पूर्णमासी पर रक्षा बंधन का त्यौहार मनाकर सावन आज बिदा हो जाएगा . कई राज्यों में वह खूब बरसा ,गुजरात ,असम जैसे राज्यों में बाढ़ की भयावह आपदा से लोगों को जूझना पड़ा, लेकिन इस बार देश के कुछ इलाकों में सावन की बेरूखी ने किसानों को चिंतित कर दिया .
मौसम वैज्ञानिकों ने इस वर्ष भारत में मानसून की शत-प्रतिशत बारिश का पूर्वानुमान घोषित किया था . अभी मानसून के लगभग दो महीने बाकी हैं .कई राज्यों में वह सटीक साबित हो सकता है ,लेकिन छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों के कुछ इलाकों में बारिश के असंतुलन की वजह से खेती का काम पिछड़ने लगा है . आषाढ़ लगभग सूखा बीत गया .सावन में भी खण्ड वर्षा के हालात देखे गए . शहरों में मोहल्ला स्तर पर हल्की-फुल्की बारिश होती रही और ग्रामीण क्षेत्रों में भी नजारा कुछ ठीक नहीं रहा . बारिश के सुहाने गीत रचने वाले कवि पशोपेश में हैं कि क्या लिखा जाए ?
( फोटो -Google से साभार )
पहले तो सावन की झड़ी कई दिनों तक लगी रहती थी. रिमझिम बारिश का नजारा बड़ा सुहाना लगता था. कवि उसकी शान में कसीदे लिखा करते थे , पर अब उसकी मनभावन रंगत दिनों -दिन फीकी पड़ने लगी है . अब सावन के महीने में पवन का मीठा शोर भी सुनाई नहीं पड़ता . यह किसानों के लिए ही नहीं ,बल्कि हर इंसान के लिए चिन्ता की बात है . देश और दुनिया में मौसम का मिजाज़ दिनों-दिन बदलता जा रहा है . मानसून के चार महीनों में कहीं बहुत ज्यादा और कहीं काफी कम बारिश हो रही है और कहीं अचानक बेमौसम बादल बरसने लगते हैं . इसके कारणों पर गंभीरता से विचार करने की जरूरत है . पर्यावरण विशेषज्ञ पिछले कई वर्षों से जंगलों की बेतहाशा कटाई , औद्योगिक धुंआ प्रदूषण को लेकर अपनी चिन्ता प्रकट करते आ रहे हैं . विभिन्न देशों में आधुनिक हथियारों की होड़ के चलते धरती और समुद्र में विनाशकारी परमाणु बमों का परीक्षण भी जलवायु में असंतुलन का एक प्रमुख कारण है . पर्यावरणविदों ने कई वर्ष पहले ही ग्लोबल वार्मिग की चेतावनी जारी कर दी है . उन्होंने ओजोन परत में सूराख होने और बरसात के बादलों की सघनता कम होते जाने की भी जानकारी दी है .
उजड़ते पहाड़ों और हरियाली की घटती रंगत को भी हम लोग देख रहे हैं . इसके बावजूद हम अगर बेखबर रहना चाहते हैं तो कोई क्या कर सकता है ? बस,हमें सिर्फ इतना ध्यान रखना होगा कि भावी पीढी को हमारे बेखबर रहने के घातक नतीजे भुगतने होंगे और वह हमें माफ़ नहीं करेगी .कल से भादो का महीना शुरू होने वाला है . उम्मीद करनी चाहिए कि कम-से- कम भादों में तो मानसून मेहरबान रहेगा .
-स्वराज करुण
मौसम वैज्ञानिकों ने इस वर्ष भारत में मानसून की शत-प्रतिशत बारिश का पूर्वानुमान घोषित किया था . अभी मानसून के लगभग दो महीने बाकी हैं .कई राज्यों में वह सटीक साबित हो सकता है ,लेकिन छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों के कुछ इलाकों में बारिश के असंतुलन की वजह से खेती का काम पिछड़ने लगा है . आषाढ़ लगभग सूखा बीत गया .सावन में भी खण्ड वर्षा के हालात देखे गए . शहरों में मोहल्ला स्तर पर हल्की-फुल्की बारिश होती रही और ग्रामीण क्षेत्रों में भी नजारा कुछ ठीक नहीं रहा . बारिश के सुहाने गीत रचने वाले कवि पशोपेश में हैं कि क्या लिखा जाए ?
( फोटो -Google से साभार )
पहले तो सावन की झड़ी कई दिनों तक लगी रहती थी. रिमझिम बारिश का नजारा बड़ा सुहाना लगता था. कवि उसकी शान में कसीदे लिखा करते थे , पर अब उसकी मनभावन रंगत दिनों -दिन फीकी पड़ने लगी है . अब सावन के महीने में पवन का मीठा शोर भी सुनाई नहीं पड़ता . यह किसानों के लिए ही नहीं ,बल्कि हर इंसान के लिए चिन्ता की बात है . देश और दुनिया में मौसम का मिजाज़ दिनों-दिन बदलता जा रहा है . मानसून के चार महीनों में कहीं बहुत ज्यादा और कहीं काफी कम बारिश हो रही है और कहीं अचानक बेमौसम बादल बरसने लगते हैं . इसके कारणों पर गंभीरता से विचार करने की जरूरत है . पर्यावरण विशेषज्ञ पिछले कई वर्षों से जंगलों की बेतहाशा कटाई , औद्योगिक धुंआ प्रदूषण को लेकर अपनी चिन्ता प्रकट करते आ रहे हैं . विभिन्न देशों में आधुनिक हथियारों की होड़ के चलते धरती और समुद्र में विनाशकारी परमाणु बमों का परीक्षण भी जलवायु में असंतुलन का एक प्रमुख कारण है . पर्यावरणविदों ने कई वर्ष पहले ही ग्लोबल वार्मिग की चेतावनी जारी कर दी है . उन्होंने ओजोन परत में सूराख होने और बरसात के बादलों की सघनता कम होते जाने की भी जानकारी दी है .
उजड़ते पहाड़ों और हरियाली की घटती रंगत को भी हम लोग देख रहे हैं . इसके बावजूद हम अगर बेखबर रहना चाहते हैं तो कोई क्या कर सकता है ? बस,हमें सिर्फ इतना ध्यान रखना होगा कि भावी पीढी को हमारे बेखबर रहने के घातक नतीजे भुगतने होंगे और वह हमें माफ़ नहीं करेगी .कल से भादो का महीना शुरू होने वाला है . उम्मीद करनी चाहिए कि कम-से- कम भादों में तो मानसून मेहरबान रहेगा .
-स्वराज करुण
चर्चा मंच पर स्थान देने के लिए ह्रदय से आपका आभार ।
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