खेतों में लहराए सुनहरे धान !
सपनों की हरियाली
हो गयी सुनहरी ,
बागों में खिल उठी
मुस्कान कुछ हरी-भरी !
पेड़ों ने पहने रूपहले परिधान !
नहाया -सा लगता है
सारा आकाश यहाँ ,
नीलापन मधुर लिए
प्यारा आकाश यहाँ !
दिशा-दिशा गूँज उठे चिड़ियों के गान !
सुबह लगे सिंदूरी
शाम सिंदूरी ,
क्षितिजों में छलक रहे
जाम सिंदूरी !
मौसम भी कर रहा चांदनी में स्नान !
स्वराज्य करुण
गद्य एवं पद्य दोनों में बेहतर शिल्प प्रवाह.
ReplyDeleteमध्यप्रदेश के दिनों के अशोक वाजपेईयों सा लेखन होगा समझकर हम आपको पढ़ नहीं रहे थे, अब फालों कर लिया है बिना हो-हल्ला किए/ टिप्पणी दिये पढ़ते रहेंगें.
badhiya..
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