Sunday, February 5, 2012

ज़रूरी है पूर्वज-वंशज शिखर वार्ता !

   
                                
कुछ दिनों पहले गाँव गया था . मित्रों और रिश्तेदारों के घर भी जाना हुआ . घरों के पीछे बाड़ियों में जहां कुछ साल पहले साग-सब्जियों की लहलहाती हरियाली का सम्मोहन हुआ करता था,आज एक अजीब सी वीरानी देख कर हैरानी और बेचैनी होने लगी . कारण पूछने पर मालूम हुआ कि बंदरों के झुण्ड आते हैं और बाड़ियों में लगी हर प्रकार की सब्जी चाहे वह गोभी हो या टमाटर , भिन्डी हो या लौकी ,सेमी हो या कुम्हड़ा . आलू हो या मूंगफली , पपीता हो या अमरुद ,सब देखते ही देखते तोड़-ताड़ कर खा जाते हैं और गायब हो जाते हैं. मानव-आकृति के पुतले भी और यहाँ तक कि घरों में पाले हुए कुत्ते भी उन्हें डरा नहीं पाते.   मेरी बहन के घर की बाड़ी में जंगल से आए एक बंदर को जब कुत्ते ने भगाना चाहा ,तो बंदर ने कुत्ते को पकड़ कर दो तमाचे रसीद कर दिए. पहरेदारी के लिए प्रसिद्ध बेचारा कुत्ता भयभीत होकर घर में दुबक गया. 
  अधिकाँश ग्रामीणों  ने इन कलमुंहे वानरों के डर से सब्जी-भाजी की खेती करना बंद कर दिया है. घरों के आगे -पीछे उनकी अपनी लम्बी-चौड़ी पर्याप्त खुली जगह है, लेकिन बंदरों के आंतक से कुछ भी लगाने-उगाने की हिम्मत नहीं होती . सिर्फ धान,  मिर्च  और अदरक की फसल किसी तरह हो रही है .कारण यह कि धान की पकी हुई बालियों को चबाना उनकी कंटीली चुभन के कारण मुश्किल होता है और मिर्च और  अदरक के  तीखेपन से भी उनको दिक्कत होने लगती है. फिर भी बंदरों के हाथों अधिकाँश बागवानी फसलें नष्ट हो रही हैं .ऐसा नहीं है कि वे पहले गाँवों की तरफ नहीं आते थे .ज़रूर आया करते थे . लेकिन इतने आक्रामक  नहीं होते थे .घूम-घाम कर  अपने कुदरती रहवास यानी जंगल की ओर लौट जाते थे लेकिन अब तो उनकी तासीर बदल गयी है.   मेरे गाँव के अलावा आस-पास के गाँव-कस्बों के रहवासी भी इन बंदरों से परेशान हो गए हैं .खपरैल वाले मकानों के रहवासी तो और भी ज्यादा परेशान हैं .बंदरों के जत्थे उनकी छानी में ऐसी उछल -कूद मचाते हैं कि खपरे टूट-फूट जाते हैं और बरसात में भारी परेशानी होती है. गाँव के छोटे से बस स्टेंड में  चाय-भजिये की छोटी -छोटी दुकान  चलाने वाले भी परेशान हैं .ये बन्दर वहाँ तक भी आ जाते हैं . जब तक उन्हें भजिया न खिलाया जाए ,वहाँ से   खिसकते  ही नहीं .
मैंने दूर तक देखा तो कारण समझ में आ गया -जहां कल तक हरे भरे घने जंगल थे ,आज वहाँ या तो मैदान जैसा हो गया है ,या नहीं तो छोटे-बड़े ,कच्चे-पक्के मकान खड़े हो गए हैं . वानरों का प्राकृतिक रहवास,जहां उनके लिए जंगली कंद-मूल और फल भरपूर हुआ करते थे ,उसे तो हम इंसानों ने खत्म कर दिया है ,या नहीं तो खत्म करने पर आमादा हैं.ये बेचारे जाएँ तो जाएँ कहाँ ? फिर इंसान कहेगा- हमारी आबादी बढ़ रही है ,हम जाएँ तो जाएँ कहाँ ?  देश के कुछ राज्यों में इंसानों का  यही झगड़ा जंगली हाथियों के साथ भी चल रहा है. करीब दो साल पहले एक जंगली हाथी रास्ता भटक कर मेरे गाँव के आस-पास आ गया था  जंगल महकमे के लोगों ने उसे किसी तरह खदेड़ कर पड़ोस के ओड़िशा राज्य की सीमा में भेज दिया .  यानी इधर की बला उधर ! बहरहाल बात जंगली बंदरों के बारे में चल रही है . वे तो हमारे गाँवों और कस्बों में कुछ इस तरह बिंदास आने -जाने लगे हैं ,मानों उन्हें वहाँ की स्थायी नागरिकता मिल गयी है .लेकिन नागरिक-जीवन का अनुशासन  भला  वे  क्यों मानेंगे ?
  मुझे लगता है कि बंदरों और इंसानों के बीच शिखर वार्ता से ही इस गम्भीर समस्या का हल निकलेगा . अगर दोनों इस बातचीत में एक-दूसरे की आज़ादी का और एक-दूसरे की सुविधा-असुविधा का ख्याल रखने का संकल्प लें तो शायद बिगड़ती हुई बात काफी हद तक बन सकती है. वैसे भी वानर हमारे पूर्वज हैं और हम उनके वंशज .अब अगर पूर्वज और वंशज एक दूसरे का ख्याल नहीं रखेंगे तो कौन रखेगा ? दोनों के बीच शीतयुद्ध जैसा माहौल है इसलिए हालात सुधारने के लिए शिखर वार्ता समय की ज़रूरत बन गयी है.                                                                --     स्वराज्य करुण 
(छाया चित्र : google के सौजन्य से )

8 comments:

  1. आहो बेंदरा के मारे नइ बांचय कोला बारी रे……

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    1. बने सुरता देवा देव महराज !ये गाना महूँ ला सुरता आए रिहिस ,अकासवानी म कतकोन फरमाईस भेजत रहेन . लिखे के बेरा म भुला गेंव ! एको पईत आप मन घलो ये समिस्या ऊपर कुछु लिखौ .

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  2. हल-समझौता की कोर्उ उम्‍मीद नहीं, जनरेशन गैप बढ़ता ही जा रहा.

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  3. हल-समझौता की कोर्उ उम्‍मीद नहीं, जनरेशन गैप बढ़ता ही जा रहा.

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  4. bandar bhi kya karen, insan ne unke aawas ko nasht karna shuru kar diya ahi. ped kaate ja rahe hain.bandar kahan jaen..

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  5. समस्या गंभीर है. इसका हल बन्दर ही निकल सकते हैं .इंसान के बस में पेड़ काटना ही नजर आता है.. ..

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    1. टिप्पणी के लिए धन्यवाद .

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  6. टिप्पणी के लिए आभार.

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