Monday, July 11, 2022

(कविता ) राजपक्ष को समझ न आई जब 'राजधर्म' की बात

     ( स्वराज करुण )

जन -आक्रोश की ज्वाला ने लंका में लगाई आग , 

कब तक तू सोएगा भारत अब जल्दी से जाग।

राजपक्ष को समझ न आई जब राजधर्म की बात ,

क्रोधित जनता ने तब उसकी  पीठ पे मारी लात।

 राज गया जब राजपक्ष का , दूर गया वह भाग, 

जाग तू उसका मुल्क पड़ोसी , अब जल्दी से जाग।

अच्छे दिन का ख़्वाब दिखाकर भोगा उसने राज 

जनता ने बदहाल होकर छीना उसका ताज।

ख़ूब पसंद था उसको भक्तों का दरबारी राग 

नफ़रत वाली राजनीति से था बहुत  अनुराग।

राष्ट्रवाद के नाम पे  बोये ख़ूब  घृणा के बीज ,

लेकिन  चल न पाया उसका वह जादुई ताबीज।

पैसा ,पद और पावर पाकर अहंकार में चूर हुआ,

धीरे -धीरे वह जनता से दूर बहुत ही दूर हुआ।

राजपक्ष के पक्षपात से पब्लिक हुई  नाराज ,

जिसने उसको माना था कभी देश का सरताज़ ।

जिस जनता ने कभी बिठाया था उसे  पलकों पर , 

आज उसी से क्रुद्ध होकर वह उतरी सड़कों पर ।

अनसुनी की  सदा ही  उसने जनता की आवाज़ 

महंगाई की आग में  झुलसा तभी तो उसका राज  ।

फूट डालकर जन जीवन में  ख़ूब मचाई लूट 

लेकिन आ ही गया सामने  खुलकर उसका  झूठ।

भाई भतीजावाद चलाकर कंगाल बनाया देश

हाहाकार मचा था फिर भी समझा न परिवेश । 

ज्यादा कभी नहीं चल पाते  कोरे वादे , कोरे नारे  

खुलती है जब कलई तो फिर मुँह छुपाते हैं सारे।

 -- स्वराज करुण

(कविता मेरे दिल से और फोटो इंटरनेट से साभार )

4 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (13-07-2022) को चर्चा मंच      "सिसक रही अब छाँव है"   (चर्चा-अंक 4489)     पर भी होगी!
    --
    सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
    -- 
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'  

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  2. सुंदर प्रस्तुति

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद।

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