Wednesday, August 3, 2022

(आलेख) चारुचंद्र की चंचल किरणें ....

 आज महाकवि मैथिलीशरण गुप्त की जयंती पर विशेष 

          (आलेख - स्वराज करुण)

अपनी एक से बढ़कर एक अनमोल रचनाओं से हिन्दी साहित्य के संसार को सजाने ,संवारने वाले   महाकवि मैथिलीशरण गुप्त की आज जयंती है।उन्हें विनम्र नमन । राष्ट्र -प्रेम  से परिपूर्ण उनकी रचनाओं से प्रभावित होकर  राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने उन्हें 'राष्ट्रकवि ' का सम्मानजनक सम्बोधन दिया था । स्वतंत्रता संग्राम के दिनों में गुप्त जी ने  अपनी रचनाओं से जनता में देशप्रेम और राष्ट्रीय चेतना जगाने का ऐतिहासिक कार्य किया । 

                                                  



भारत -भूमि की महिमा गाते हुए वह कहते हैं --

सम्पूर्ण देशों से अधिक ,

किस देश का उत्कर्ष है ,

उसका कि जो ऋषि भूमि है ,

वह कौन , भारत वर्ष है  

गुप्तजी  द्वारा रचित खंड-काव्य 'पंचवटी' की इन पंक्तियों में शब्दालंकार की आकर्षक अनुगूंज को भला कौन भूल सकता है ,जिसमें उन्होंने कल्पना की है कि भगवान श्रीराम  वनवास के दौरान उनकी  पर्ण कुटि  के आस - पास का  रात्रिकालीन प्राकृतिक परिवेश कितना सुंदर रहा होगा ?   उनकी यह कल्पना शक्ति पाठकों को सम्मोहित कर लेती है -- 

चारुचंद्र की चंचल किरणें ,

खेल रही हैं जल-थल में ,

स्वच्छ चाँदनी बिछी हुई है

अवनि और अम्बर तल में !

 उनकी एक कविता का यह अंश हमें संदेश देता है कि जीवन-संघर्ष में मनुष्य को कभी निराश नहीं होना चाहिए। उनका संदेश बहुत स्पष्ट है --

नर हो न निराश करो मन को ,

कुछ काम करो ,कुछ काम करो ,

जग में रह के निज नाम करो !

यह जन्म हुआ किस अर्थ अहो ,

समझो ,जिसमें यह व्यर्थ न हो !

 तत्कालीन भारतीय समाज में   नारी जीवन की कारुणिक परिस्थितियों को उन्होंने 'यशोधरा ' में कुछ इस तरह अपनी वाणी देकर जन-मानस को झकझोरने का प्रयास किया -

अबला जीवन हाय 

तुम्हारी यही कहानी ,

आँचल में है दूध और 

आँखों में पानी !

 मैंने और शायद आपमें से बहुत -से मित्रों ने स्कूली जीवन में गुप्त जी की इन रचनाओं को कई बार पढ़ा और उनकी भावनाओं को हॄदय की गहराइयों से महसूस भी किया है । मैथिलीशरण गुप्त जी का जन्म 3 अगस्त 1886 को उत्तरप्रदेश में  झांसी के पास चिरगांव में हुआ था । उन्होंने घर पर ही संस्कृत ,हिन्दी और बांग्ला भाषाओं का गहन अध्यययन किया ।   राष्ट्रकवि ने हिन्दी साहित्य को अपनी अनेक कालजयी रचनाओं से समृद्ध किया ,जिनमें महाकाव्य 'भारत-भारती' और 'साकेत'  भी शामिल हैं .भारत सरकार ने उन्हें वर्ष 1953 में 'पदम् -विभूषण ' और वर्ष 1954 में 'पदम्-भूषण' के राष्ट्रीय अलंकारों से सम्मानित किया था ।  मैथिली शरण गुप्त वर्ष 1952 से 64 तक राज्य सभा के सदस्य भी रहे । आजादी के आन्दोलन में भी उनका उल्लेखनीय योगदान  रहा । वर्ष 1941 में व्यक्तिगत सत्याग्रह के दौरान उन्हें गिरफ्तार किया गया था । उनका निधन 12 दिसम्बर 1964 को हुआ । भारत सरकार ने उनके सम्मान में डाक टिकट भी जारी किया था।

     आलेख  --स्वराज करुण

4 comments:

  1. कभी स्कूल में अनुप्रास अलंकार का यही "चारुचंद्र की चंचल किरणें , खेल रही हैं जल-थल में, स्वच्छ चाँदनी बिछी हुई है, अवनि और अम्बर तल में !" हमारा रट्टा-घोंटा लगाया उदाहरण था जो कभी न भूलने वाला है आज आपने याद दिला दी। चारुचंद्र की चंचल किरणें" ,
    महाकवि मैथिलीशरण गुप्त को सादर नमन!

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद।

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  2. बहुत सुंदर प्रस्तुति

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