लोकतंत्र का चौथा प्रहरी समझे जाने वाले कुछ हिन्दी अखबार इन दिनों हमारी राष्ट्रभाषा हिन्दी पर बड़ी बेशर्मी और बेरहमी से हमला कर रहे हैं और हम हैं कि इस हमले को चुपचाप झेल भी रहे हैं . एक हिन्दी दैनिक में छपे कुछ शीर्षकों और वाक्यों पर ज़रा ध्यान दीजिए -
(१ )
फॉरेन लेंग्वेज सीखने में
इंट्रेस्ट ले रहे युवा
(२ )
फ्रेंच इन डिमांड
इन दो शीर्षकों के साथ समाचार की भाषा कुछ इस तरह से है-
युवा अपने
कैरियर को लेकर काफी सजग हो गए हैं .अच्छा कैरियर बनाने के लिए हिन्दी और इंग्लिश
लेंग्वेज पर अच्छी
कमांड के साथ युवा फॉरेन लेंग्वेज सीखने पर भी खासा जोर दे रहे हैं.
स्टुडेंट्स का कहना है कि फॉरेन लेंग्वेज सीखने के बाद
जॉब के अवसर कई गुना बढ़ जाते हैं .
(३ ) ब्लड डोनेशन कैम्प १८ को .
(४) हरियाली संग सेलिब्रेशन
(५ ) ग्रीन डे मनाया
(६ ) हरित श्रृंगार कॉम्पिटिशन
(७) नजर आई क्रिएटिविटी
(८) होम मेड स्वीट्स से शेयर करें खुशियाँ
(९) पैकिंग मटेरियल्स भी अवेलेबल
एक अन्य हिन्दी अखबार का एक शीर्षक और उसके समाचार की कुछ पंक्तियाँ देखें --
शीर्षक है-
स्टूडेंट्स का पढ़ाई में रहे फोकस --
कॉलेज में प्रवेश करने के बाद स्टूडेंट्स में कई तरह के चेंजेस देखने को मिलते हैं .नवीन गर्ल्स कॉलेज में बुधवार को फर्स्ट ईयर की स्टूडेंट्स के लिए इंडक्शन प्रोग्राम का आयोजन किया गया .
एक और शीर्षक की बानगी देखें -
स्टूडेंट्स को दी कम्युनिकेशन के तथ्यों की जानकारी
दोस्तों ! जिन अंगेरजी शब्दों का इन समाचारों में इस्तेमाल किया गया है, क्या उनके लिए हिन्दी के विशाल शब्द भंडार में कोई शब्द नहीं है ? क्या हमारी हिन्दी का शब्द कोश इतना दरिद्र हो गया है कि हिन्दी अखबारों को अंगरेजी का सहारा लेना पड़ रहा है ? जहां किसी अंगरेजी शब्द के लिए हिन्दी में कोई
कोई शब्द न हो, वहाँ पर तो इंग्लिश शब्दों का उपयोग करना गलत नहीं है, लेकिन अगर हिन्दी में शब्द हैं और हम उन्हें जान कर भी उपेक्षित कर अंगरेजी बघारने लगें ,तो अपनी राष्ट्रभाषा के साथ इससे बड़ा अन्याय और अपराध दूसरा नहीं हो सकता .देवनागरी लिपि में राष्ट्रभाषा के वाक्यों में अंगरेजी के शब्दों को जबरन घुसा कर और उन्हें देवनागरी में लिखकर हिन्दी के ऐसे अंगरेजी परस्त अखबार जनता को आखिर क्या सन्देश देना चाहते है ? कुछ हिन्दी अखबारों के विशेष परिशिष्टों में तो आलेखों में हिन्दी वाक्यों में घुसाए गए इंग्लिश शब्दों को अंगरेजी लिपि में भी लिखा जाने लगा है. यह क्या तमाशा है ?
किसी भी देश की स्थानीय भाषा उस देश की राष्ट्रीय अस्मिता और संस्कृति का प्रतीक होती है ,विदेशी भाषाओं की उसमे जबरन घुसपैठ से उस देश की आज़ादी को भी ख़तरा हो सकता है .हमारे देश में भी आज ऐसा ही कुछ नज़र आ रहा है .यह हिन्दी के अखबारी समाचारों की अंगरेजी मिश्रित खिचड़ी भाषा के जरिये भारत में भी दिखाई डे रहा है.
लगभग बीस वर्ष पहले आर्थिक सुधारों की आड़ लेकर जनता पर भू-मंडलीकरण का बोझा थोपा गया था, जिसके छुपे हुए एजेंडे में अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के नाम पर अंगरेजी भाषा को बढ़ावा देने और इस तरह दुनिया के विभिन्न देशों में स्थानीय भाषाओं को विलुप्त करने की साजिश भी शामिल है . इसे समझने की ज़रूरत है .
स्वराज्य करुण