दूध -दही के दीवाने ,हम सबके लाड़ले माखन चोर भगवान श्रीकृष्ण के जन्म दिन 'जन्माष्टमी ' के मौके पर आप सबको बधाई देते हुए मै यह जानना चाहता हूँ - क्या आज हमें द्वापर-युग के शुध्द दूध, स्वादिष्ट दही-मही और मक्खन का स्वाद कहीं मिल पाएगा ? अगर आपको मिल जाए तो हे दयालु ! अपनी कृपा दृष्टि मुझ पर भी बनाए रखना, कुछ मुझे भी दे देना. आप तो देख ही रहे हैं ! दूध में मिलावट , दही में मिलावट , घी में मिलावट ,मक्खन में मिलावट, हवा में मिलावट , दवा में मिलावट , पीने के पानी में मिलावट , ज़िंदगी की कहानी में मिलावट , अनाज में मिलावट , रस्म-ओ -रिवाज़ में मिलावट , आचरण-व्यवहार में मिलावट, प्यार और श्रृंगार में मिलावट ! सारांश यह कि आज मिलावट का युग है . इस मिलावट ने मानवता की बनावट को बिगाड़ कर रख दिया है . मिलावट के ज़रिए मानव को धीमी मौत की सौगात देने वाले ही आज शान-ओ शौकत की ज़िंदगी जी रहे हैं .
उत्तर प्रदेश की राजधानी के ताल कटोरा इलाके में टमाटर की चटनी बनाने वाली एक फैक्टरी में विषैली गैस के रिसाव से आधा दर्ज़न लोगों की मौत के बाद यह पोल-खाता खुला कि वहां पर दो बड़ी -बड़ी टंकियों में जाने कब से रखे पानी में पपीता और कद्दू पड़े -पड़े सड़ रहे थे . वहां मिर्च पावडर के नाम पर लाल रंग से रंगे बुरादे, फफूंद लगी मिर्च और मानव-जीवन को खतरे में डालने वाले कई घातक रसायनों का ज़खीरा भी पाया गया . इन सबका इस्तेमाल वहां हमारी आधुनिक जीवन शैली का हिस्सा बन चुके 'टमेटो -सॉस' के व्यावसायिक उत्पादन के लिए किया जा रहा था. फैक्टरी का मालिक जाने कब से टमाटर की यह सड़ी हुई चटनी वहां से मिलावटखोरों के नापाक नेटवर्क के ज़रिए बाजारों और दुकानों तक और वहां से न जाने कितने घरों की रसोई से होते हुए भोजन की थालियों तक पहुंचा रहा था ? जाने कितनों को उसने चटनी के नाम पर हजारों-लाखों रूपयों की चपत लगाई और छल-कपट के इस काले कारोबार के ज़रिए उनकी थालियों में मौत का अदृश्य फरमान परोस दिया. भगवान कृष्ण जिस दूध के दीवाने हुआ करते थे , आज वह उन्ही की जन्म-भूमि और कर्म-भूमि भारत में सिंथेटिक दूध के रूप में बाजारों ,होटलों और घरों में खपाया जा रहा है . यही सिंथेटिक दूध सिंथेटिक खोवा बन कर बाज़ारों और होटलों में बिक रहा है और मिठाइयों के ज़रिए तीज-त्योहारों में पूजा की थाली में भगवान को भोग लगने के बाद प्रसाद के रूप में भोली-भाली जनता के पेट में पहुँच रहा है.
मिलावटखोरों ने अपने मुनाफे के लिए भगवान को भी नहीं छोड़ा तो फिर इंसान को क्यों छोड़ेंगे ? कई बार तीज-त्यौहारों के आस-पास मिलावटी खोवे के बड़े-बड़े पार्सल हमारे रेल्वे स्टेशनों में खुले-आम रखे पाए गए हैं , जिन पर आवारा कुत्तों की टोलियाँ को धमा-चौकड़ी मचाते और पेशाब करते देखा गया हैं . क्या अब भी हम और आप बाज़ार से खोवे की मिठाई खरीद कर खाना पसंद करेंगे ? हम ऋषि -प्रधान और कृषि -प्रधान देश के लोग अब मिलावट-प्रधान राष्ट्र के नागरिक बन कर जीने के लिए मजबूर हैं . इसलिए हे कृपानिधान ! अगर समय रहते समय के पहिए को उलटा घूमा सकें , तो हमें उस द्वापर युग में ले चलिए , जहां आप जैसे दूध-दही और माखन के दीवानों के साथ हम भी शुद्धता का कुछ स्वाद ले सकें. द्वापर युग में आपने न्याय के लिए महाभारत में पांडवों का साथ दिया था.आज कलि-युग में मिलावट की अनैतिक संस्कृति के खिलाफ भी एक नए 'महाभारत 'की ज़रुरत है . क्या इसमें आप हमारा साथ देंगे ? स्वराज्य करुण
मिलावट के अभ्यस्त होने के बाद शुद्धता में लौटियेगा तो अपच हो जायेगी :)
ReplyDeleteमिलावट ही मिलावट .
ReplyDeleteसुन सुन के आ रही थकावट .
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श्री कृष्ण जन्माष्टमी की बधाई !
जय श्री कृष्ण !!
हर चीज मे मिलावट ही मिलावट है|
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ReplyDeleteउम्दा पोस्ट-बेहतरीन लेखन के बधाई
आपकी पोस्ट चर्चा ब्लाग4वार्ता पर-पधारें
svaagat hae blaagjagat ne
ReplyDeleteजी जरुर - शुभकामनाएं
ReplyDeletemilaavat rokne k liye upbhoktaon ki sajagta k sath-sath milavat karne waalon k viruddh 'behad kadi' karrwai jaruri hai.
ReplyDeleteब्लागजगत पर आपका स्वागत है ।
ReplyDeleteनमस्कार ! आपकी यह पोस्ट जनोक्ति.कॉम के स्तम्भ "ब्लॉग हलचल " में शामिल की गयी है | अपनी पोस्ट इस लिंक पर देखें http://www.janokti.com/category/ब्लॉग-हलचल/
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