हाय मेरे वतन के लोगों , तुमने क्या कर डाला है ,
कदम-कदम पर आज हर तरफ उनका बोलबाला है !
चालें उनकी समझ न आयी हमको भी और तुमको भी
इसीलिए तो गले में उनके फूलों की हर दिन माला है !
पहले तो समझा था हमने प्यार का वो महासागर हैं ,
हमें क्या पता दिल में उनके नफरत का परनाला है !
हर आफिस के हर कमरे में महफ़िल सौदेबाजों की ,
हर सौदागर सिंहासनों का रिश्ते में लगता साला है !
नीलाम वतन को कर देंगे ,ये ठान के आकर बैठे हैं ,
फिर भी क्यों आँखों में हमारे भ्रम का छाया जाला है !
मिठलबरों की भीड़ है उनके आगे-पीछे ,आजू-बाजू ,
इस मायावी दुनिया में उनका हर कोई हमप्याला है !
उनकी बातों से लगता था जैसे कोई फरिश्ता हो,
अब लगता है जैसे उनके दिल में भी धन काला है !
कारगुजारी उनकी फिर भी खुल्लमखुल्ला जारी है ,
कुछ कहने वालों के मुंह पर सोने का लटका ताला है !
--- स्वराज्य करुण