फिर भी सबक नहीं ले रहा आज का इंसान !
मिट गए सारे जंगल - पर्वत
खून का प्यासा युद्धखोर अब यह मानव बेईमान ,
हिंसा-प्रतिहिंसा में जल कर जग बनता श्मशान !
इसीलिए तो धमका जाए
, कुछ लोगों की करनी से है यह दुनिया परेशान !
गंगा -जमुना मैली हो गयी
झूठ-फरेब की आदत औ एक झूठा अभिमान ,
महंगाई का खूनी मंज़र रोज निकाले प्राण ,
फिर भी सबक नहीं ले रहा आज का इंसान !
खूबसूरत गीत, शुभकामनाएं
ReplyDeleteधन्यवाद . आपको भी सपरिवार शारदीय नवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएं.
Deleteविचारणीय...मर्मस्पर्शी पंक्तियाँ
ReplyDeleteप्रतिक्रिया के लिए आभार. शारदीय नवरात्रि की आपको और आपके परिवार को हार्दिक शुभकामनाएं.
Deleteसुंदर रचना... सुन्दर प्रवाह ..
ReplyDelete