Thursday, August 27, 2020

बालक तुलेन्द्र से स्वामी आत्मानन्द बनने की एक महान यात्रा

                 आलेख : स्वराज करुण 

महान विभूतियों की जन्म भूमि और कर्मभूमि छत्तीसगढ़ के एक तेजस्वी अनमोल रत्न थे स्वामी आत्मानन्द । यह एक महान संयोग ही है कि छत्तीसगढ़ (रायपुर ) की जिस धरती पर  बालक नरेन्द्र ने अपने बचपन के दो वर्ष बिताए और आगे चलकर देश और दुनिया में महान दार्शनिक स्वामी  विवेकानंद के नाम से मशहूर हुए ,उसी छत्तीसगढ़ की धरती पर जन्मे  बालक तुलेन्द्र ने उनके जीवन दर्शन को जन -जन तक पहुँचाने के लिए स्वामी आत्मानन्द बनकर  अपना सम्पूर्ण जीवन समर्पित कर दिया।  स्वामी आत्मानन्द जी का जन्म 6 अक्टूबर 1929 को रायपुर जिले के ग्राम बरबन्दा में हुआ था। भोपाल से रायपुर लौटते समय राजनांदगांव के पास 27 अगस्त 1989 को सड़क हादसे में उनका निधन हो गया। 

  सेवाग्राम में गाँधीजी का स्नेह -सानिध्य 

स्वामी आत्मानन्द जी के  बचपन का नाम तुलेन्द्र था। पिता धनीराम जी वर्मा स्कूल शिक्षक और माता श्रीमती भाग्यवती वर्मा गृहणी थीं। धनीराम जी अपने  उच्च  शिक्षकीय प्रशिक्षण के लिए  बुनियादी प्रशिक्षण केंद्र वर्धा गए थे। परिवार को भी साथ ले गए थे। वह बालक तुलेन्द्र को साथ लेकर वर्धा स्थित महात्मा गाँधी के  सेवाग्राम आश्रम भी आते - जाते थे और वहाँ भजन संध्या में भी शामिल होते थे।  बालक तुलेन्द्र को भी  मधुर स्वरों में भजन गाते देखकर गांधीजी काफी प्रभावित हुए। तुलेन्द्र उनके स्नेहपात्र बन गए। बहरहाल , वर्धा में शिक्षकीय प्रशिक्षण पूरा करके उनके पिता धनीराम जी वर्ष 1943 में सपरिवार अपने गृह  ग्राम बरबन्दा लौट आए।  बालक तुलेन्द्र की हाईस्कूल की शिक्षा रायपुर के सेंट पॉल स्कूल में हुई। उन्होंने नागपुर विश्वविद्यालय  से गणित में एम.एससी . तक शिक्षा प्राप्त की। उन्हें प्रथम श्रेणी के साथ प्रावीण्य सूची में भी शीर्ष स्थान प्राप्त हुआ। छात्रावास की सुविधा नहीं मिलने के कारण वह नागपुर के रामकृष्ण आश्रम में रहते थे।वहीं उन्हें रामकृष्ण परमहंस और स्वामी विवेकानन्द के जीवन दर्शन के भी अध्ययन का अवसर मिला।सेवाग्राम में गाँधीजी का स्नेह और सानिध्य मिलने के  कारण तुलेन्द्र के बाल -मन पर भी उनकी सादगीपूर्ण जीवन शैली और उनके विचारों का गहरा प्रभाव पड़ा ।

 आईएएस का इंटरव्यू छोड़ा : बन गए कर्मयोगी संन्यासी 

   इस बीच तुलेन्द्र ने संघ लोकसेवा आयोग की परीक्षा दी और उन्हें टॉप टेन की सूची में आने का गौरव मिला  । उनका चयन भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस )के लिए होने ही वाला था ,लेकिन उन पर स्वामी रामकृष्ण परम हंस और विवेकानंद के विचारों का इतना गहरा प्रभाव पड़ा कि वह मौखिक परीक्षा (इंटरव्यू )में शामिल नहीं हुए। उन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन आध्यत्मिक क्षेत्र के लिए  समर्पित करने और रामकृष्ण परमहंस के जीवन दर्शन को जन -जन तक पहुंचाने का संकल्प लिया। आगे चलकर वह एक कर्मयोगी संन्यासी बन गए।

  तुलेन्द्र से स्वामी तेज चैतन्य

 और फिर स्वामी आत्मानन्द 

   आगे चलकर वर्ष 1957 में उन्होंने रामकृष्ण मिशन के प्रमुख स्वामी शंकरानन्द जी से दीक्षा ली। उन्होंने तुलेन्द्र का नामकरण किया स्वामी तेज चैतन्य जो आगे चलकर स्वामी आत्मानन्द के नाम से प्रसिद्ध हुए। स्वामी तेज चैतन्य (आत्मानन्द ) ने हिमालय जाकर वहाँ के  स्वर्गाश्रम में एक वर्ष की कठिन तपस्या की और रायपुर लौटे।  चूंकि स्वामी विवेकानंद ने अपने बाल्यकाल के दो महत्वपूर्ण वर्ष रायपुर में गुजारे थे ,इसलिए उन्होंने उनसे जुड़ी स्मृतियों को चिरस्थाई बनाने के लिए रायपुर में विवेकानंद आश्रम की स्थापना की। उनके आश्रम को बेलूर मठ स्थित रामकृष्ण मिशन के मुख्यालय से सम्बद्धता भी मिल गयी ।              


    स्वामी आत्मानन्द जी द्वारा स्थापित यह आश्रम छत्तीसगढ़ में रामकृष्ण परमहंस और विवेकानंद जी के विचारों का प्रमुख केंद्र बन गया । आश्रम में देश के अनेक प्रसिद्ध सन्त महात्माओं के प्रवचन भी होने लगे । आत्मानन्द जी ने यहाँ से 'विवेकज्योति ' नामक मासिक पत्रिका का प्रकाशन भी शुरू किया।  

   आदिवासी इलाके में सेवा प्रकल्पों की शुरुआत

  उन्होंने छत्तीसगढ़ के आदिवासी बहुल बस्तर संभाग के अत्यंत पिछड़े अबूझमाड़ इलाके में आदिवासियों को शिक्षा और विकास की मुख्य धारा से जोड़ने का भी निश्चय किया। इसके लिए उन्होंने  वर्ष 1985 में नारायणपुर में रामकृष्ण मिशन की ओर से शिक्षा ,स्वास्थ्य सुविधाओं सहित कई सेवा प्रकल्पों की बुनियाद रखी। 

 वनवासी सेवा केन्द्र के रूप में नारायणपुर का यह आश्रम आज  देश -विदेश में अपनी पहचान बना चुका है , जो हमें स्वामी आत्मानन्द जी के सेवाभावी व्यक्तित्व की याद दिलाता है। इस आश्रम  परिसर में प्राथमिक से लेकर हायर सेकेंडरी तक स्कूल संचालित हो रहे हैं। वहाँ के आवासीय हायर सेकेंडरी स्कूल में एक हजार से ज्यादा सीटें हैं। 

    अधिकांश आदिवासी बच्चे वहाँ पढ़ाई करते हैं ।पिछले 35 वर्षों में शिक्षा के इन प्रकल्पों ने अबूझमाड़ और आस-पास के सैकड़ों बच्चों के जीवन को संवारा है। मिशन की ओर से नारायण पुर में आदिवासी  युवाओं को विभिन्न व्यवसायों का तकनीकी प्रशिक्षण देने के लिए वहाँ 305 सीटों वाले आईटीआई का भी संचालन किया जा रहा है। इसके अलावा 30 बिस्तरों का अस्पताल (विवेकानंद आरोग्य धाम ) भी वहाँ स्थापित किया गया है। आश्रम का एक चलित अस्पताल (मोबाइल चिकित्सा यूनिट )  भी अबूझमाड़ इलाके में ग्रामीणों को अपनी सेवाएं दे रहा है। इस दुर्गम क्षेत्र के ग्राम कुतुल ,इरक भट्टी और कच्छ पाल में तीन प्राथमिक विद्यालय भी चलाए जा  रहे हैं। रामकृष्ण मिशन के सेवा प्रकल्पों के महान उद्देश्यों को देखते हुए शासन -प्रशासन की ओर से भी संस्था को हर प्रकार का सहयोग मिल रहा है। इलाके में आधा दर्जन राशन दुकानें भी मिशन द्वारा चलाई जा रही हैं। 

                  कई  पुस्तकें भी लिखीं 

स्वामी आत्मानन्द जी के सम्मान में नारायणपुर के शासकीय कॉलेज का नामकरण उनके नाम पर किया गया है। वह  एक महान दार्शनिक ,चिन्तक और लेखक भी थे। उनकी लिखी पुस्तकों में 'धर्म और जीवन ' तथा 'आत्मोन्नति के सोपान ' भी शामिल हैं। विवेकानंद आश्रम रायपुर की पत्रिका 'विवेक ज्योति " में स्वामी आत्मानन्द जी के सम्पादकीय और विभिन्न आध्यात्मिक विषयों पर उनके आलेख नियमित रूप से छपते थे।  

  महान विभूतियां इस धरती पर आकर अपने जीवन और कार्यो से मानव समाज पर अमिट छाप छोड़ जाती हैं। स्वामी आत्मानन्द जी भी उन्हीं विलक्षण विभूतियों में से एक थे। उनकी  प्रेरणादायी जीवन यात्रा के बारे में विस्तार से लिखने को बहुत कुछ है ,लेकिन फ़िलहाल तो सिर्फ़ इतना ही । उनकी  पुण्यात्मा को  विनम्र नमन।

  आलेख     -- स्वराज करुण

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