स्वराज्य करुण
- स्वराज्य करुण
दिन के उजाले की तरह साफ़-साफ़ है,
सारे सबूत आज उनके ही खिलाफ हैं !
है कौन यहाँ कातिल और कौन लुटेरा ,
जान कर भी उनके सब गुनाह माफ हैं !
चोरों को मिली चाबी हुकूमत-ए-वतन की ,
मुजरिमों की अदालत में कहाँ इन्साफ है !
रिश्वत की कमाई से है लॉकर भी लबालब ,
पकड़े गए तो आपस में हुआ हाफ-हाफ है !
खेतों में चला बुलडोज़र ,जंगल में तबाही ,
विकास के नाम कितना घनघोर पाप है !
गाँवों की ओर चल पड़े शहरों से माफिया ,
मासूम किसानों पर किसका अभिशाप है ! - स्वराज्य करुण