Sunday, October 10, 2021

गद्य साहित्य के एकांत साधक :छत्तीसगढ़ के शिवशंकर पटनायक

(आलेख : स्वराज करुण )

आम तौर पर साहित्य सृजन में रचनाकार के आस -पास के माहौल का भी बड़ा  योगदान रहता  है। एक ऐसे   इलाके में , जहाँ अधिकांश साहित्यिक गतिविधियां सिर्फ़ कविताओं पर  केन्द्रित रहती हैं  ,वहाँ शिवशंकर पटनायक फिलहाल इकलौते रचनाकार हैं जो गद्य लेखन की साहित्यिक विधा को  पूरी तल्लीनता से आगे बढ़ा रहे हैं। वर्तमान में वह इस अंचल में गद्य-साहित्य के एकांत साधक हैं । उनके अलावा और कोई हो , जो 'छुपे -रुस्तम ' की तरह गद्य लेखन में लगा हो तो मुझे उसकी जानकारी नहीं है। 
  श्री पटनायक छत्तीसगढ़ के महासमुन्द जिले में ग्रामीण परिवेश के  छोटे -से कस्बाई शहर पिथौरा के निवासी हैं । इस   जिले में 5 तहसीलें हैं-महासमुन्द , बागबाहरा  ,पिथौरा ,बसना और सरायपाली । इनमें से महासमुंद को  राष्ट्रीय स्तर के व्यंग्यकार स्वर्गीय लतीफ़ घोंघी के गृह नगर के रूप में भी ख्याति मिली है ,जो गद्य विधा में व्यंग्य लेखन के सशक्त हस्ताक्षर थे और जिनके लगभग 30 व्यंग्य संग्रह प्रकाशित और प्रशंसित हुए हैं। वर्ष 2005 में उनके देहावसान के बाद पूरे जिले में ऐसा माना जा रहा था कि गद्य लेखन और प्रकाशन के क्षेत्र में खालीपन आ  गया है ,लेकिन उन्हीं दिनों और उसके पहले से भी शिवशंकर पटनायक बड़ी खामोशी से कहानियां ,उपन्यास,  निबंध और व्यंग्य लिख रहे थे। 


     सरकारी नौकरी में राजनांदगांव में रहने के दौरान उनका व्यंग्य संग्रह -'क्या आप इज़्ज़त की तलाश में हैं 'शीर्षक से प्रकाशित हुआ था ,जिसमें 10 लेख संकलित हैं।यह उनका इकलौता व्यंग्य संग्रह है। उन्होंने बड़ी संख्या में कहानियों, उपन्यासों और निबंधों की रचना की है। नाट्य लेखन की एकांकी विधा में भी उन्हें महारत हासिल है।
            अब तक सैंतीस ....
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 इन सभी विधाओं में उनकी प्रकाशित ,अप्रकाशित पुस्तकों की संख्या 37 तक पहुँच गयी है।
इनमें से अब तक 28 पुस्तकें  छप चुकी हैं। इनमें  7 कहानी -संग्रह , 9 उपन्यास   दो खंडों में प्रकाशित 5 लघु उपन्यास, एक व्यंग्य संग्रह , तत्व चिन्तन पर आधारित 5 आलेख संग्रह और उनके गृह ग्राम पिथौरा के स्थानीय इतिहास पर आधारित एक पुस्तक शामिल है  जबकि तीन उपन्यासों सहित कुल 5 पुस्तकें अभी प्रकाशन के लिए प्रेस में  हैं। 
   
उनकी प्रकाशित पुस्तकें इस प्रकार हैं
   * कहानी संग्रह -(1)पराजित पुरुष (2)पलायन (3) प्रारब्ध (4)डोकरी दाई (5) बचा ..रे...दीपक (6) अंत एक संत का और (7) मंदिर सलामत है। ये सभी सामाजिक कहानियों के संग्रह हैं। 

* उपन्यास   (1)भीष्म -प्रश्नों की शर -शैय्या पर (2) कालजयी कर्ण (3) एकलव्य (4) कोशल नंदिनी (5) आत्माहुति (6) अग्नि स्नान (7) देवी करिया धुरवा (8) नागफ़नी पर खिला गुलाब और (9) समर्पण 

*लघु उपन्यास---
(1)कुन्ती (2)द्रौपदी(3) अहल्या (4) तारा और (5) मंदोदरी (आदर्श नारियां भाग -1और भाग -2 में प्रकाशित ।
*चिन्तन परक लेख संग्रह -
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 -(1) मनोभाव (2) विकार -विमर्श (3) मानसिक दशा एवं दर्शन (4) नारी -अस्मिता : संकट एवं समाधान और (5) आप मरना क्यों नहीं चाहते । 

*व्यंग्य संग्रह -- क्या आप इज़्ज़त की तलाश में हैं ?
  
* स्थानीय इतिहास -- उनकी एक प्रकाशित पुस्तक 'पिथौरा सौ साल ' में इस इलाके के विगत एक शताब्दी के स्थानीय  इतिहास और सामाजिक -आर्थिक विकास की  झलक मिलती है। 
      
        पाँच पुस्तकें प्रेस में 
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  -(1)उपन्यास -- भगवान श्रीराम के अनुज भरत पर केन्द्रित 'भरत :भातृत्व एवं त्याग का प्रतीक , (2)उपन्यास -- अश्वत्थामा पर केन्द्रित 'नरो वा कुंजरो' और (3) सामाजिक उपन्यास -पतली -सी परत।  इनके अलावा (1) सफ़र ज़िंदगी का : स्मृतियां और घटनाएं और (2) निबंध संग्रह -आत्म -वार्तालाप भी इस वक्त प्रेस में हैं। 
      
         नाट्य साहित्य 
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*अप्रकाशित नाटक  (1) अदालत का फैसला (2) बंग के फूल और (3) अमानत । इनमें से 'बंग के फूल ' का मंचन वर्ष 1971 में इस अंचल के विभिन्न गांवों में हुआ था। यह नाटक वर्ष 1971 में पाकिस्तान की फ़ौजी हुकूमत के ख़िलाफ़ बांग्लादेश (तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान)की जनता के स्वतंत्रता संग्राम पर आधारित था।  ते थे। 

*अप्रकाशित उपन्यास(1)पुष्कर 

श्री पटनायक के प्रकाशित उपन्यासों में  'कोशल नंदिनी ' मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम की माता कौशल्या  और 'अग्नि -स्नान ' लंका नरेश रावण की जीवनी पर आधारित उपन्यास हैं ,जबकि 'आत्माहुति'  में माता कैकेयी के जीवन सफर को उपन्यास के साँचे में ढाला गया है।      
   
       करिया धुरवा :छत्तीसगढ़ के 
        लोक देवता पर पहला  उपन्यास 
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        उपन्यास 'देवी करिया धुरवा ' छत्तीसगढ़ के लोक देवता करिया धुरवा और उनकी धर्म पत्नी की जीवन गाथा है,जो इस प्रदेश के किसी भी लोक देवता के जीवन पर आधारित संभवतः  पहला उपन्यास है। उल्लेखनीय है कि पिथौरा से करीब 6 किलोमीटर पर ग्राम अर्जुनी में करिया धुरवा और माता भगवती का प्राचीन मंदिर है ,जहाँ हर साल अगहन पूर्णिमा के मौके पर तीन दिवसीय मेले का आयोजन किया जाता है।
  
   सचमुच 'कलम के धनी' हैं : कलम से ही लिखते हैं 
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     कम्प्यूटर क्रांति के इस दौर में जब अधिकांश पढ़े -लिखे  लोगों में  कलम से लिखने  की आदत छूटती जा रही  है , दो -चार वाक्य कलम से लिख लेने पर  बहुतों की   उंगलियों में दर्द होने लगता है , तब  यह देखकर और सुनकर किसे आश्चर्य नहीं होगा कि 78 वर्षीय साहित्यकार श्री पटनायक आज भी  लम्बी -लम्बी कहानियां और  बड़े से बड़े उपन्यास अपने हाथ  से लिखते हैं। अब तक प्रकाशित पुस्तकों की उनकी हस्तलिखित  पांडुलिपियां हजारों पन्नों की होंगी । वह फुलस्केप कागज के दोनों ओर  लिखते हैं । 
वास्तव में  ऐसे ही लोग   'कलम के धनी ' होते हैं ,क्योंकि वे कलम से लिखते हैं । उन्हें  प्रेमचंद की तरह 'कलम के सिपाही 'का भी दर्जा दिया जा सकता है। श्री पटनायक  इस अंचल के अकेले ऐसे साहित्यकार हैं ,जिनके साहित्य पर पंडित रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय रायपुर से तीन शोधार्थियों को पीएच-डी. की उपाधि मिल चुकी है और  दो शोधार्थी शोध प्रबंध लिख रहे हैं। 
 
      डोकरी दाई : 'कथा मध्यप्रदेश' में शामिल 
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श्री पटनायक की  एक कहानी 'डोकरी दाई ' को अविभाजित मध्यप्रदेश के कथाकारों पर केन्द्रित वृहद कोश 'कथा मध्यप्रदेश 'के  में शामिल किया गया है।   यह विशाल ग्रंथ पाँच खण्डों में वर्ष 2017 में संतोष चौबे के सम्पादन में विश्व कला एवं संस्कृति केन्द्र ,ग्राम मेहुआ ,जिला -रायसेन द्वारा प्रकाशित किया गया है। यह केन्द्र आईसेक्ट और सी.वी .रमन विश्वविद्यालय द्वारा स्थापित है।

            जीवन सफ़र की शुरुआत
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   उन दिनों पिथौरा छोटा -सा गाँव था ,जहाँ एक अगस्त 1943 को शिवशंकर पटनायक का जन्म हुआ था।  पिता स्वर्गीय बंशीधर पटनायक और माता स्वर्गीय राजकुमारी पटनायक के इस प्रतिभावान सपूत की प्राथमिक से लेकर हाई स्कूल तक की शिक्षा पिथौरा में हुई। यहीं उन्होंने शासकीय उत्तर बुनियादी शाला में  पहली से आठवीं तक और रणजीत कृषि उच्चतर माध्यमिक शाला में दसवीं (मेट्रिक )तक शिक्षा प्राप्त की। वह 1960 में मेट्रिक पास हुए। साहित्यिक अभिरुचि उनमें स्कूली शिक्षा के दौरान विकसित हो चुकी थी ।
       
        ये भी कोई उम्र है उपन्यास लिखने की ?
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विद्यार्थी  जीवन का एक रोचक किस्सा मुझसे साझा करते हुए उन्होंने बताया कि जब वह नवमीं के छात्र थे ,तब उन्होंने एक सामाजिक उपन्यास 'पुष्कर 'की रचना की थी। हालांकि वह पुस्तक रूप में छप नहीं पायी और अब तो उसकी पांडुलिपि भी उनके पास नहीं है। वर्ष 1958 की घटना है। 
      नवमीं के छात्र द्वारा उपन्यास लिखे जाने की ख़बर किसी अन्य के जरिए जब प्राचार्य श्री उमाचरण तिवारी को मिली तो उन्होंने शिवशंकर पटनायक को बुलाया और पहले तो डाँट लगाकर कहा -"ये भी कोई उम्र है   उपन्यास लिखने की ?  अभी तो बेटा ख़ूब पढ़ाई करो और अपना कैरियर बनाओ। " लेकिन बाद में  प्राचार्य महोदय ने उनका लिखा उपन्यास पढ़कर बड़े स्नेह से उनकी तारीफ़ भी की और शुभकामनाएं दीं। 
      
  "बाहर के किसी  नाटक का मंचन नहीं होगा " 
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पुरानी यादों से जुड़ा एक और दिलचस्प प्रसंग श्री पटनायक ने  मुझसे साझा किया।  वह  उन दिनों स्थानीय रणजीत कृषि उच्चतर माध्यमिक विद्यालय में शिक्षक थे। स्कूल में होने वाले वार्षिक स्नेह सम्मेलनों में नाटकों का भी मंचन होता था ,जिनमें अध्यापक और विद्यार्थी स्वयं अभिनय किया करते थे। श्री पटनायक बताते हैं कि प्राचार्य श्री उमाचरण तिवारी की  सख़्त हिदायत दी थी बाहर के किसी भी नाटक ,एकांकी या प्रहसन  का मंचन नही होगा।  शिक्षक  स्वयं  लिखें और छात्रों से उसका मंचन करवाएं। उन्होंने शिक्षकों की लेखन प्रतिभा और विद्यार्थियों की अभिनय प्रतिभा को परखने और निखारने के लिए ऐसा रचनात्मक आदेश दिया था। उनके आदेश का सहर्ष पालन होता था। शिक्षक खुद उत्साह के साथ नाटक लिखते थे और अपने छात्रों से उसका मंचन करवाते थे। उन्हीं दिनों बांग्लादेश की जनता पर पाकिस्तानी फ़ौज अमानवीय अत्याचार कर रही थी। बांग्लादेशी अपने वतन की आज़ादी के लिए लड़ रहे थे और भारत -पाकिस्तान युद्ध भी चल रहा था। इस माहौल ने शिवशंकर पटनायक को नाटक 'बंग के फूल ' लिखने के लिए प्रेरित किया।
         
      रिटायरमेंट के बाद अब और
        तेज चल रही कलम 
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     पिथौरा में हाई स्कूल तक शिक्षा प्राप्त करने के बाद  कॉलेज की पढ़ाई के लिए वह रायपुर चले गए ,जहाँ उन्होंने शासकीय विज्ञान महाविद्यालय में  गणित विषय लेकर बी.एससी. की डिग्री हासिल की। पिथौरा लौटकर रणजीत कृषि उच्चतर माध्यमिक शाला में अध्यापक नियुक्त हुए। अध्यापन कार्य के साथ उन्होंने स्वाध्यायी छात्र के रूप में इतिहास में एम .ए. किया ,फिर बी.एड.। वह  तत्कालीन मध्यप्रदेश लोकसेवा आयोग की परीक्षा में भी शामिल हुए और इसमें सफल होने पर उन्हें वर्ष 1975 में सहकारिता विभाग में सहायक पंजीयक के पद पर नियुक्त किया गया। विभाग में पदोन्नत होते हुए वह वर्ष 2003 में छत्तीसगढ़ शासन के प्रथम श्रेणी राजपत्रित के अधिकारी के रूप में संयुक्त पंजीयक (सहकारिता)के   पद से रायपुर में सेवानिवृत्त हुए। रिटायरमेंट के बाद उनकी कलम  अब और भी तेजी से चल रही है। वह अपने बहुत बड़े पैतृक मकान के छोटे -से कमरे में अपनी पलंग के सामने रखी छोटी -सी टेबल पर खूब जमकर लिखते हैं। 
आलेख और फोटो : स्वराज करुण

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