स्वराज्य करुण
कहाँ है, कैसा है , क्या हाल-चाल है ,
अब कौन किसे पूछता ये सवाल है !
सड़कों पे रोज हो रही नीलाम जिंदगी,
ग्राहकों से कहीं ज़्यादा, लगते दलाल हैं !
बज रहा है गाना अब उनकी पसंद का ,
जिसमें न कोई लय ,न कोई सुर-ताल है !
घायल परिंदों से सजे हुए है पिंजरे ,
दर्द के व्यापार में कई मालामाल है !
बेजुबान बस्तियां हैं , खामोश रास्ते,
हमसफ़र भी डरे -सहमे, ये किसकी चाल है !
इक बार बढ़ी तो फिर बढ़ती चली गयी
है कौन उसे रोके ,किसकी मजाल है !
हर वक्त चल रहा है महंगाई का मौसम ,
अमीरों की मौज है, यहाँ बाकी बेहाल हैं !
खेतों में खड़े हो गये लोहे के कारखाने ,
थालियों से रोज घट रही रोटी-दाल है !
कुछ भी समझ न आए मुल्क के अवाम को,
सियासत के जादूगरों का ये मायाजाल है !
किसानों का दर्द भूल के रम गये क्रिकेट में,
उनके लिए तो जनता भी महज फ़ुटबाल है !
स्वराज्य करुण
कहाँ है, कैसा है , क्या हाल-चाल है ,
अब कौन किसे पूछता ये सवाल है !
सड़कों पे रोज हो रही नीलाम जिंदगी,
ग्राहकों से कहीं ज़्यादा, लगते दलाल हैं !
बज रहा है गाना अब उनकी पसंद का ,
जिसमें न कोई लय ,न कोई सुर-ताल है !
घायल परिंदों से सजे हुए है पिंजरे ,
दर्द के व्यापार में कई मालामाल है !
बेजुबान बस्तियां हैं , खामोश रास्ते,
हमसफ़र भी डरे -सहमे, ये किसकी चाल है !
इक बार बढ़ी तो फिर बढ़ती चली गयी
है कौन उसे रोके ,किसकी मजाल है !
हर वक्त चल रहा है महंगाई का मौसम ,
अमीरों की मौज है, यहाँ बाकी बेहाल हैं !
खेतों में खड़े हो गये लोहे के कारखाने ,
थालियों से रोज घट रही रोटी-दाल है !
कुछ भी समझ न आए मुल्क के अवाम को,
सियासत के जादूगरों का ये मायाजाल है !
किसानों का दर्द भूल के रम गये क्रिकेट में,
उनके लिए तो जनता भी महज फ़ुटबाल है !
स्वराज्य करुण
आमतौर पर बस्तियों के बेजुबान होने पर ही रास्ते खामोश होते हैं, वैसे तो चुप की भी दहाड़ होती है.
ReplyDeleteकामयाब है यह रचना ...शुभकामनायें !
ReplyDeleteswarajya Bhaiyaji Aapki Gajal janta ke dard ko awam unki peeda ko kah rahi hai.jamanas ki aur se bebak bayani hai.
ReplyDeleteshankar Goyal
बज रहा है गाना अब उनकी पसंद का ,
ReplyDeleteजिसमें न कोई लय ,न कोई सुर-ताल है !
घायल परिंदों से सजे हुए है पिंजरे दर्द के व्यापार में कई मालामाल है !
यूं तो सब अच्छा है पर आज अपनी खास पसंद !
सियासत के जादूगरों पूछता ये सवाल है...बेजुबान खामोश बस्तियों...शुभकामनायें !
ReplyDeleteखेतों में खड़े हो गए लोहे के कारखाने
ReplyDeleteथालियों से रोज घट रही रोटी दाल है
असल ज़िदगी को दर्शाती हुई ग़ज़ल ...बहुत बढ़िया
बहुत सुन्दर अभिब्यक्ति | धन्यवाद|
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