इसमें कोई शक नहीं कि पूरी दुनिया में जनता के द्वारा निर्वाचित लोकतांत्रिक सरकारें अपने -अपने देशों और
राज्यों में पर्यावरण की रक्षा के लिए चिंतित हैं और हरियाली का विस्तार करना चाहती हैं . वे इसके लिए सघन वृक्षारोपण को बढ़ावा देती हैं . हर साल २१ मार्च को विश्व वानिकी दिवस ,२२ मार्च को विश्व पानी दिवस , २३ मार्च को विश्व मौसम दिवस और पांच जून को विश्व -पर्यावरण दिवस का आयोजन संयुक्त राष्ट्र संघ की संस्थाओं द्वारा दुनिया भर में सरकारों के सहयोग से किया जाता है.
भारत सरकार वनों की रक्षा के लिए देश भर में राज्यों के सहयोग से संयुक्त वन प्रबंधन योजना पिछले करीब डेढ़ दशक से चला रही है .इसके तहत स्थानीय ग्रामीणों की वन प्रबंध समितियों का गठन कर उन्हें जंगलों की देख-भाल और वन-संवर्धन की जिम्मेदारी सौंपी जाती है. वन-प्रबंधन में जन-भागीदारी इसका मुख्य उद्देश्य है. यह कार्य राज्य सरकारों के सहयोग से किया जाता है. समितियों को वनों के उत्पादन पर लाभांश भी मिलता है. कई समितियां चार-चिरौंजी , इमली , आंवला , हर्रा बहेडा आदि लघु-वनोपजों के कारोबार के साथ -साथ उन पर आधारित -च्यवनप्राश , त्रिफला,अचार-मुरब्बा जैसी स्वास्थ्यवर्धक सामग्री बना कर उनका अच्छा कारोबार भी कर रही हैं .कुछ समितियों ने हरियाली बढ़ाने और वनों की रक्षा का शानदार उदाहरण भी पेश किया है. केन्द्र और राज्य सरकारों की योजनाओं से लगता है कि वे बहुत साफ़ मन से हरियाली और पर्यावरण को बचाना चाहती हैं . वन संरक्षण अधिनियम जैसे कई कठोर कानूनी प्रावधान भी किए गए हैं, ताकि पर्यावरण संतुलन के लिए हरियाली की रक्षा सुनिश्चित हो सके . केन्द्र और राज्यों के स्तर पर वन और पर्यावरण मंत्रालय और विभाग इसी काम के लिए बनाए गए हैं . इनमे हज़ारों-लाखों की संख्या में अधिकारी-कर्मचारी भी रखे गए हैं .उन्हें हज़ारों-लाखों रूपए मासिक के हिसाब से सालाना अरबों रूपए की तनख्वाहें दी जा रही है. लेकिन कई इलाकों में लापरवाह अधिकारियों और वन प्रबंधन समितियों की निष्क्रियता की वज़ह से सरकारों के नेक इरादों को विफलता का ग्रहण लगता दिखाई दे रहा है. एक हिन्दी दैनिक में छपी खबर से तो ऐसा ही कुछ आभास होता है. संवाददाता ने यह खबर जिस कस्बाई शहर से भेजी है , उसके आस-पास तेजी से नष्ट हो रही हरियाली को बचाने की गहरी चिंता और बेचैनी उसमे झलकती है . खबर कुछ इस प्रकार है----
''ग्रामीण अंचलों में हरे-भरे वृक्षों की अवैध कटाई बड़े पैमाने पर चल रही है. जलाऊ लकड़ी के नाम पर सैकड़ों लोग जंगलों में घुस कर वृक्षों को बेरहमी से काट रहे हैं .गाँव के कुछ लोगों के साथ लकड़ी के दलाल इस कार्य में सक्रिय हैं. क्षेत्र में रोजाना सैकड़ों वृक्ष काटे जाने की खबर मिल रही है. कटी हुई लकडियों को लोग खुले आम सायकलों में तथा ट्रेक्टर-ट्राली में लाद कर यहाँ-वहाँ खपा रहे हैं. यह भी जानकारी मिली है कि कतिपय लोग किसानों से औने-पौने दामों में पेड़ का सौदा कर दूसरी जगह उसे तीन-चार गुना रेट पर बेच देते हैं. काटे जाने वाले पेड़ों में अनेक फलदार पेड़ भी हैं .वन-विभाग द्वारा जितने पौधे रोपित किए जाते हैं , उससे कहीं ज्यादा पेड़ काट लिए जाते हैं.,जिससे शहर के आस-पास के क्षेत्रों में हरियाली खत्म हो जा रही है. डेम से लगी पहाड़ी ,जहां कुछ साल पूर्व तक पेड़ों की बहुतायत थी, वहाँ अब पेड़ नज़र नहीं आते. हरे-भरे पेड़ों को सम्बन्धित विभाग से बिना ठोस कारण बताए और बिना अनुमति काटना अवैधानिक है. परन्तु लकड़ी -माफिया को इन सब बातों से कोई मतलब नहीं. जानकार लोगों का कहना है कि पेड़ों की अवैध कटाई की जानकारी वन-विभाग एवं प्रशासनिक अधिकारियों को है . पर कोई कार्रवाई नहीं होना उनकी कार्य-शैली पर सवाल खड़े करता है .टाऊनशिप में भी सड़क चौड़ीकरण के नाम पर सडक-किनारे के अनेक पेड़ काट डाले गए हैं.''
इस तरह की ख़बरें देश के लगभग सभी राज्यों के समाचार पत्रों में आंचलिक पन्नों पर छपती रहती हैं . कोई इन ख़बरों को गंभीरता से नहीं लेता. समाज के ठेकेदार अक्सर ऐसी ख़बरों का मजाक बना कर हवा में उड़ा देते हैं. उनमे से कुछ को तो यह भी कहते पाया जाता है कि शायद पत्रकार को फॉरेस्ट वालों से कुछ खुरचन -पानी नहीं मिला होगा . रेंजर से नहीं जमी होगी . लेकिन ऐसा कह कर वे अपने जैसे भ्रष्ट लोगों का ही तो बचाव करते हैं . ऐसे लोग ही आज हरियाली और पर्यावरण के सबसे बड़े दुश्मन हैं . इन्हें पहचानने की और इनके खिलाफ एक प्रभावी हरित-क्रान्ति लाने की ज़रूरत है.हमे याद रखना चाहिए कि एक पौधे को पेड़ बनने में पन्द्रह-बीस ,पच्चीस साल या उससे भी ज्यादा समय लग जाता है ,जबकि उसकी कटाई कुछ ही घंटों में हो जाती है. आधुनिक मोटर चलित आरा-मशीनों से तो कुछ ही मिनटों में किसी भी सौ-पचास वर्ष पुराने पेड़ को काटा जा सकता है . जैसे कोई इंसान जन्म लेकर जवान हुआ ,उसकी उम्र पैंतीस वर्ष की हो गयी ,लेकिन किसी हत्यारे ने तलवार से या नहीं तो बन्दूक-पिस्तौल की गोली से पल भर में उसकी जिंदगी खत्म कर दी. उसकी पैंतीस वर्षों से चल रही जीवन-यात्रा कुछ ही पलों में खत्म हो गयी !
कहने का आशय यह कि दुनिया में किसी चीज को बनाना बहुत कठिन है ,लेकिन विध्वंसक मानसिकता हो तो उसे पलक झपकते बिगाड़ा जा सकता है. जब हम किसी चीज को बना नहीं सकते ,तो उसे बिगाड़ने का अधिकार हमे किसने दिया ? जब हम किसी प्राणी को जीवन नहीं दे सकते ,तो उसका जीवन खत्म करने का अधिकार हमें क्यों मिलना चाहिए ? यही बात पेड़ों की कटाई पर भी लागू होती है. भले ही ये बेजुबान हैं, लेकिन विज्ञान ने यह साबित कर दिया है कि इनमे भी जीवन है. हर वह वस्तु, जिसमे प्राकृतिक रूप से वृद्धि होती है, उसमे जीवन है. फिर हम वृक्षों को इतनी बेरहमी से काटने और जंगलों को उजाड़ने के लिए क्यों तत्पर हो जाते हैं ? क्या हमें यह नहीं मालूम कि इन्हीं हरे -भरे पेड़ों की कृपा से हमें प्राण-वायु (ऑक्सीजन ) मिलती है , जिससे हम सांस लेते हैं, हमारा दिल धड़कता है और जीवन चलता है. वृक्ष हमारे जीवन-दाता हैं ,लेकिन हम साक्षर और शिक्षित हो कर और यह सब जानते हुए भी अपने ही जीवन-दाता की हत्या किए जा रहे रहे हैं ! इंसान की बुद्धि को आज क्या हो गया है ? वह हैवान क्यों बन गया है ?
स्वराज्य करुण
राज्यों में पर्यावरण की रक्षा के लिए चिंतित हैं और हरियाली का विस्तार करना चाहती हैं . वे इसके लिए सघन वृक्षारोपण को बढ़ावा देती हैं . हर साल २१ मार्च को विश्व वानिकी दिवस ,२२ मार्च को विश्व पानी दिवस , २३ मार्च को विश्व मौसम दिवस और पांच जून को विश्व -पर्यावरण दिवस का आयोजन संयुक्त राष्ट्र संघ की संस्थाओं द्वारा दुनिया भर में सरकारों के सहयोग से किया जाता है.
भारत सरकार वनों की रक्षा के लिए देश भर में राज्यों के सहयोग से संयुक्त वन प्रबंधन योजना पिछले करीब डेढ़ दशक से चला रही है .इसके तहत स्थानीय ग्रामीणों की वन प्रबंध समितियों का गठन कर उन्हें जंगलों की देख-भाल और वन-संवर्धन की जिम्मेदारी सौंपी जाती है. वन-प्रबंधन में जन-भागीदारी इसका मुख्य उद्देश्य है. यह कार्य राज्य सरकारों के सहयोग से किया जाता है. समितियों को वनों के उत्पादन पर लाभांश भी मिलता है. कई समितियां चार-चिरौंजी , इमली , आंवला , हर्रा बहेडा आदि लघु-वनोपजों के कारोबार के साथ -साथ उन पर आधारित -च्यवनप्राश , त्रिफला,अचार-मुरब्बा जैसी स्वास्थ्यवर्धक सामग्री बना कर उनका अच्छा कारोबार भी कर रही हैं .कुछ समितियों ने हरियाली बढ़ाने और वनों की रक्षा का शानदार उदाहरण भी पेश किया है. केन्द्र और राज्य सरकारों की योजनाओं से लगता है कि वे बहुत साफ़ मन से हरियाली और पर्यावरण को बचाना चाहती हैं . वन संरक्षण अधिनियम जैसे कई कठोर कानूनी प्रावधान भी किए गए हैं, ताकि पर्यावरण संतुलन के लिए हरियाली की रक्षा सुनिश्चित हो सके . केन्द्र और राज्यों के स्तर पर वन और पर्यावरण मंत्रालय और विभाग इसी काम के लिए बनाए गए हैं . इनमे हज़ारों-लाखों की संख्या में अधिकारी-कर्मचारी भी रखे गए हैं .उन्हें हज़ारों-लाखों रूपए मासिक के हिसाब से सालाना अरबों रूपए की तनख्वाहें दी जा रही है. लेकिन कई इलाकों में लापरवाह अधिकारियों और वन प्रबंधन समितियों की निष्क्रियता की वज़ह से सरकारों के नेक इरादों को विफलता का ग्रहण लगता दिखाई दे रहा है. एक हिन्दी दैनिक में छपी खबर से तो ऐसा ही कुछ आभास होता है. संवाददाता ने यह खबर जिस कस्बाई शहर से भेजी है , उसके आस-पास तेजी से नष्ट हो रही हरियाली को बचाने की गहरी चिंता और बेचैनी उसमे झलकती है . खबर कुछ इस प्रकार है----
''ग्रामीण अंचलों में हरे-भरे वृक्षों की अवैध कटाई बड़े पैमाने पर चल रही है. जलाऊ लकड़ी के नाम पर सैकड़ों लोग जंगलों में घुस कर वृक्षों को बेरहमी से काट रहे हैं .गाँव के कुछ लोगों के साथ लकड़ी के दलाल इस कार्य में सक्रिय हैं. क्षेत्र में रोजाना सैकड़ों वृक्ष काटे जाने की खबर मिल रही है. कटी हुई लकडियों को लोग खुले आम सायकलों में तथा ट्रेक्टर-ट्राली में लाद कर यहाँ-वहाँ खपा रहे हैं. यह भी जानकारी मिली है कि कतिपय लोग किसानों से औने-पौने दामों में पेड़ का सौदा कर दूसरी जगह उसे तीन-चार गुना रेट पर बेच देते हैं. काटे जाने वाले पेड़ों में अनेक फलदार पेड़ भी हैं .वन-विभाग द्वारा जितने पौधे रोपित किए जाते हैं , उससे कहीं ज्यादा पेड़ काट लिए जाते हैं.,जिससे शहर के आस-पास के क्षेत्रों में हरियाली खत्म हो जा रही है. डेम से लगी पहाड़ी ,जहां कुछ साल पूर्व तक पेड़ों की बहुतायत थी, वहाँ अब पेड़ नज़र नहीं आते. हरे-भरे पेड़ों को सम्बन्धित विभाग से बिना ठोस कारण बताए और बिना अनुमति काटना अवैधानिक है. परन्तु लकड़ी -माफिया को इन सब बातों से कोई मतलब नहीं. जानकार लोगों का कहना है कि पेड़ों की अवैध कटाई की जानकारी वन-विभाग एवं प्रशासनिक अधिकारियों को है . पर कोई कार्रवाई नहीं होना उनकी कार्य-शैली पर सवाल खड़े करता है .टाऊनशिप में भी सड़क चौड़ीकरण के नाम पर सडक-किनारे के अनेक पेड़ काट डाले गए हैं.''
इस तरह की ख़बरें देश के लगभग सभी राज्यों के समाचार पत्रों में आंचलिक पन्नों पर छपती रहती हैं . कोई इन ख़बरों को गंभीरता से नहीं लेता. समाज के ठेकेदार अक्सर ऐसी ख़बरों का मजाक बना कर हवा में उड़ा देते हैं. उनमे से कुछ को तो यह भी कहते पाया जाता है कि शायद पत्रकार को फॉरेस्ट वालों से कुछ खुरचन -पानी नहीं मिला होगा . रेंजर से नहीं जमी होगी . लेकिन ऐसा कह कर वे अपने जैसे भ्रष्ट लोगों का ही तो बचाव करते हैं . ऐसे लोग ही आज हरियाली और पर्यावरण के सबसे बड़े दुश्मन हैं . इन्हें पहचानने की और इनके खिलाफ एक प्रभावी हरित-क्रान्ति लाने की ज़रूरत है.हमे याद रखना चाहिए कि एक पौधे को पेड़ बनने में पन्द्रह-बीस ,पच्चीस साल या उससे भी ज्यादा समय लग जाता है ,जबकि उसकी कटाई कुछ ही घंटों में हो जाती है. आधुनिक मोटर चलित आरा-मशीनों से तो कुछ ही मिनटों में किसी भी सौ-पचास वर्ष पुराने पेड़ को काटा जा सकता है . जैसे कोई इंसान जन्म लेकर जवान हुआ ,उसकी उम्र पैंतीस वर्ष की हो गयी ,लेकिन किसी हत्यारे ने तलवार से या नहीं तो बन्दूक-पिस्तौल की गोली से पल भर में उसकी जिंदगी खत्म कर दी. उसकी पैंतीस वर्षों से चल रही जीवन-यात्रा कुछ ही पलों में खत्म हो गयी !
कहने का आशय यह कि दुनिया में किसी चीज को बनाना बहुत कठिन है ,लेकिन विध्वंसक मानसिकता हो तो उसे पलक झपकते बिगाड़ा जा सकता है. जब हम किसी चीज को बना नहीं सकते ,तो उसे बिगाड़ने का अधिकार हमे किसने दिया ? जब हम किसी प्राणी को जीवन नहीं दे सकते ,तो उसका जीवन खत्म करने का अधिकार हमें क्यों मिलना चाहिए ? यही बात पेड़ों की कटाई पर भी लागू होती है. भले ही ये बेजुबान हैं, लेकिन विज्ञान ने यह साबित कर दिया है कि इनमे भी जीवन है. हर वह वस्तु, जिसमे प्राकृतिक रूप से वृद्धि होती है, उसमे जीवन है. फिर हम वृक्षों को इतनी बेरहमी से काटने और जंगलों को उजाड़ने के लिए क्यों तत्पर हो जाते हैं ? क्या हमें यह नहीं मालूम कि इन्हीं हरे -भरे पेड़ों की कृपा से हमें प्राण-वायु (ऑक्सीजन ) मिलती है , जिससे हम सांस लेते हैं, हमारा दिल धड़कता है और जीवन चलता है. वृक्ष हमारे जीवन-दाता हैं ,लेकिन हम साक्षर और शिक्षित हो कर और यह सब जानते हुए भी अपने ही जीवन-दाता की हत्या किए जा रहे रहे हैं ! इंसान की बुद्धि को आज क्या हो गया है ? वह हैवान क्यों बन गया है ?
स्वराज्य करुण
भारतीय नव वर्ष की आप को हार्दिक शुभकामनाये
ReplyDeleteप्रत्येक व्यक्ति खुद को सुख-सुविधा भोगने का पात्र और दूसरों को इसके लिए जरूरी इंतजामात का ध्यान रखने वाला मानता है.
ReplyDelete२३ मार्च को विश्व पृथ्वी दिवस नहीं बल्कि विश्व पृथ्वी दिवस २२ अप्रैल को होता है. कृपया सही कर लें.
ReplyDelete@कुंवर कुसुमेश जी ! इस आलेख पर कृपापूर्वक आपका ध्यान गया और आपने एक तथ्यात्मक गलती की ओर ध्यान दिलाया .इसके लिए बहुत-बहुत धन्यवाद .वास्तव में २३ मार्च को विश्व पृथ्वी दिवस नहीं ,बल्कि विश्व-मौसम दिवस मनाया जाता है. इसका संबंध भी पृथ्वी के पर्यावरण से जुडता है. गलती सुधार ली गयी है. पुनः आभार.
ReplyDeleteअगर राह में कहीं रोड़ा अटकने पर वृक्ष काटना आवश्यक हो तो काटे जा सकते हैं, पर उपयुक्त स्थान पर वृक्ष लगाने में कोताही नहीं बरतनी चाहिए।
ReplyDeleteकाटने के पश्चात वृक्ष न लगाना शर्मनाक है। सभी मौसम में वृक्षों की आवश्यकता होती है। वृक्ष लगाने हेतु कड़ाई की जानी चाहिए। राशन कार्ड में यह दर्ज होना चाहिए कि कार्डधारी ने कितने वृक्ष लगाए। सत्यापन के पश्चात ही राशन कार्ड जारी होना चाहिए।
@ ललित भाई ! आपका सुझाव विचारणीय है. आभार. लेकिन सडक-चौड़ीकरण के लिए कई जगहों पर बेवजह भी पेड़ काटे जा रहे हैं . डामरीकरण के नाम पर वृक्षों की जड़ों तक भयानक तरीके से डामर चिपका दी गयी है. आखिर बारिश का पानी जड़ों तक पहुंचेगा कैसे ? सड़क-निर्माण और दूसरी तरह की विकास-परियोजनाओं के लिए बेहिसाब काटे जाने वाले वृक्षों का हिसाब कौन ,कहाँ रखता है , यह भी देखा जाना चाहिए .
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