Friday, October 31, 2014

पुस्तक चर्चा -- छत्तीसगढ़ के चटनी


भारत के हर प्रदेश में खान-पान की अपनी विशेषताएं होती हैं .छत्तीसगढ़ भी देश का ऐसा राज्य है ,जहां रसोई की अपनी विशेष विधाएं और खूबियाँ हैं . भोजन का स्वाद बढ़ाने में चटनी का अपना महत्वपूर्ण योगदान होता है .   अड़तालिस पेज की इस छोटी - सी पुस्तिका में आचार्य डॉ. दशरथ लाल निषाद'विद्रोही' ने छत्तीसगढ़ के घरों में  बनने वाली अड़तीस प्रकार की चटनियों का वर्णन किया है. पुस्तिका में प्रत्येक चटनी की निर्माण विधि का उल्लेख हिन्दी में और उसके गुणों का बखान छत्तीसगढी कुंडलियों में कुछ इस तरह किया है कि पढ़ते -पढ़ते जीभ चटकारे लेने लगती है और मुँह में अनायास पानी आ जाता है . लेखक ने चटनी की परिभाषा अत्यंत सहज भाव से दी है- जेन ला चांट के खाय जाथे,वोला चटनी कहिथें .आमा... के चटनी , लिमऊ यानी नीबू की चटनी , आँवरा (आँवला ) की चटनी ,अमली (इमली )की चटनी , अदरक आलू कांदा , चिरपोटी फर, बोईर (बेर ),करेला , करौंदा की चटनी का नाम सुनते ही लार टपकने से खुद को भला कैसे रोक पाएगी ? अखबारी प्रचार-प्रसार से लगभग दूर रहने वाले दशरथ लाल जी छत्तीसगढ़ के ऐसे समर्पित साहित्यकार हैं ,जो अपनी लेखनी से इस राज्य के जन -जीवन की विशेषताओं को देश और दुनिया के सामने लाने के.लिए लम्बे समय से लगे हुए हैं .वह धमतरी जिले में महानदी के किनारे ग्राम मगरलोड में रहते हैं . छत्तीसगढ़ के चटनी के अलावा राज्य के खान -पान की खूबियों पर प्रकाशित उनकी पुस्तिकाओं में छत्तीसगढ़ के भाजी , छत्तीसगढ़ के कांदा , छत्तीसगढ़ के पान , छत्तीसगढ़ के बासी , छत्तीसगढ़ के रोटी , छत्तीसगढ़ के मछरी -मास भी उल्लेखनीय हैं . इन्हें मिलाकर छत्तीसगढ़ के जन -जीवन, इतिहास , लोक -परम्परा आदि कई पहलुओं पर छिहत्तर वर्षीय निषाद जी की अब तक छब्बीस किताबें छप चुकी हैं और बाईस अप्रकाशित हैं वर्ष १९७५ में देश में लगे आपातकाल के दौरान उन्होंने मीसा -बंदी के रूप में जेल-यात्रा भी. की और वहाँ से लौटे तो उन्होंने ' मीसा के मिसरी ' शीर्षक कविता संग्रह लिख डाला . कुछ वर्ष पहले यह प्रकाशित हुआ ..सजने-धजने इस राज्य  की परम्परओं को उन्होंने 'छत्तीसगढ़ के सिंगार' शीर्षक अपनी पुस्तिका में सुरुचिपूर्ण ढंग से प्रस्तुत किया है. वह आयुर्वेद चिकित्सक भी हैं . उनका डाक्टरी ज्ञान 'आयुर्वेद बोधनी' में खुलकर सामने आता है .इस किताब का पहला भाग प्रकाशित हो गया है . गौ वंश की महत्ता ,छत्तीसगढ़ के फूल ,छत्तीसगढ़ के तिहार (त्यौहार ) .धर्म बोधनी' अभी प्रकाशन की प्रतीक्षा में हैं उनकी अधिकांश किताबें संगम साहित्य एवं सांस्कृतिक समिति .मगरलोड द्वारा प्रकाशित की गयी हैं.(स्वराज्य करुण )

Thursday, October 30, 2014

देश का रूपया सीधे विदेशी बैंकों में जमा करने पर प्रतिबंध ज़रूरी !


अपने देश में कई राष्ट्रीयकृत बैंक हैं ,फिर भी कुछ लोग अपनी कथित धन-राशि   विदेशी बैंकों में ही क्यों जमा करते हैं ?   इससे तो उनकी बदनीयती साफ़ झलकती है . वे जिसे अपना धन समझ रहे हैं , वह तो वास्तव में इस देश की माटी से हासिल पूँजी है ,    जिसे उनके द्वारा टैक्स चोरी के लिए देश के बाहर के बैंकों में जमा किया जाता है .अगर यह दौलत  साफ़-सुथरी होती और उनके दिल भी पाक-साफ़ होते ,तो  ऐसे लोग यह रूपया अपने ही देश के सरकारी बैंकों में जमा करते . उन बैंकों के माध्यम से भले ही उन्हें विदेशों में पैसों की जरूरत होने पर राशि का हस्तांतरण हो जाता .यह माना जा सकता है कि कुछ लोगों को अपने बेटे-बेटियों की विदेशों में उच्च शिक्षा के लिए ,या विदेश में स्वयं के  अथवा अपने किसी नाते-रिश्तेदार के इलाज के लिए भी राशि की ज़रूरत हो सकती है , दूसरे देशों में  उद्योग-व्यापार में निवेश  अथवा समाज-सेवा के कार्यों में दान देने के लिए भी पूँजी की जरूरत होती है .अगर ऐसे प्रयोजनों के लिए कोई अपना रूपया विदेश भेजना चाहे तो उसे अपने देश के किसी सरकारी बैंक के माध्यम से भेजना चाहिए ,ताकि उसका पूरा हिसाब देश की सरकार के पास रहे ,लेकिन यहाँ तो पता नहीं ,किस जरिये से देश की दौलत विदेशी बैंकों में कैद हो रही है .कुछ लोग  अपने ही देश की लक्ष्मी का अपहरण कर रहे हैं . वह धन विदेशों में किस काम में लगाया जा रहा है ,कौन देखने वाला है ?    हो सकता है इस दौलत का इस्तेमाल वे अपने ही देश के खिलाफ साजिश रचने में कर रहे हों  ! ऐसे लोगों के नाम बेनकाब होने ही चाहिए . .पारदर्शिता के इस युग में इन सफेदपोश डाकुओं के नाम गोपनीय रखना किसी भी मायने में उचित नहीं है . .ऐसे बेईमानों का मुँह काला करके सड़कों पर उनका जुलूस निकाला जाना चाहिए और चौक-चौराहों पर जूतों की मालाओं से ' नागरिक अभिनन्दन ' भी होना चाहिए .देश का धन विदेशी बैंकों में सीधे जमा करने की आज़ादी पर प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए . भारत में विदेशी बैंकों की शाखाएं हैं तो केन्द्र सरकार उन्हें  साफ़ -साफ़ यह निर्देश जारी  कि वे किसी भी भारतीय नागरिक अथवा अप्रवासी भारतीय का रूपया भारत सरकार के अनापत्ति-प्रमाण पत्र के बिना  अपने बैंक में जमा नहीं  करें.! .देश में संचालित विदेशी बैंकों का दिन-प्रतिदिन  पूरा हिसाब भारतीय रिजर्व बैंक को भी अपने पास अनिवार्य रूप से रखना  चाहिए . (स्वराज्य करुण )

Wednesday, October 29, 2014

सुपर स्पेशलिटी अस्पतालों की असलियत !

         निजी क्षेत्र में सुपर स्पेशलिटी अस्पतालों के नाम पर लूट-मार जारी है. हालांकि अपवाद स्वरुप कुछ अच्छे अस्पताल और अच्छे डॉक्टर भी होते हैं , जिनमे  परोपकार और समाज  सेवा  की भावना जीवित है ,लेकिन अधिकाँश अस्पतालों की व्यवस्था देखकर लगता है कि मानवता खत्म हो गई है .अपने एक मित्र के बीमार पिताजी को देखने एक ऐसे ही स्वनाम धन्य अस्पताल गया तो मित्र ने बताया --- इस अस्पताल के डॉक्टरों की आपसी बातचीत अगर सुन लें तो आपको डॉक्टर और हैवान में कोई अन्तर नज़र नहीं आएगा .ये डॉक्टर अपने लंच टाईम में आपसी चर्चा में मरीजों को क्रिकेट का 'विकेट' कहते हैं. .एक डॉक्टर दूसरे से कहता है -आज चार विकेट आए थे ,एक विकेट गिरा है .
 दरअसल  सुपर स्पेशलिटी में स्पेशल बात ये होती है कि वहाँ किसी गंभीर मरीज को ले जाने के बाद सबसे पहले बिलिंग काऊंटर में बीस-पच्चीस या पचास हजार रूपए जमा करवा लिए जाते हैं . उसके बाद शुरू होता है असली लूट -खसोट का सिलसिला . मरीज को आई.सी. यू .में भर्ती करने के बाद तरह-तरह के मेडिकल टेस्ट करवाने और हर दो -चार घंटे बाद नई -नई दवाइयों की लिस्ट उसके परिजन को थमा दी जाती है .उसी अस्पताल के परिसर में अस्पताल मालिक का मेडिकल स्टोर भी होता है .यह मरीज के घर के लोगों के लिए सुविधा की दृष्टि से तो ठीक है ,लेकिन वहाँ दवाईयां मनमाने दाम पर खरीदना उनकी मजबूरी हो जाती है.मरीज को छोड़कर ज्यादा दूर किसी मेडिकल स्टोर तक जाने -आने का जोखिम उठाना ठीक भी नहीं लगता . खैर किसी तरह अगर दवाई खरीद कर डॉक्टर को दे दी जाए तो उसके बाद यह पता भी नहीं चलता कि उन सभी दवाइयों का इस्तेमाल मरीज के लिए किया गया है या नहीं ?गौर तलब है कि आई.सी. यू. में मरीज के साथ हर वक्त उसके परिजन को मौजूद रहने की अनुमति नहीं होती .उसे बाहर ही बैठकर इन्तजार करना होता है .वह बड़ी व्याकुलता से समय बिताता है. उसे केवल आई.सी.यू. में दाखिल अपने प्रियजन के स्वास्थ्य की चिन्ता रहती है,लिहाजा डॉक्टर से कई प्रकार के मेडिकल टेस्ट का और मरीज के लिए खरीदी गयी दवाइयों के उपयोग का हिसाब मांगने की बात उसके मन में आती ही नहीं. इसका ही बेजा फायदा उठाते हैं कथित सुपर स्पेशलिटी अस्पतालों के मालिक और डॉक्टर .वैसे इस प्रकार के ज्यादातर अस्पतालों के मालिक स्वयं डॉक्टर होते हैं .सरकार तो जन-कल्याण अच्छे  इरादे के साथ गरीब परिवारों को स्मार्ट -कार्ड देकर उन्हें सालाना एक निश्चित राशि तक निशुल्क इलाज की सुविधा देती है यह सुविधा पंजीकृत अस्पतालों में दी जाती है ,लेकिन वहाँ डॉक्टर कई स्मार्ट कार्ड धारक परिवार के किसी एक सदस्य के एक बार के इलाज में ही अनाप-शनाप खर्च बताकर स्मार्ट कार्ड की पूरी राशि निकलवा लेते हैं.
     दूसरी तरफ कुछ ऐसे भी अस्पताल हैं ,जहां गंभीर से गंभीर बीमारियों का मुफ्त इलाज होता है.जैसे - नया रायपुर और पुट्टपर्थी  स्थित श्री सत्य साईसंजीवनी अस्पताल ,जहां जन्मजात ह्रदय रोगियों का पूरा इलाज और ऑपरेशन मुफ्त किया जाता है .यह एक ऐसा अस्पताल है ,जहाँ कोई बिलिंग काऊंटर नहीं है. मरीजों के और उनके सहायकों के लिए भोजन और आवास की व्यवस्था भी निशुल्क है .-स्वराज्य करुण

Monday, October 13, 2014

( ग़ज़ल ) भोली आँखों से दुनिया को ...!

                                देख रहे भोली आँखों से दुनिया को सीधे-सादे लोग,
                                समझ न पाएं इस फरेबी महफ़िल के इरादे लोग !

                                 नकाबपोशों के नगर में नक्कालों का  स्वागत खूब ,
                                 दहशत में जाने कहाँ गए इस बस्ती के आधे लोग !
                                
                                सच्चाई की बात भी करना पागलपन कहलाता है ,
                                झूठी कसमों के संग करते सौ-सौ झूठे वादे लोग !
                                
                                उल्टी- सीधी  चालें चलती चालबाज की माया है ,
                                नासमझी में बन जाते हैं सियासतों के प्यादे लोग !
                               
                                हीरे-मोती के चक्कर में चीर रहे धरती का सीना .
                                खेती के रिवाज़ को चाहे पल भर में  गिरा  दें लोग !
                                
                                उनकी पुस्तक में न जाने दिल वालों का देश कहाँ ,
                                शायद असली के बदले दिल नकली दिलवा दें लोग ! 
                                
                                 वक्त आ गया अब चलने  का इस मुसाफिरखाने से ,
                                 आने  वाले हैं यहाँ  भी हुक्कामों  के शहजादे  लोग !
                                                                         -- स्वराज्य करुण