Wednesday, April 17, 2019

छत्तीसगढ़ की धरती पर 15 साल से रेगिस्तानी जहाजों का डेरा !


                  -स्वराज करुण
रेगिस्तान के  जहाज वन सम्पदा से परिपूर्ण छत्तीसगढ़ की सड़कों पर पिछले करीब 15 साल से विचरण कर रहे हैं । उनकी चहलकदमी जारी है । ये  राजधानी रायपुर के हीरापुर में  रहने वाले सोनकर परिवार के न सिर्फ सदस्य जैसे हो गए  हैं बल्कि  इस परिवार की आजीविका में भी मददगार बने हुए हैं ।  छट तालाब के पास सोनकर  परिवार के साथ उनका भी डेरा है ।


      रायपुर -जगदलपुर -विशाखापटनम राष्ट्रीय राजमार्ग पर अभनपुर कस्बे के पास सोनकर   बन्धुओं और उनके इन जहाजों से उस दिन अचानक मुलाकात हो गई । हम    अपने ब्लॉगर मित्र श्री ललित शर्मा से मिलने अभनपुर जा रहे थे । तभी देखा कि  गर्मियों की भरी दोपहरी में सड़क किनारे वृक्षों की घनी छाया में रंग -बिरंगे राजस्थानी परिधानों से सुसज्जित इन मरुस्थली जहाजों ने लंगर डाल रखा है । 
         उनके अभिभावक दिलीप सोनकर ,राजेश सोनकर और राजू सोनकर सहित उनके एक सहयोगी रमजान ख़ान भी  वहाँ मौजूद थे । सोनकर बन्धुओं ने स्वराज करुण को बताया कि अभनपुर में जैन समाज का एक धार्मिक समारोह  था । इसके लिए  आयोजकों ने उनसे चार ऊँट कुल 60 हज़ार रुपये में किराये पर लिए थे । आयोजन के बाद सोनकर बन्धु अपने इन ऊँटों को लेकर  अभनपुर से रायपुर के अपने हीरापुर मोहल्ले तक करीब 35 किलोमीटर की पैदल यात्रा करते हुए लौट रहे हैं । यानी   वहाँ तक आने -जाने में 70किलोमीटर की पदयात्रा हो गयी । तेज धूप में  घर लौटते हुए  कुछ देर थकान मिटाने के लिए इन पेड़ों की छाँव में रुके हुए हैं । वैसे मुझसे संक्षिप्त बातचीत के बाद वो लौटने लगे ।
      चलते -चलते हुई संक्षिप्त बातचीत में उन्होंने ये भी बताया कि उनके पिताजी 15 साल पहले  इलाहाबाद से इन मरुस्थली जहाजों को रायपुर लाए थे । पिताजी अब घर पर ही रहते हैं । पिताजी के मार्गदर्शन में  सोनकर बन्धु विभिन्न सामाजिक -सांस्कृतिक और धार्मिक आयोजनों के लिए लोगों को   इन्हें किराये पर देते हैं ,  लेकिन रोज -रोज तो कोई आयोजन होता नहीं । लिहाज़ा  इनसे प्रतिदिन कोई स्थायी  आमदनी नहीं होती ,फिर भी ये उनके परिवार की अतिरिक्त कमाई का ज़रिया तो हैं । इन ऊँटों को पालने का रोज का खर्चा भी बहुत है ।
         प्रत्येक ऊँट को 5 किलो गेहूँ के भूसा , 2 किलो चना , 2 किलो पोहा और 2 किलो मक्के का दाना खिलाया जाता है । हर ऊँट दिन भर में 10 लीटर पानी पीता है । दिलीप सोनकर ने बताया कि एक बार उनके पिताजी एक हाथी भी लेकर आए थे ।   काफ़ी समय तक उसका पालन -पोषण किया ,लेकिन दुर्भाग्यवश एक दिन पागल कुत्ते के काटने से उस हाथी की मौत हो गयी । उनके परिवार को हाथी पालने का तजुर्बा तो है ,लेकिन जंगली हाथियों को वश में करना उनके बूते की बात नहीं । (आलेख और फोटो : स्वराज करुण )

2 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल गुरुवार (18-04-2019) को "कवच की समीक्षा" (चर्चा अंक-3309) पर भी होगी।
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    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
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    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. बहुत -बहुत धन्यवाद आदरणीय शास्त्री जी ।
    हार्दिक शुभकामनाएं ।

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