हिरोशिमा -नागासाकी में विनाशकारी परमाणु बादल
(६ अगस्त और ९ अगस्त १९४५ )
दोस्तों ! माचिस से चूल्हा जलाकर पेट की आग बुझाई जा सकती है और किसी के घर में आग भी लगाई जा सकती है. सुई से कपड़े सिले जा सकते हैं और किसी की आँखें भी फोड़ी जा सकती हैं . चीजों का इस्तेमाल व्यक्ति की मानसिकता पर निर्भर करता है . अराजक. विध्वंसक और हिंसक मानसिकता का व्यक्ति हर उस वस्तु का दुरूपयोग कर सकता हैं,जिसका निर्माण समाज की सुख-शान्ति के लिए और इंसान की कठिन जिंदगी को आसान बनाने के लिए हुआ है .विज्ञान के कुछ अत्यंत महत्वपूर्ण आविष्कारों के साथ भी ऐसा ही कुछ हो रहा है. परमाणु विज्ञान इसका एक बड़ा उदाहरण है . इसका उपयोग बिजली बनाने से लेकर चिकित्सा विज्ञान में भी हो रहा है और विनाशकारी हथियार के रूप में एटम बम बनाने के लिए भी . एटमी हथियारों बेरहम और बेशरम प्रतिस्पर्धा हमारी इस खूबसूरत दुनिया का क्या हाल बना देगी ,इसे अगर समझना हो तो
आज छह अगस्त को कुछ पल के लिए जापान के हिरोशिमा शहर में सिर्फ ६७ साल पहले हुई तबाही को याद करें .आज का दिन विश्व-शान्ति के लिए पूरी दुनिया में हिरोशिमा दिवस के रूप में मनाया जाता है .
यह दिन हमे याद दिलाता है अमेरिका की उस काली करतूत की ,जिसने सम्पूर्ण मानवता को शर्मसार कर
दिया था . दुनिया के इतिहास में छह अगस्त १९४५ का दिन 'काला दिवस ' के रूप
में हमेशा के लिए दर्ज हो गया है . यही वह दिन है ,जब अमेरिका ने जापान के
खूबसूरत शहर हिरोशिमा पर दुनिया का पहला परमाणु बम गिरा कर कम से कम सत्तर
हजार बेगुनाह लोगों को तत्काल मौत के घाट उतार दिया था .और इस परमाणु हमले
के बाद के दुष्प्रभावों से कम से कम डेढ़ लाख लोग तरह-तरह की शारीरिक
तकलीफों के कारण तड़फ-तड़फ कर दम तोड़ गए . मासूम बच्चों -बूढों और युवा
इंसानों के अलावा लाखों निरीह जानवर भी बेमौत मारे गए . सम्पूर्ण हिरोशिमा
चलती-फिरती लाशों के शहर में तब्दील हो गया था . मकान ज़मींदोज़ हो गए थे
.शहर तबाह हो गया था . इस भयानक तबाही से भी जब खून के प्यासे दानव अमेरिका
का दिल नहीं भरा तो उसने ठीक तीसरे दिन नौ अगस्त को एक और जापानी शहर नागासाकी पर भी
परमाणु हमला करके ऐसा ही कहर ढाया . वह तो मेहनतकश जापानियों का ज़ज्बा था
,जिसने इन दोनों तबाह शहरों को कुछ ही
वर्षों में देखते ही देखते सपनों के नए शहर के रूप में नए सिरे से खड़ा कर दिया और इंसानी जिंदगी एक बार फिर अपनी
रफ्तार से चलने लगी लेकिन अपने लाखों नागरिकों की एक ही झटके में हुई मौत
का ज़ख्म ये दोनों शहर क्या कभी भूल पाएंगे? क्या हमारी दुनिया इसे भूल
पाएगी ? वह दूसरे विश्व युद्ध का दौर था . ईश्वर हमारी दुनिया को दोबारा तबाही का ऐसा मंजर न दिखाए . तीसरा विश्व-युद्ध कभी मत हो ,क्योंकि अगर ऐसा हुआ तो महान वैज्ञानिक आइंस्टीन के शब्दों में -चौथा विश्व-युद्ध कभी नहीं होगा ,क्योंकि तब यह दुनिया रहेगी ही नहीं .
जापानियों का ज़ज्बा : फिर हुआ आबाद सपनों का शहर
हिरोशिमा में गिराए गए परमाणु बम की ताकत बीस हजार टन बतायी जाती
है .उसमे रेडियो-एक्टिव पदार्थ यूरेनियम-२३५ का इस्तेमाल हुआ था . इस बम के
गिरते ही वहाँ का तापमान दस मिलियन डिग्री तक पहुँच गया था सूरज की चमक से
भी हजार गुना तेज रौशनी ने शहर को जला डाला था .आज तो अमेरिका ही नही
,बल्कि दुनिया के बहुत से देश परमाणु बम बना रहे हैं ,जिनकी तबाही की ताकत
उससे भी हजारों गुना ज्यादा है . इसके बावजूद हमारी दुनिया विस्फोटकों के मुहाने
पर बैठ कर एकदम बेफिक्र है . वह मानवता के इस दुश्मन से दोस्ती गाँठ रही है . खतरे को समझ कर भी नासमझ बन रही है . आइये छह अगस्त को हिरोशिमा दिवस पर हम हिरोशीमा
और नागासाकी के लाखों शहीदों को याद करें और उनकी आत्मा की शांति के लिए
प्रार्थना करते हुए ईश्वर से यह भी गुजारिश करें कि वह परमाणु बम बनाने
वालों को सदबुद्धि दें और उनके दिलों में मानवता की भावना जगाए. परमाणु-
ताकत का शांतिपूर्ण उपयोग हो .वह विनाश का हथियार नहीं. विकास का औजार बने
. -स्वराज्य करुण
ह्रदय विदारक घटना को याद कर सार्थक विश्लेषण है यह पोस्ट....
ReplyDeleteसादर।
हिरोशिमा पर परमाणु आक्रमण मानवता को कलंकित करने वाला काला दिन था। ईश्वर करे, यह फ़िर दोहराया न जाए। हिरोशिमा के मृतकों को विनम्र श्रद्धांजलि
ReplyDeleteविज्ञान का सार्थक उपयोग ही किया जाना चाहिए किन्तु यह भी उतना ही शाश्वत सत्य है कि हम जाने अनजाने विज्ञान का दुरुपयोग कर डालते हैं .बस स्वाभाविक है ऐसे विनाश का जो किसी देश के जन जीवन को अस्त व्यस्त कर देते हैं
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