मिलावट पर हाय-तौबा क्यों मचाते हो भाई ! क्या तुम्हें नहीं मालूम कि भारतीय मान्यता के अनुसार हमारा यह शरीर भी तो पंच महाभूतों से मिलकर बना है और इसे एक दिन पंचतत्व में लीन होना ही पड़ता है ? क्षिति, जल , पावक ,गगन ,समीरा से मिलकर बने मानव शरीर को देखकर क्या ऐसा नहीं लगता कि खाने-पीने की वस्तुओं में मिलावट की शिकायत को लेकर 'अरण्य -रोदन' से कोई फायदा नहीं ! मिश्रीलाल का सीधा -सीधा सवाल था कि जब हमारा मानव शरीर पंच-महाभूतों की मिलावट है तो दूसरी तमाम चीजों में मिलावट से क्या होना जाना है ? मिश्रीलाल के गहरे दार्शनिक अंदाज वाले इस 'सारगर्भित' वक्तव्य से मिठाईलाल की अज्ञानता पल भर में दूर हो गयी . उन्हें अपने मिष्ठान भंडार की मिठाइयों में मिलावट का एक कुतर्क संगत बुनियादी सिद्धांत मिल गया था . वह दोगुने उत्साह से अपनी दुकान की तरफ चल पड़े .
इधर सुखीराम के टपरेनुमा रेस्टोरेंट में हाफ चाय की चुस्कियों के साथ मोहल्ले के कुछ लोग आपस में चर्चा कर रहे थे . चाय ऑक्सीटोसिन के इंजेक्शन के ज़रिये किसी गाय के बढे हुए दूध से बनी थी ,लेकिन न तो सुखीराम को और न ही पीने वालों को इससे कोई मतलब था . खयालीराम ने कहा -- गणपति बप्पा को अगले बरस जल्दी आने के लिए कह कर हमने उन्हें ससम्मान बिदाई दे दी और तत्काल बाद शारदीय नवरात्रि के आगमन के साथ महिषासुर मर्दिनी माँ दुर्गा का आत्मीय स्वागत किया . इन दिनों देश में हर कहीं दुर्गोत्सव की धूम मची है .विजयादशमी भी ज़ल्द आने को है . यानी गणेशोत्सव के बाद दुर्गोत्सव ,फिर विजयादशमी यानी दशहरा और उसके बाद आएगी दीवाली . चाहे देश और समाज का वातावरण कैसा भी क्यों न हो, तीज-त्यौहार हमारे जीवन को हर हाल में कुछ देर और कुछ दिनों के लिए खुशनुमा ज़रूर बना देते हैं .तब मिठाइयां हमारे दिलों में भी मिठास घोलने लगती हैं . रामभरोसे ने कहा - यही तो मानव-जीवन है और यही तो है हमारी संस्कृति. लेकिन यह कोई सतयुग तो है नहीं इसलिए हमारे इस खुशनुमा अहसास में ज़हर घोलने की कोशिश करने वालों की भी आज कहीं कोई कमी नहीं है . वो हर जगह पाए जाते हैं. त्यौहारों के इस मौसम में मिलावटखोरों की बन आयी है. मिष्ठान्न के बिना त्यौहार कैसा ? पूजा के मंडपों में विराजते देवी-देवताओं से लेकर घर आए मेहमानों के स्वागत में भी मिठाई का होना ज़रूरी है .
किशनलाल कहने लगे - चाहे अल्प-वेतनभोगी ईमानदार कर्मचारी हो, या हेराफेरी की कमाई से करोड़पति बना कोई बेईमान अधिकारी या व्यापारी , तीज-त्योहारों में मिठाई सबके लिए ज़रूरी हो जाती है. सब अपनी-अपनी हैसियत से अपने-अपने घरों में मिठाई का बंदोबस्त ज़रूर करते हैं. यह सामाजिकता भी है और व्यावहारिकता भी ,लेकिन हमारे मानव-समाज में ही कुछ ऐसे भी लोग हैं जो हमारी इस सामाजिकता का बेजा फायदा उठा रहे हैं , जिनका चेहरा तो मानव का है,जबकि काम है हत्यारों की तरह . हत्यारा तो किसी का भी काम एक ही बार में तमाम कर देता ही लेकिन मानव-समाज में मानवों सा मुखौटा लगाए ये ह्त्यारे तो अपने कुकर्मों से किसी भी मानव को धीमी गति की मौत देकर मन ही मन खुश होते हैं . उन्हें मौत की सजा तो मिलती नहीं , इसलिए बेशर्म लोग बेख़ौफ़ होकर मिलावट का धंधा जारी रखते हैं . दो नंबर के इस धंधे में कोई धांधली नहीं होती . ऐसे लोग 'ऊपर से नीचे तक' सबसे मिलकर और सबको मिलाकर ही मिलावट करते हैं. मिलावटी दवाई और मिलावटी मिठाई बनाना और बेचना इनके लिए शर्म की नहीं बल्कि गर्व की बात होती है.
टपरेनुमा होटल की इस राष्ट्रीय बहस को आगे बढाते हुए भगतराम ने अपनी बात रखी -- मिलावट के काले और ज़हरीले कारोबार से मालामाल होकर कुछ लोग देश और समाज के भाग्य-विधाता भी बन जाते है. ये ऐसे हत्यारे हैं ,जो इंसानों को स्वादिष्ट व्यंजनों के नाम पर धीमा ज़हर देकर अपनी जेब और तिजोरी को निःसंकोच लबालब करते जा रहे हैं .जो मिलावट रोकने के तमाम कानूनों को अपनी जेब में रख कर चलने का दावा करते हैं . हाथ कंगन को आरसी क्या ? उनके फलते-फूलते कारोबार को देखकर सहज ही उनके दावों की पुष्टि हो जाती है . देश की गाड़ी हांक रहे अर्थ-शास्त्रियों की मनमोहनी अदा और कृपा से महंगाई थमने का नाम ही नहीं ले रही है . मिलावटी होने के बावजूद मिठाइयों के दाम भी डीजल और पेट्रोल के दामों की तरह आकाश छू रहे हैं.लेकिन तीज-त्यौहार के सीजन में इंसान हर कीमत पर मिठाइयां खरीदने को तत्पर है,चाहे वह मिलावटी क्यों न हो ? मिलावट के अर्थ शास्त्र को समझना हो तो खोवे के बाज़ार को देखो ! एक अखबार में छपी खबर का हवाला देकर मथुराप्रसाद ने कहा - असली दूध का उत्पादन कम होने और प्रति लीटर कीमत बढने के बाद भी होटलों में खोवे की मिठाइयों की कोई कमी नहीं है . सूजी और अरारोट के पावडर में एसेंस मिलाओ और खोवा तैयार !गायों और भैंसों में दूध बढाने के लिए उन्हें ऑक्सीटोसिन का घातक इंजेक्शन दिया जाने लगा है . उसी दूध से चाय बनती है और उसी में कुछ और अगड़म-बगड़म मिलाकर खोवा भी बना लिया जाता है .
त्यौहारी खरीददारी के लिए रास्ते से निकल रहे सज्जन लाल भी दोस्तों को गंभीर बहस में मशगूल देखकर कुछ देर के लिए वहाँ ठहर गए . उन्होंने भी अपनी बात रखी - नकली और मिलावटी दूध .नकली खोवा , नकली और मिलावटी घी , ह्ल्दी और मिर्च के मिलावटी पावडर नकली तेल और नकली बर्फी के इस बाज़ार में असली खोजें भी तो खोजें कहाँ ? हम तो उन्हें भी खोज रहे हैं, जिन्हें मिलावट रोकने की जिम्मेदारी सौंपी गयी है ! मिलावटखोर तो नज़राना और शुक्राना के तौर पर उन्हें भी मिलावटी मिठाई का आकर्षक पैकेट थमा देते हैं - 'ले जाओ साब जी ! घर की बात है ! ' या नहीं तो साहब के दफ्तर में आकर दे जाते हैं- ' भाभी जी को और बच्चों को हमारी तरफ से त्यौहार का तोहफा है.' साब जी भी खुश और दुकानदार भी प्रसन्न ! तभी तो मिलावट जांचने वालों के घरों में जब छापा डलता है ,तो करोड़ो रूपयों की चल-अचल संपत्ति का खुलासा होने लगता है . इसके बावजूद उनके मुखौटों पर ज़रा भी सलवटें नहीं उभरतीं! शायद मुखौटों में भी मिलावट होने लगी है !
खयालीराम ने याद दिलाया - ''अच्छा तो अब चलें ! त्यौहार के लिए कुछ न कुछ तो खरीदना ही पड़ेगा .वक्त भी काफी हो चला है. '' सब लोग मिलावटी सामान खरीदने चल पड़े और सुखीराम के टपरेनुमा रेस्टोरेंट में राष्ट्रीय महत्व की यह स्थानीय बहस बगैर किसी निष्कर्ष के खत्म हो गयी
- स्वराज्य करुण