Sunday, August 27, 2017

(व्यंग्य रचना) वाह रे मैं ...!

           लोग अपने व्यक्तिगत जीवन में किसी महत्वपूर्ण ओहदे को प्राप्त करते हैं , पदोन्नत हो जाते हैं , कोई नई कुर्सी मिल जाती है , किसी ने अपने लेटरपैड के पन्ने पर किसी को किसी संस्था का  पदाधिकारी बना दिया , बिल्ली के भाग्य से कोई ईनाम किसी की झोली में टपक पड़ा , तो ऐसे स्वयंभू महान लोग अपने  फोटो के साथ अख़बारों में अपनी तारीफ़ खुद छपवाते हैं । अपना महिमा मंडन खुद करते हैं !
            पहले तो वे अपनी कथित सफलता का बखान करते हुए अखबारों को निःशुल्क प्रकाशन के लिए प्रेस विज्ञप्ति भिजवाते हैं और अगर प्रेस विज्ञप्ति नहीं छपी  या  अखबारों ने उसे सम्पादित करके छोटा -सा समाचार दे दिया तो  उनकी भूख शांत नहीं होती ! फिर वे तरह -तरह के विज्ञापन माध्यमों का सहारा लेते हैं ! अगर नेता किस्म के हुए तो विज्ञापनों के लिए वे किसी धनपशु को पटा कर उसे विज्ञापन का प्रायोजक लेते हैं !
            समाज के हर क्षेत्र के लोग इस व्याधि से संक्रमित होते जा रहे हैं । सोशल मीडिया ने तो उन्हें मुफ़्त में खुद के प्रचार का एक सर्व सुलभ मंच दे दिया है । आत्म प्रचार की बीमारी का वायरस उनकी तोपचन्दी को दूर - दूर तक वायरल कर देता है । इतने में भी प्रचार की भूख नहीं मिटती तो अपने जन्म दिन पर ,या अपनी किसी व्यक्तिगत कामयाबी  पर स्थानीय अख़बारों में अपने यार - दोस्तों की छोटी - छोटी और अपनी एक बड़ी - सी आदमकद फोटो के साथ बड़े - बड़े इश्तहार छपवाकर या फ्लेक्स और होर्डिंग्स लगवाकर अपनी तारीफ़ का ढिंढोरा पीटते हैं । पैसे खर्च कर अपनी पीठ खुद थपथपाते हैं ! अखबारों में अपने प्रचारात्मक विज्ञापन और उसमें अपनी हँसती -मुस्कुराती तस्वीर देख-देख कर खुद आल्हादित होते रहते हैं ! वे अच्छी तरह जानते हैं कि नेता बनने की प्रारंभिक प्रक्रिया यहीं से शुरू होती है !
          अब तो स्थानीय टेलीविजन चैनलों में भी इस प्रकार के आत्म प्रचारात्मक विज्ञापन प्रदर्शित होने लगे हैं , जिन्हें डिस्प्ले बिलबोर्ड कहा जाता है । होना यह चाहिए कि प्रचार प्रियता और छपास के रोगी  ऐसे लोग अपनी तारीफ़ खुद न छपवाएं , कोई दूसरा व्यक्ति स्वप्रेरणा से उनकी तारीफ़ लिखे और छपवाए , तब तो कोई बात है । अपनी ही पीठ खुद थपथपाकर खुद को शाबाशी देना कहाँ तक उचित है ? आईने के सामने खड़े हो जाना और कहना - वाह रे मैं ...!   - स्वराज करुण

2 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (28-08-2017) को "कैसा सिलसिला है" (चर्चा अंक 2710) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

    ReplyDelete
  2. बहुत - बहुत धन्यवाद आदरणीय शास्त्रीजी !

    ReplyDelete