Tuesday, July 28, 2020

(कविता ) कहीं न कहीं तो होगा ऐसा कोई देश

कहीं न कहीं  तो होगा कोई  ऐसा देश !
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इस धरती पर नहीं तो
इस ब्रम्हांड में
और इस  ब्रम्हांड में नहीं तो
सुदूर आकाश गंगाओं में
कहीं न कहीं  तो होगा 
ऐसा देश ,
जहाँ इंसानों को सिर्फ़ और सिर्फ
इंसान समझा जाता हो ,
हिन्दू या मुसलमान नहीं ,
सिक्ख या ईसाई नहीं !
जहाँ न होते हों
मन्दिर , मस्ज़िद के झगड़े ,
किसी बीमार बच्चे का लाचार पिता
अस्पताल के दरवाज़े पर जहाँ
मज़बूरी में अपना माथा न रगड़े !
कहीं तो होगा कोई ऐसा देश
जहाँ मुट्ठी भर लोग खुद को
न समझें मुल्क का मालिक
और विशाल जन समूह को
अपना नौकर !
जहाँ कोई किसी को
न मारे अपने अहंकार की ठोकर !
जहाँ इंसान की हैसियत उसके
ओहदे से न तौली जाती हो ,
जहाँ धर्म , जाति और दौलत के नाम पर
ओहदों की नीलामी न बोली जाती हो !
जहाँ न हो खदानों की खतरनाक धूल,
जहाँ खिलते हों खेतों में
फसलों के रंगबिरंगे फूल !
मैं देख रहा हूँ ऐसे किसी अपने
वतन का सपना
जहाँ हम एक -दूसरे को
कह सकें अपना !
         - स्वराज करुण
   
      

2 comments:

  1. ऐसी कल्पना तो अच्छी है पर कोई देश ऐसा होगा ... लगता तो नहीं ... अच्छी रचना है ...

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    1. त्वरित टिप्पणी के लिए हार्दिक आभार ।

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