और संगीता नामदेव की भी नृत्य प्रस्तुतियों को भी इसमें शामिल किया गया है ।
जनवरी 1994 में कोलकाता में केन्द्र सरकार द्वारा आयोजित भारत के 24 वें अंतर्राष्ट्रीय फ़िल्म महोत्सव के दौरान वहाँ के गोर्की सदन में यह फ़िल्म भी प्रदर्शित की गयी थी । मुझे भी वरिष्ठ साहित्यकार ,बिलासपुर निवासी पण्डित श्यामलाल चतुर्वेदी, रायगढ़ घराने की नयी पीढ़ी की कथक नृत्यांगना सुश्री वासन्ती वैष्णव और तबला वादक श्री सुनील वैष्णव के साथ इस फ़िल्म समारोह में शामिल होने और 'अनुकम्पन ' के प्रदर्शन का साक्षी बनने का सौभाग्य मिला था ।
दरअसल रायगढ़ कथक पर बनी इस पहली डॉक्यूमेंट्री में मेरा भी एक छोटा -सा योगदान था ,वो यह कि निर्माता ,निर्देशक के आग्रह पर मैंने इसकी पटकथा का हिन्दी रूपांतर करते हुए नेपथ्य से उसकी एंकरिंग भी की थी। वर्ष 1994 में यह डॉक्यूमेंट्री दूरदर्शन के राष्ट्रीय नेटवर्क पर भी प्रसारित की गयी थी ।
शायद वो वर्ष 1996 का चक्रधर समारोह था ,जब आयोजन समिति की ओर से रायगढ़ के गोपी टॉकीज में 'अनुकम्पन ' का प्रदर्शन किया गया था ,जिसे देर तक गूँजती करतल ध्वनि के साथ दर्शकों का उत्साहजनक प्रतिसाद मिला था । जन्म जयंती पर राजा चक्रधर सिंह को शत -शत नमन और उनकी स्मृति में 2 सितम्बर 2019 से शुरू हो रहे अखिल भारतीय चक्रधर समारोह की सफलता के लिए मेरी ओर से भी हार्दिक शुभेच्छाएँ । राजा साहब की अतुलनीय और अनुकरणीय कला साधना को यादगार बनाए रखने के लिए छत्तीसगढ़ सरकार ने राज्य अलंकरण 'चक्रधर सम्मान' की भी स्थापना की है ,जो वर्ष 2001 से हर साल राज्योत्सव के मौके पर संगीत और कला के क्षेत्र में एक चयनित कला साधक को प्रदान किया जाता है ।
-स्वराज करुण
छत्तीसगढ़ की तत्कालीन रायगढ़ रियासत के महान संगीतज्ञ राजा चक्रधर सिंह की स्मृति में इस वर्ष 2 सितम्बर को रायगढ़ में 35 वें अखिल भारतीय चक्रधर नृत्य एवम संगीत समारोह का शुभारंभ होने जा रहा है । दरअसल 2 सितम्बर को गणेश चतुर्थी है और इसी दिन 19 अगस्त 1905 को रायगढ़ में चक्रधर सिंह का जन्म हुआ था । उनका निधन रायगढ़ में ही 7 अक्टूबर 1947 को हुआ।
उनके सम्मान में हर साल गणेश चतुर्थी के दिन राज्य शासन और जिला प्रशासन द्वारा जन सहयोग से दस दिनों के इस राष्ट्रीय समारोह का आयोजन विगत 34 वर्षों से किया जा रहा है । प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल कल 2 सितम्बर को इस आयोजन का शुभारंभ करेंगे ।
राजा चक्रधर सिंह न सिर्फ़ कला रसिक , बल्कि एक महान कला मर्मज्ञ और नृत्य गुरु भी थे । उन्होंने पारम्परिक छत्तीसगढ़ी लोक नाट्य 'नाचा' के कलाकारों को लेकर उन्हें अपने सानिध्य में रखा और इन गुमनाम और अल्पज्ञात कलाकारों को शास्त्रीय नृत्य कथक का कठोर प्रशिक्षण दिया और दिलाया ,फिर इन्हीं कलाकारों को लेकर उन्होंने कथक नृत्य की रायगढ़ शैली का प्रवर्तन किया । वास्तव में राजा चक्रधर सिंह को समय - समय पर 'नाचा' कलाकारों के मंचन को देखकर उनके पैरों की थिरकन में कथक नृत्य का अमिट प्रभाव नज़र आया , तो उन्होंने इन लोक कलाकारों की प्रतिभा को सँवारा और रायगढ़ घराने के नाम से कथक की एक अलग भाव -धारा विकसित कर दी ।उनके सानिध्य में प्रशिक्षित कई कथक नर्तकों ने आगे चलकर राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्धि प्राप्त की ,जिनमें नृत्याचार्य बर्मन लाल , कार्तिक राम ,कल्याणदास फिरतूदास वैष्णव और रामलाल आदि उल्लेखनीय हैं । राजा चक्रधर सिंह ने नृत्य और संगीत पर कई ग्रन्थ लिखे ,जिनमें ' नर्तम -सर्वस्वम ' और 'तलतोय निधि' भी शामिल हैं । उनका लिखा 'बैरागढ़िया राजकुमार' नाटक भी काफी चर्चित और लोकप्रिय रहा है ।
रायगढ़ घराने के शास्त्रीय नृत्य कथक के विकास में राजा चक्रधर सिंह के योगदान पर वर्ष 1993 में एक घण्टे के एक वृत्तचित्र 'अनुकम्पन ' का निर्माण कोलकाता की सुश्री वलाका घोष द्वारा श्री नीलोत्पल मजूमदार के निर्देशन में किया गया था । रायगढ़ घराने के कथक नृत्य पर यह पहली डॉक्यूमेंट्री फ़िल्म थी । सेल्यूलाइड पर 16 एमएम की इस डॉक्यूमेंट्री को भारत सरकार ने वर्ष 1993 के सर्वश्रेष्ठ सांस्कृतिक वृत्त चित्र की श्रेणी में राष्ट्रपति के रजत कमल एवार्ड से सम्मानित किया था । इस फ़िल्म में नृत्याचार्य बर्मन लाल , राजा साहब के ग्रन्थों को विशेष प्रकार के कीमती कागजों पर अपने हाथों से सुडौल अक्षरों में लिपिबद्ध करने वाले चिंतामणि कश्यप और राजा चक्रधर सिंह के सुपुत्र भानुप्रताप सिंह के दिलचस्प साक्षात्कार हैं ,वहीं छत्तीसगढ़ी नाचा के वरिष्ठ कलाकारों के गायन वादन सहित रायगढ़ कथक की नृत्यांगना सुश्री वासन्ती वैष्णव , बाल कलाकार शरद वैष्णव और संगीता नामदेव की भी नृत्य प्रस्तुतियों को भी इसमें शामिल किया गया है ।
जनवरी 1994 में कोलकाता में केन्द्र सरकार द्वारा आयोजित भारत के 24 वें अंतर्राष्ट्रीय फ़िल्म महोत्सव के दौरान वहाँ के गोर्की सदन में यह फ़िल्म भी प्रदर्शित की गयी थी । मुझे भी वरिष्ठ साहित्यकार ,बिलासपुर निवासी पण्डित श्यामलाल चतुर्वेदी, रायगढ़ घराने की नयी पीढ़ी की कथक नृत्यांगना सुश्री वासन्ती वैष्णव और तबला वादक श्री सुनील वैष्णव के साथ इस फ़िल्म समारोह में शामिल होने और 'अनुकम्पन ' के प्रदर्शन का साक्षी बनने का सौभाग्य मिला था ।
दरअसल रायगढ़ कथक पर बनी इस पहली डॉक्यूमेंट्री में मेरा भी एक छोटा -सा योगदान था ,वो यह कि निर्माता ,निर्देशक के आग्रह पर मैंने इसकी पटकथा का हिन्दी रूपांतर करते हुए नेपथ्य से उसकी एंकरिंग भी की थी। वर्ष 1994 में यह डॉक्यूमेंट्री दूरदर्शन के राष्ट्रीय नेटवर्क पर भी प्रसारित की गयी थी ।
शायद वो वर्ष 1996 का चक्रधर समारोह था ,जब आयोजन समिति की ओर से रायगढ़ के गोपी टॉकीज में 'अनुकम्पन ' का प्रदर्शन किया गया था ,जिसे देर तक गूँजती करतल ध्वनि के साथ दर्शकों का उत्साहजनक प्रतिसाद मिला था । जन्म जयंती पर राजा चक्रधर सिंह को शत -शत नमन और उनकी स्मृति में 2 सितम्बर 2019 से शुरू हो रहे अखिल भारतीय चक्रधर समारोह की सफलता के लिए मेरी ओर से भी हार्दिक शुभेच्छाएँ । राजा साहब की अतुलनीय और अनुकरणीय कला साधना को यादगार बनाए रखने के लिए छत्तीसगढ़ सरकार ने राज्य अलंकरण 'चक्रधर सम्मान' की भी स्थापना की है ,जो वर्ष 2001 से हर साल राज्योत्सव के मौके पर संगीत और कला के क्षेत्र में एक चयनित कला साधक को प्रदान किया जाता है ।
-स्वराज करुण
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (03-08-2019) को "बप्पा इस बार" (चर्चा अंक- 3447) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
श्री गणेश चतुर्थी की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत -बहुत धन्यवाद आदरणीय शास्त्रीजी ।
Delete