सूरज का विश्वास नहीं अब
किरणें धोखेबाज हो गयीं !
अंधियारे में विचरण करना
दुनिया का स्वभाव हो गया ,
गाँव-शहर में, डगर-डगर में
नफरत का ठहराव हो गया !
कौन कहेगा सुबह आ गयी ,
रात दोपहर आज हो गयी !
कोहरे से घिर गयी दिशाएं ,
पथ भी कुंठाओं से पट गए ,
सर्जना के भाव सारे ,
विध्वंसों के बीच बंट गए !
संस्कृति का चीर-हरण हो रहा ,
बेशर्मी लाइलाज हो गयी !
- स्वराज्य करुण
इलाज और दवाओं पर शोध समानान्तर जारी हैं.
ReplyDeleteपता नहीं कैसे और क्यों याद आ रहा है ...
ReplyDelete"जो दवा के नाम पे जहर दे उसी चारागर की तलाश है"