Thursday, March 4, 2021

केंवटिन देऊल : महानदी घाटी की सभ्यता का साक्षी


        (आलेख : स्वराज करुण)
महानदी घाटी की सभ्यता अपने अनेक प्राचीन मंदिरों ,   पुरातात्विक स्मारकों और पुराअवशेषों के लिए देश और दुनिया में  प्रसिद्ध है। इस नदी घाटी सभ्यता का विस्तार छत्तीसगढ़ के सिहावा पर्वतीय अंचल से  ओड़िशा में जगन्नाथपुरी के पास बंगाल की खाड़ी  तक है। सिहावा में श्रृंगी ऋषि की तपोभूमि के पास फरसिया (महानंदा )कुंड से निकलकर महानदी लगभग 885 किलोमीटर लम्बी यात्रा के बाद बंगोपसागर में समाहित हो जाती है । छत्तीसगढ़ में  उदगम से लेकर इसके यात्रा पथ में राजिम ,सिरपुर ,शिवरीनारायण जैसे कई प्रसिद्ध तीर्थ हैं ,जो अपने प्राचीन मंदिरों की वजह से  जन आस्था के प्रमुख केन्द्र भी हैं। इनके अलावा महानदी के आस -पास कई ऐसे भी प्राचीन मंदिर और पुरातात्विक स्मारक हैं ,  जो राष्ट्रीय  स्तर पर अधिक चर्चित नहीं हैं।
      इन्हीं में  छत्तीसगढ़ के ग्राम पंचधार और पुजेरी पाली (पुजारी पाली ) के बीच स्थित छठवीं -सातवीं शताब्दी का शिव मंदिर भी शामिल है ,जो  केंवटिन  देऊल के नाम से जाना जाता है।यह भी महानदी घाटी की सभ्यता का साक्षी है ।इतिहासकार इसे छठवीं -सातवीं शताब्दी का गुप्तकालीन मंदिर मानते हैं।  यहाँ  स्वयंभू शिव विराजमान हैं।   यह स्थान इतिहास में शशिपुर के नाम से भी  प्रसिद्ध रहा है। पंचधार  और पुजेरीपाली परस्पर लगे हुए गाँव हैं जो रायगढ़ जिले में बरमकेला विकासखंड के अंतर्गत सरिया कस्बे के पास स्थित हैं। पुजेरी पाली में एक प्राचीन विष्णु देवालय के भग्नावशेष भी हैं । यह देवालय भी छठवीं -सातवीं सदी का माना जाता है।   
             
          केंवटिन देऊल , फोटो : स्वराज करुण 
केंवटिन  देऊल (देवालय ) के बारे में इस अंचल में प्रचलित जनश्रुतियों के अनुसार जब दुनिया में छह महीने की रात हुआ करती थी , उस युग में स्वयं भगवान विश्वकर्मा ने इसका निर्माण किया था । एक जनश्रुति यह भी है कि भगवान विश्वकर्मा जब इसे बना रहे थे ,तभी उस रात के अंतिम पहर में  केंउटिन  ढेंकी में धान कूटने लगी। चूंकि रात बीती नहीं थी और ढेंकी की आवाज़ से भगवान का ध्यान भंग हो गया तो उन्होंने इसके गुम्बद को अधूरा छोड़ दिया। आज  से करीब तीस साल पहले तक यह मंदिर अपने बेहतर रख -रखाव की बाट जोह रहा था।  बाद के वर्षों में  ग्रामीणों ने अपनी समिति बनाकर जन -सहयोग से इसका जीर्णोद्धार किया । यह समिति कपिलदेव बाबा शिव मंदिर समिति के नाम से  गठित की गयी है। ग्रामीणों ने  कोशिश की है कि करीब 1300 या 1400 साल पहले लाल ईंटों से निर्मित यह मंदिर अपनें मूल स्वरूप में दिखाई दे। इसीलिए इसका रंग -रोगन भी उसी के अनुरूप किया गया है। मंदिर में नियमित पूजा -पाठ के साथ -साथ समय -समय पर मुहूर्त देखकर धार्मिक रीति -रिवाज के अनुसार सादगीपूर्ण ढंग से विवाह समारोह भी आयोजित किए जाते है। 
   इसके लिए मंदिर परिसर में जन -सहयोग से एक विवाह मंडप भी बनवाया गया है। अभिमन्यु गिरि इस मंदिर के मुख्य पुजारी हैं। उन्होंने बताया कि  मंदिर में पूजा पाठ का दायित्व संभाल रही यह उनकी सातवीं पीढ़ी है। अभिमन्यु गिरि कुछ किंवदंतियों के आधार पर इस मंदिर को त्रेता युग का बताते हैं।। केंवटिन देऊल में हर साल महाशिवरात्रि का महापर्व भी उत्साह के साथ मनाया जाता है। मुख्य पुजारी अभिमन्यु गिरि ने बताया इस वर्ष 10 मार्च को कलश स्थापना की जाएगी और भजन -पूजन के साथ रात्रि जागरण होगा। अगले दिन 11 मार्च को मंदिर में भगवान शंकर का ध्वज चढ़ाया जाएगा और 12 मार्च को पूर्णाहुति होगी। 
       पंचधार में केंवटिन  देऊल के सामने एक विशाल पीपल पीछे एक विशाल बरगद भी है। गर्मियों में बरगद की घनी छाया श्रद्धालुओं को शीतलता प्रदान करती है। म मंदिर परिसर में एक ऐसा कुंआ है ,जिसका पानी कभी नहीं सूखता। गर्मी के दिनों में भी यह कुंआ  लबालब रहता है। इस परिसर में मंदिर के सामने एक सरकारी स्कूल भी है। केंवटिन देऊल के मुख्य पुजारी के अनुसार पंचधार और पुजेरी पाली की धरती में अनेक पुरातात्विक अवशेष आज भी बिखरे हुए हैं ,जिनके उचित सरंक्षण की  आवश्यकता है। केंउटिन देऊल में गर्भ गृह के सामने देवी -देवताओं की कुछ प्राचीन मूर्तियों को सुरक्षित रखकर उनकी भी पूजा -अर्चना की जा रही है। पंचधार स्थित केंवटिन  देऊल और पुजेरी पाली के खंडित विष्णु मंदिर के आस -पास पुरातत्व विभाग को सूचना बोर्ड लगाकर इनके निर्माण काल आदि के बारे में जानकारी प्रदर्शित करनी चाहिए ।  पहले तो खंडित स्वरूप का  प्राचीन विष्णु मंदिर दूर से ही नज़र आ जाता था ,लेकिन जनसंख्या के बढ़ते दबाव के फलस्वरूप अब इसके आस -पास ग्रामीणों के अनेक मकान बन गए हैं , तो इसे देखने एक सीमेंटीकृत गली से होकर वहाँ जाना पड़ता है। 
   वैसे एक अच्छी बात यह हुई है कि ग्रामीणों ने पंचायत के सहयोग से यहां पर एक संग्रहालय बनवाया है ,जो हालांकि अपूर्ण है ,लेकिन मुख्य भवन बन चुका है ,जहां  कई पुरावशेषों को व्यवस्थित ढंग से रखा गया है ,लेकिन गाँव के लोग चूंकि  पुरातत्वविद नहीं हैं ,इसलिए  इन प्राचीन मूर्तियों आदि के बारे में उन्होंने कोई विवरण अंकित नहीं किया है। उनमें से  दो मूर्तियों की पूजा भी हो रही है। सिंदूर आदि के लेपन से उनका मूल स्वरूप कुछ समय के बाद नहीं रह जाएगा। यह चिन्ता का विषय है। संग्रहालय और विष्णु देवालय के सामने भी कई  टूटी -फूटी प्राचीन प्रतिमाएं चिन्ताजनक हालत में बिखरी पड़ी हैं। वर्षों पहले पंचधार और पुजारीपाली की धरती पर  प्राचीन मंदिरों आदि के पत्थर इतनी बड़ी संख्या में बिखरे हुए थे कि कई लोगों ने अपने मकानों के निर्माण में उनका उपयोग कर लिया। 
 आलेख : स्वराज करुण