स्वराज्य करुण
नीला पर्वत ,निर्मल नदिया और यह तालाब
लगता जैसे दिन में भी कोई सुंदर ख्वाब !
सौ -सौ जनम इस धरती पर रहे सदा आबाद
एक अनोखा सुख देती है हमको इसकी याद !
सबके सिर पर हाथ फेरती अमराई की छाँव
राहगीर की थकी राह पर यह शीतल ठहराव !
खेतों से बहती हवा में जीवन का सन्देश
भारत मेरा रहे हमेशा गाँवों का ही देश !
तुझसे तो बिछुड़कर रहना बहुत मुश्किल है
बिछुडन का दर्द भी सहना बहुत मुश्किल है !
मिल जाए चाहे मुझे कितनी भी यातना
आह तक होठों से कहना बहुत मुश्किल है !
मेरे गाँव ! मै तुझसे न दूर रह पाऊंगा
माटी यह मुझे खींच लाती है बार-बार !
जाने किस युग का नाता है तेरी गलियों से ,
जिनसे अलग होने से मन करता है इनकार !
जब भी मैं तुझसे दूर कहीं जाता हूँ
तेरी ये धूल भरी राह मुझे पुकारती है ,
फसलों को चूमकर जब लौटती हवा
ममता की बांहों में बच्चों सा दुलारती है !
तेरे ही आँचल के बरगद की छांह में,
झूलने को मन कितना आतुर हो जाता है ,
मैं पूछता हूँ जिंदगी के निर्माता से
बचपन क्यों पल भर में दूर हो जाता है !
राह चलती बैलगाडियों में जा बैठना ,
पोखरों में भीतर और भीतर तक पैठना !
कभी झूमना आम से लदी डालियों में ,
कभी घूमना सरसों की सोन -बालियों में !
दूर तुझसे रह कर जीना बहुत कठिन है
शहर का जीवन सच बोझिल प्रतिदिन है ,
नीरस ,अशांत ,किसी मशीन की तरह ,
बेस्वाद , बेमजा नमकीन की तरह !
गाँव तेरे आँगन में भरता जो बाज़ार है,
उससे भी जाने किस जनम का मुझे प्यार है!
मेरे प्राणों के पंछी का घर है तेरे पेड़ पर ,
तेरी ही बांहों मुझे मर जाना स्वीकार है !
एक अनजाना रिश्ता है तुझसे मेरा ,
एक अंतहीन तुझमें आकर्षण है ,
हर जनम तेरी ही गोद मुझको मिले,
जैसा इस जनम में पाया यह जीवन है !
-स्वराज्य करुण
नीला पर्वत ,निर्मल नदिया और यह तालाब
लगता जैसे दिन में भी कोई सुंदर ख्वाब !
सौ -सौ जनम इस धरती पर रहे सदा आबाद
एक अनोखा सुख देती है हमको इसकी याद !
सबके सिर पर हाथ फेरती अमराई की छाँव
राहगीर की थकी राह पर यह शीतल ठहराव !
खेतों से बहती हवा में जीवन का सन्देश
भारत मेरा रहे हमेशा गाँवों का ही देश !
तुझसे तो बिछुड़कर रहना बहुत मुश्किल है
बिछुडन का दर्द भी सहना बहुत मुश्किल है !
मिल जाए चाहे मुझे कितनी भी यातना
आह तक होठों से कहना बहुत मुश्किल है !
मेरे गाँव ! मै तुझसे न दूर रह पाऊंगा
माटी यह मुझे खींच लाती है बार-बार !
जाने किस युग का नाता है तेरी गलियों से ,
जिनसे अलग होने से मन करता है इनकार !
जब भी मैं तुझसे दूर कहीं जाता हूँ
तेरी ये धूल भरी राह मुझे पुकारती है ,
फसलों को चूमकर जब लौटती हवा
ममता की बांहों में बच्चों सा दुलारती है !
तेरे ही आँचल के बरगद की छांह में,
झूलने को मन कितना आतुर हो जाता है ,
मैं पूछता हूँ जिंदगी के निर्माता से
बचपन क्यों पल भर में दूर हो जाता है !
राह चलती बैलगाडियों में जा बैठना ,
पोखरों में भीतर और भीतर तक पैठना !
कभी झूमना आम से लदी डालियों में ,
कभी घूमना सरसों की सोन -बालियों में !
दूर तुझसे रह कर जीना बहुत कठिन है
शहर का जीवन सच बोझिल प्रतिदिन है ,
नीरस ,अशांत ,किसी मशीन की तरह ,
बेस्वाद , बेमजा नमकीन की तरह !
गाँव तेरे आँगन में भरता जो बाज़ार है,
उससे भी जाने किस जनम का मुझे प्यार है!
मेरे प्राणों के पंछी का घर है तेरे पेड़ पर ,
तेरी ही बांहों मुझे मर जाना स्वीकार है !
एक अनजाना रिश्ता है तुझसे मेरा ,
एक अंतहीन तुझमें आकर्षण है ,
हर जनम तेरी ही गोद मुझको मिले,
जैसा इस जनम में पाया यह जीवन है !
-स्वराज्य करुण
गाँव तेरे आँगन में भरता जो बाज़ार है,
ReplyDeleteउससे भी जाने किस जनम का मुझे प्यार है!
सुन्दर भाव !
सहेजे जाने वाले अनमोल भाव.
ReplyDeleteबह्ह्ह्ह्हुत ही सुंदर कविता।
ReplyDeleteकवित्त गागर में गाँव समा गया।
आभार
बहुत सुन्दर ...गाँव का दृश्य आँखों के सामने आ गया ...
ReplyDeleteएक अनजाना रिश्ता है तुझसे मेरा , एक अंतहीन तुझमें आकर्षण है ,
ReplyDeleteहर जनम तेरी ही गोद मुझको मिले,
जैसा इस जनम में पाया यह जीवन है !
आपकी रचना ने अपने गाँव की याद दिला दी। सच मे गांम जैसा सुम्न्दर सहज जीवन कहाँ। बधाई इस सुन्दर रचना के लिये।
एक अनजाना रिश्ता है तुझसे मेरा ,
ReplyDeleteएक अंतहीन तुझमें आकर्षण है ,
हर जनम तेरी ही गोद मुझको मिले,
जैसा इस जनम में पाया यह जीवन है
भावनाओं में पगी कविता
प्राकृतिक सौन्दर्य से लबरेज़ चिंतनपरक अच्छी रचना.
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